बहुत पुराणी बात है, एक बार मगध साम्राज्य में अकाल पद गया। मनुष्य तो मनुष्य पशु और पक्षी भी दो समय के भोजन के लिए तरसने लगे, राज्य में चरों ओर त्राहि त्राहि मच गया। मगध सम्राट बिंन्दुसार ने एक आपात बैठक बुलाई जिसमे राज्य के सभी गणमान्य लोगों के साथ समस्त मंत्रिमंडल भी उपस्थित था।
महाराज बिन्दुसार ने अपनी सभा मे पूछा- "देश की खाद्य समस्या को कैसे हल किया जाये तथा खाद्यान्न के विकल्प के लिए सबसे सस्ती वस्तु क्या है, जो तुरंत उपलब्ध हो सके ?"
समस्त मंत्री तथा अन्य गणमान्य प्रजाजन गहरी सोच में पड़ गये। चावल, गेहूं, ज्वार, बाजरा आदि तो बहुत श्रम के बाद मिलते हैं और वह भी तब, जब प्रकृति का प्रकोप न हो, ऎसी परिस्थिति में अन्न तो सस्ता और सुलभ हो ही नहीं सकता। तभी शिकार में रूचि रखने वाले एक सामंत ने कहा -"सम्राट यदि आपकी आज्ञा हो तो मेरी सबसे सस्ता खाद्य है जो तुरंत उपलब्ध भी हो सकता है। सम्राट बिन्दुसार ने टपक से आज्ञा दी और पूछा- "हे सामंत वर ! बताइये क्या है वह खाद्य ?" तभी सामंत ने कहा कि- "महाराज वह पदार्थ है मांस, जो सर्व सुलभ और सबसे सस्ता विकल्प है, इसे पाने मे परिश्रम भी कम लगता है और पौष्टिक भोजन भी खाने को मिल जाता है ।" सभी ने सामंत के इस सुझाव का ध्वनिमत से समर्थन किया, किन्तु प्रधानमंत्री चाणक्य चुप थे । तब सम्राट ने उनसे पूछा -" आपका इस बारे में क्या मत है? प्रधानमंत्री जी !
चाणक्य ने कहा - "मैं अपने विचार कल आप सबके समक्ष रखूंगा।
रात्रि होने पर प्रधानमंत्री चाणक्य उस सामंत के महल पहुंचे, सामन्त ने द्वार खोला तथा इतनी रात्रि में प्रधानमंत्री को अपने द्वार पर आया देखकर घबरा गया । प्रधानमंत्री ने कहा - आज सांयकाल के भ्रमण के पश्चात महाराज बिन्दुसार एकाएक अस्वस्थ हो गये हैं, राजवैद्य ने कहा है कि किसी बड़े गणमान्य के हृदय का दो तोला मांस मिल जाए तो राजा के प्राण बच सकते हैं।" इसलिए मैं आपके पास आपके हृदय का सिर्फ दो तोला मांस लेने आया हूं। इसके लिए आप एक लाख स्वर्ण मुद्रायें ले लें।
यह सुनते ही सामंत के चेहरे का रंग उड़ गया, उसने प्रधानमंत्री के पैर पकड़ कर माफी मांगी और उल्टे एक लाख स्वर्ण मुद्रायें देकर कहा कि इस धन से वह किसी और सामन्त के हृदय का मांस खरीद लें । प्रधानमंत्री बारी-बारी सभी सामंतों, सेनाधिकारियों के यहां पहुंचे और सभी से उनके हृदय का दो तोला मांस मांगा, लेकिन कोई भी सहमत न हुआ, उल्टे सभी ने अपने बचाव के लिये प्रधानमंत्री को एक लाख, दो लाख, पांच लाख तक स्वर्ण मुद्रायें दीं ।
इस प्रकार करीब दो करोड़ स्वर्ण मुद्राओं का संग्रह कर प्रधानमंत्री चाणक्य सवेरा होने से पहले वापस अपने महल पहुंचे और निर्धारित समय पर राजसभा में प्रधानमंत्री ने राजा के समक्ष दो करोड़ स्वर्ण मुद्रायें रख दीं ।
सम्राट ने पूछा : यह सब क्या है? तब प्रधानमंत्री चाणक्य ने बताया कि दो तोला मांस खरीदने के लिए इतनी धनराशि इकट्ठी हो गई फिर भी दो तोला मांस नही मिला राजन ! अब आप स्वयं ही विचार करें कि मांस कितना सस्ता है?
"जीवन अमूल्य है, हम यह न भूलें कि जिस तरह हमें अपना जीवन प्यारा है, उसी तरह सभी जीवों को भी अपना जीवन प्यारा है । किंतु अंतर बस इतना है कि मनुष्य अपने प्राण बचाने हेतु हर सम्भव प्रयास कर सकता है । बोलकर, रिझाकर, डराकर, रिश्वत देकर, अन्याय करके आदि आदि । पशु न तो बोल सकते हैं, न ही अपनी व्यथा बता सकते हैं । तो क्या बस इसी कारण उनसे जीने का अधिकार छीन लिया जाय ? हिन्दू धर्म के अनुसार हर किसी को स्वेच्छा से जीने का अधिकार है, प्राणी मात्र की रक्षा हमारा धर्म है।"
"शुद्ध आहार, शाकाहार,मानव आहार, शाकाहार।"
तभी पूरा दरबार प्रधानमन्त्री चाणक्य की जयकार से गूंज उठा।
महाराज बिन्दुसार ने अपनी सभा मे पूछा- "देश की खाद्य समस्या को कैसे हल किया जाये तथा खाद्यान्न के विकल्प के लिए सबसे सस्ती वस्तु क्या है, जो तुरंत उपलब्ध हो सके ?"
