प्राचीन समय की बात है , एक पंडित और एक शैतान बहुत ही घनिष्ठ मित्र थे। एक बार शैतान ने पंडित जी को बहका कर शैतान बनाने की कोशिश की, उसने बहुत तरह बहकाया,फुसलाया,फसाया मगर वो उसकी चाल में रत्ती भर नहीं आए । पंडित जी बड़े सीधे सादे व्यक्ति थे साथ ही निष्कपट ह्रदय के स्वामी थे अतः उन पर उस शैतान का एक भी जादू न चला। अंत में झल्ला कर शैतान ने पंडित जी से कहा कि - "अच्छा भाई जान मेरा एक़ मामूली सा काम तो कर दोगे ना।"
पंडित जी बिना कुछ सोचे समझे दयावश हां भर दी और पूछा क्या करना है ? शैतान ने झट से पास में जुम्मन हलवाई की दूकान पर पडी कढ़ाई में जलेबी के लिए तैयार हो रही चाशनी में ऊँगली डाली और कहा - "ये लो चाशनी और और इसे बस जुम्मन की दुकान की दीवार पर लगा दो।" पंडित जी ने ऐसा ही किया, एक बूँद चाशनी दीवार में लगा दी और पूछा - "इससे क्या होगा?यह क्या निरर्थक का काम था? शैतान तो मन ही मन फूला नहीं समा रहा था क्यों की उसका उद्देश्य तो सफल होने वाला था, तो शैतान ने कहा चलो दूर बैठ के देखते हैं। और दोनों दूर बैठके दीवार पर लगी उस चाशनी को देखने लगे।
कुछ समय बाद ही चाशनी पर कई सारी मक्खियाँ आकर बैठ गयी।मक्खियों को देख छिपकली उसे खाने आ गयी।छिपकली दुम हिलाती उधर पहुंची,मक्खियाँ तो उड़ गईं मगर छिपकली पर कहीं से एक बिल्ली झपटी। बिल्ली को देख पास ही टहल रहे शुक्ला जी का कुत्ता उस पर टूट पड़ा। कुत्ते के कूदने से मिठाई की थाल जो गिरी तो गिरी,जुम्मन हलवाई का पारा पहुँच गया सातवें आसमान पर।जुम्मन ने कुत्ते को पहचानते हि गाली गलोज शुरू कर दी।बहस करते करते कुत्ते के मालिक शुक्ला जी का कॉलर पकड़ लिया, और शुक्ला जी की अच्छे से धुनाई भी कर दी। शुक्ला जी ने भी लगे हाथ दो चार झाँपड़ जुम्मन के गाल पर रसीद कर दिए।
यह बात दूर क़स्बे तक फैल गयी की एक शुक्ला जी ने हमारे जुम्मन पर हाथ उठाया।उसकी इतनी हिम्मत कि हम पर हाथ उठाए। हम क्या अब इन काफिरों से दबकर रहेंगे? देखते ही देखते जुम्मन के सारे रिश्तेदार आस पास के गाँव से दौड़ दौड़ कर जुम्मन की दूकान के सामने जमा हो गए ।दूसरी तरफ इसकी भनक शुक्ला जी के रिश्तेदारों तक भी पहुंची तो शुक्ला जी के सारे रिश्तेदार इधर उधर हो लिए, कोई ऑफिस, कोई दुकान, कोई पिकनिक मनाने चले गए । तब कुछ साहसी युवा हिम्मत करके शुक्ला जी के पक्ष में आये परन्तु तब तक बहुत देर हो चुकी थी ।पूरा मौहल्ला आग के हवाले हो गया,सैकड़ो मासूम मार दिये गये। शुक्ल जी की धर्मपत्नी और बच्चे उनके क्षत विक्षत हो चुके शव से लिपट लिपट कर रोये जा रहे थे। अब तक शुक्ला जी के रिश्तेदार भी आ चुके थे, अंततः शुक्ल जी के परिवार को सहारा जो देना था। मौहल्ले के जले हुए घरों से उठता धुआँ देख शैतान ठहाके मारकर हँसा और पंडित जी अपनी ऊँगली पर लगी चाशनी देखते रह गए।
खंडन : इस पोस्ट का किसी जाति धर्म से कोई सम्बन्ध नहीं है, यह एक छोटा सा प्रयास मात्र है, एक सोई हुई मनुष्य प्रजाति को जगाने का।
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