हनुमान जन्मोत्सव का महत्व :
हनुमान जी का जन्म त्रेता युग में चैत्र पूर्णिमा की पावन तिथि पर हुआ । तब से हनुमान जन्मोत्सव का उत्सव मनाया जाता है । इस दिन हनुमान जी का तारक एवं मारक तत्व अत्यधिक मात्रामें अर्थात अन्य दिनों की तुलनामें १ सहस्र गुना अधिक कार्यरत होता है । इससे वातावरण की सात्विकता बढती है एवं रज-तम कणों का विघटन होता है । विघटन का अर्थ है, रज-तमकी मात्रा अल्प होना । इस दिन हनुमानजी की उपासना करने वाले भक्तों को हनुमान जी के तत्व् का अधिक लाभ प्राप्त होता है ।
हनुमान जन्मोत्सव कैसे मनाया जाता है
हनुमान जन्मोत्सव का उत्सव संपूर्ण भारत में विविध स्थानोंपर धूमधाम से मनाया जाता है । इस दिन प्रात: ४ बजे से ही भक्त जन स्नान ध्यान कर हनुमान जी के देवालयों में दर्शन के लिए आने लगते हैं । प्रात: ५ बजे से देवालयों में पूजा विधि आरंभ होती हैं । हनुमानजी की मूर्ति को पंचामृत स्नान करवा कर उनका विधिवत पूजन किया जाता है । सुबह ६ बजे तक अर्थात हनुमान जन्म के समय तक हनुमान जन्म की कथा, भजन, कीर्तन आदि का आयोजन किया जाता है । हनुमान जी की मूर्ति को हिंडोले में रख हिंडोला गीत गाया जाता है । हनुमानजी की मूर्ति हाथ में लेकर देवालय की परिक्रमा करते हैं । हनुमान जन्मोत्सव के उपलक्ष्य में कुछ जगह यज्ञ का आयोजन भी करते हैं । तत्पश्चात हनुमान जी की आरती उतारी जाती है । आरती के उपरांत कुछ स्थानों पर सौंठ अर्थात सूखे अदरक का चूर्ण एवं पीसी हुई चीनी तथा सूखे नारियल का चूरा मिलाकर उस मिश्रण को या कुछ स्थानों पर छुहारा, बादाम, काजू, सूखा अंगूर एवं मिश्री, मिलाकर इस मेवा रूपी प्रसाद को बांटते हैं । कुछ स्थानों पर पोहे तथा चने की भीगी हुई दाल में दही, शक्कर, मिर्ची के टुकडे, नीबू का अचार मिलाकर गोपाल काला बनाकर प्रसाद के रूपमें बाटते है । कुछ जगह महाप्रसाद का आयोजन कर भण्डारा किया जाता है |
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