समस्त मंत्री तथा अन्य गणमान्य प्रजाजन गहरी सोच में पड़ गये। चावल, गेहूं, ज्वार, बाजरा आदि तो बहुत श्रम के बाद मिलते हैं और वह भी तब, जब प्रकृति का प्रकोप न हो, ऎसी परिस्थिति में अन्न तो सस्ता और सुलभ हो ही नहीं सकता। तभी शिकार में रूचि रखने वाले एक सामंत ने कहा -"सम्राट यदि आपकी आज्ञा हो तो मेरी सबसे सस्ता खाद्य है जो तुरंत उपलब्ध भी हो सकता है। सम्राट बिन्दुसार ने टपक से आज्ञा दी और पूछा- "हे सामंत वर ! बताइये क्या है वह खाद्य ?" तभी सामंत ने कहा कि- "महाराज वह पदार्थ है मांस, जो सर्व सुलभ और सबसे सस्ता विकल्प है, इसे पाने मे परिश्रम भी कम लगता है और पौष्टिक भोजन भी खाने को मिल जाता है ।" सभी ने सामंत के इस सुझाव का ध्वनिमत से समर्थन किया, किन्तु प्रधानमंत्री चाणक्य चुप थे । तब सम्राट ने उनसे पूछा -" आपका इस बारे में क्या मत है? प्रधानमंत्री जी !
चाणक्य ने कहा - "मैं अपने विचार कल आप सबके समक्ष रखूंगा।
रात्रि होने पर प्रधानमंत्री चाणक्य उस सामंत के महल पहुंचे, सामन्त ने द्वार खोला तथा इतनी रात्रि में प्रधानमंत्री को अपने द्वार पर आया देखकर घबरा गया । प्रधानमंत्री ने कहा - आज सांयकाल के भ्रमण के पश्चात महाराज बिन्दुसार एकाएक अस्वस्थ हो गये हैं, राजवैद्य ने कहा है कि किसी बड़े गणमान्य के हृदय का दो तोला मांस मिल जाए तो राजा के प्राण बच सकते हैं।" इसलिए मैं आपके पास आपके हृदय का सिर्फ दो तोला मांस लेने आया हूं। इसके लिए आप एक लाख स्वर्ण मुद्रायें ले लें।
यह सुनते ही सामंत के चेहरे का रंग उड़ गया, उसने प्रधानमंत्री के पैर पकड़ कर माफी मांगी और उल्टे एक लाख स्वर्ण मुद्रायें देकर कहा कि इस धन से वह किसी और सामन्त के हृदय का मांस खरीद लें । प्रधानमंत्री बारी-बारी सभी सामंतों, सेनाधिकारियों के यहां पहुंचे और सभी से उनके हृदय का दो तोला मांस मांगा, लेकिन कोई भी सहमत न हुआ, उल्टे सभी ने अपने बचाव के लिये प्रधानमंत्री को एक लाख, दो लाख, पांच लाख तक स्वर्ण मुद्रायें दीं ।
इस प्रकार करीब दो करोड़ स्वर्ण मुद्राओं का संग्रह कर प्रधानमंत्री चाणक्य सवेरा होने से पहले वापस अपने महल पहुंचे और निर्धारित समय पर राजसभा में प्रधानमंत्री ने राजा के समक्ष दो करोड़ स्वर्ण मुद्रायें रख दीं ।
सम्राट ने पूछा : यह सब क्या है? तब प्रधानमंत्री चाणक्य ने बताया कि दो तोला मांस खरीदने के लिए इतनी धनराशि इकट्ठी हो गई फिर भी दो तोला मांस नही मिला राजन ! अब आप स्वयं ही विचार करें कि मांस कितना सस्ता है?
"जीवन अमूल्य है, हम यह न भूलें कि जिस तरह हमें अपना जीवन प्यारा है, उसी तरह सभी जीवों को भी अपना जीवन प्यारा है । किंतु अंतर बस इतना है कि मनुष्य अपने प्राण बचाने हेतु हर सम्भव प्रयास कर सकता है । बोलकर, रिझाकर, डराकर, रिश्वत देकर, अन्याय करके आदि आदि । पशु न तो बोल सकते हैं, न ही अपनी व्यथा बता सकते हैं । तो क्या बस इसी कारण उनसे जीने का अधिकार छीन लिया जाय ? हिन्दू धर्म के अनुसार हर किसी को स्वेच्छा से जीने का अधिकार है, प्राणी मात्र की रक्षा हमारा धर्म है।"
"शुद्ध आहार, शाकाहार,मानव आहार, शाकाहार।"
तभी पूरा दरबार प्रधानमन्त्री चाणक्य की जयकार से गूंज उठा।
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