Wednesday, August 23, 2017

प्राचीन भारतीय वैदिक सभ्यता : प्रारम्भ एवं परिचय

 

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प्राचीन भारतीय वैदिक सभ्यता : प्रारम्भ एवं परिचय


प्राचीन भारत को विश्वगुरु कहा जाता था और इस बात के प्रत्यक्ष प्रमाण आज भी मौजूद है ।
वैदिक काल को वस्तुतः ४ कालों में विभक्त किया जाता है जो निम्न प्रकार से है :-
१.ऋगवैदिक काल
२.यजुर्वेदिक् काल
३.सामवैदिक काल
४. अथर्ववैदिक काल        

१. ऋगवैदिककाल १५०० से १००० ई
 तथा उत्तर वैदिक काल का विभाजन दो भागो में किया गया है.आर्य सर्वप्रथम पंजाब और अफगानिस्तान में बसें मैक्स मूलर ने आर्यों का मूल निवास स्थान मध्य एशिया को माना है. आर्यों द्वारा निर्मित सभ्यता वैदिक सभ्यता कहलाई.आर्यों द्वारा विकसित सभ्यता ग्रामीण सभ्यता थी.वैदिक सभ्यता में आर्यों की भाषा संस्कृत थी.आर्यों के प्रशासनिक इकाई आरोही क्रम से इन ५ भागों में बंटा था. कुल ग्राम विश जन राष्ट्र.ग्राम के मुखिया ग्रामीणी और विश का प्रधान विषपति कहलाते थे. जन के शासक को राजन कहा जाता था.

राज्याधिकारियों में पुरोहित एवं सेनानी प्रमुख थे.सूत, रथकार तथा कम्मादी नामक अधिकारी रतनी कहे जाते थे. इनकी संख्या राजा सहित करीब १२ हुआ करती थी.पुरप से सम्बंधित दुर्ग पति तथा स्पर्श जनता की गतिविधियों को देखने वाले गुप्तचर होते थे.


वाजपति गोचर भूमि का अधिकारी होता था.उग्र अपराधियों को पकड़ने का कार्य करता था.सभा एवं समिति राजा को सलाह देने वाले संस्था थी.सभा श्रेष्ठ एवं सम्भ्रांत लोगों की संस्था थी जबकि समिति सामान्य जनता का प्रतिनिधि करती थी. इसके अध्यक्ष को ईशान कहा जाता था.

युद्ध में काबिले का नेतृत्व राजा करता था, युद्ध के लिए गविष्टि शब्द का प्रयोग किया गया है, जिसका अर्थ है गायों की खोज.दसराज युद्ध का उल्लेख ऋषि वेद के ७वे मंडल में है, यह युद्ध परुषणी रावी नदी के तट पर सुदास और दस जनों के बीच लड़ा गया, जिसमे सुदास विजयी हुआ.

ऋग्वेदिक समाज चार वर्णों में विभक्त था, ये वर्ण थे ब्राह्मण, क्षत्रिय, वेश्य और शुद्र यह विभाजन व्यवसाय पर आधारित था. ऋगवेद के १०वे मंडल के पुरुष सूक्त में चतुवर्णों का उल्लेख मिलता है. इसमें कहा गया है कि ब्राह्मण परम पुरुष के मुख से क्षत्रिय उनकी भुजाओं से वेश्य उनकी जांघो से और शुद्र उनके पैरों से उत्पन्न हुए है.

आर्यों का समाज पितृ प्रधान था. समाज की सबसे छोटी इकाई परिवार या कुल थी, जिसका मुखिया पिता होता था. जिसे कुलप कहा जाता था.स्त्रियाँ इस काल में अपने पति के साथ यग्य कार्य में भाग लेती थी.

बाल विवाह एवं पर्दा प्रथा का प्रचलन नहीं था.विधवा अपने मृतक पति के छोटे भाई देवर से विवाह कर सकती थी.स्त्रियाँ शिक्षा ग्रहण करती थी, ऋगवेद में लोपामुद्रा, घोषा, सिकता, आपला और विश्वास जैसी विदुषी
स्त्रियों का वर्णन है.

सोमरस:

जीवन भर अविवाहित रहने वाली महिलाओं को अमाजू कहा जाता था.आर्यों का मुख्य पेय पदार्थ सोमरस था. यह वनस्पति से बनाया जाता था.आर्य का मुख्य पेय पदार्थ सोमरस था. यह वनस्पति से बनाया जाता था.

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