Friday, September 8, 2017

वैदिक संस्कृति: लोग बैठकर क्यों करते है भोजन ? क्या है इसके पीछे का वैज्ञानिक और वैदिक रहस्य ?

 

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भारतीय संस्कृति बहुत पुरानी है। धीरे धीरे हम अपनी संस्कृति को भूलते जा रहे है। हमारा सम्बंध भूमि से प्राचीनकाल से बहुत गहरा रहा है। और तो और वैदिक संस्कृति में भूमि को माँ का स्थान दिया गया है ।
हमारे पूर्वजों ने जिस परंपरा को बनाया है, वह गलत तो नहीं हो सकती इसलिए आवश्यकता है कि उनकी वैज्ञानिकता को समझकर व्यवहार करें। आज की पीढ़ी पालथी मारकर (बैठकर) भोजन करने में अपने आप को असभ्य मानती है, पर हमें ये कभी भी नहीं भूलना चाहिए की हमारे पूर्वज और ऋषि मुनि जो इतने विद्वान और ज्ञानी थे फिर भी वो पालथी मारकर ही भोजन करना उपयोगी मानते थे, क्यों की इसके पीछे कुछ फायदे छुपे थे।

हिन्दू धर्म के अनुसार भोजन को नीचे बैठकर खाना चाहिए। क्यों की भोजन को जिस भी तरीके और भावना के साथ ग्रहण किया जाये वह वैसा ही फल देता है। प्राचीनकाल में लकड़ी के फर्नीचर निर्माण के सभी यन्त्र उपलब्ध थे, फिर भी वैदिक काल में डाइनिंग टेबल का निर्माण नही किया गया। क्यों की प्राचीनकाल में ऋषि और मुनि पालथी मारकर भोजन करना ही श्रेष्ठ मानते थे।

हिन्दू धर्म में भोजन करने के भी नियम निर्धारित थे लोग खड़े होकर भोजन नही कर सकते थे। भोजन करने के तरीके ही नहीं दिशा भी निर्धारित थी।

तो आइये जानते है, भोजन करने के वैदिक नियम :


१. हाथ-पैर, मुंह धोकर कपडे या कुश आसन पर पालथी मारकर बैठना चाहिए,जमीन पर बैठकर
    खाना खाने का अर्थ सिर्फ भोजन करने से नहीं है, यह एक प्रकार का योगासन है। आलथी पालथी 
    लगाकर बैठने को योग में सुखासन कहते हैं।भोजन बैठकर करने से रक्तचाप में कमी आती वह
    पाचन क्रिया में सुधार होता है। ।
२. दिशा यश प्राप्ति की कामना रखने वाले व्यक्तियों को दक्षिण दिशा की ओर मुख करके भोजन 
    करना चाहिए। दक्षिण दिशा की ओर मुख करके भोजन करने से मान-सम्मान की असाधारण 
    वृद्धि होती है, किंतु जिनके माता-पिता दोनों जीवित हों, उन्हें दक्षिण दिशा की ओर मुख करके
    भोजन नहीं करना  चाहिए। इनके लिए पूर्व या पश्चिम दिशा की ओर मुख करके भोजन करना
    स्वास्थ्यवर्धक माना जाता है।
    नैत्रदत्य कोण की तरफ मुंह करके भोजन करने से पाचन शक्ति कमजोर होती है तथा पेट की 
    अनेक बीमारियां हो सकती हैं।

    आग्रेय कोण की तरफ मुंह करके भोजन करने से अनेक सैक्सगत बीमारियां हो सकती हैं तथा  
    स्वप्नदोष, ल्यूकोरिया, प्रदर रोग आदि में भी वृद्धि हो सकती है।

     वायव्य कोण में बैठकर भोजन करने से वायु विकार दोष उत्पन्न हो सकते हैं।


३. कुर्सी पर बैठ कर टांग हिलाते हुए भोजन करना स्वास्थ्य के लिए हानिकारक माना जाता है।
   
४.जिस व्यक्ति की आर्थिक स्थिति चिंतनीय है तथा धन प्राप्ति की इच्छा हो तो उसे पश्चिम दिशा
   की ओर मुख करके भोजन करना चाहिए। इस दिशा की ओर मुख करके भोजन करने से व्यक्ति की
   आर्थिक स्थिति भी ठीक हो सकती है परन्तु यह वृद्धि धीरे-धीरे ही होती है।
५.उत्तर दिशा की ओर मुख करके भोजन करने से धन की हानि होती है। कारण स्पष्ट करते हुए
   ऋषि कहते हैं कि उत्तर दिशा की ओर मुख करके भोजन करने वाला व्यक्ति ‘ऋण का’ भोजन
   करता है। दिन-प्रतिदिन ऋणी होता चला जाता है।
६. भोजन प्रारम्भ करने से पहले अपने इष्ट देवो को स्मरण करके, भोग लगाना चाहिए तथा अंजलि
    भरकर आचमन करवाना चाहिए, तत्पश्चात भोजन मंत्र का स्मरण करना चाहिए जो निम्न
    प्रकार है:
    ॐ सहनाववतु सहनूभुनुक्तू सहवीरयं करवावहै|
    तेजस्विनाम वधीतमस्तु, मा विध्विषावहे ॥
    ॐ शांतिः शांतिः शांतिः         

७. भोजन करते समय मौन धारण कर लेना चाहिए, जिससे मनुष्य की यश एवं आयु बढ़ती है|
    हमे भोजन को अच्छी तरह चबाकर करना चाहिए। वरना दांतों का काम आंतों को करना पड़ता है
    जिससे भोजन का पाचन सही नहीं हो पाता। भोजन करते समय मौन रहना चाहिए।

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