स्नान को वैसे तो वैज्ञानिक और वैदिक दोनों ही दृष्ट से अति पवित्र करने वाला कार्य मना गया है, किन्तु स्नान केवल तन को ही नहीं मन और विचारों को भी पवित्र करता है | स्नान व्यक्ति के बौद्धिक शुद्धिकरण के लिए भी उतना ही आवश्यक है जितना शारीरिक शुद्धिकरण के लिए है | आज वैदिक भारत में हम आपको स्नान के विभिन्न शास्त्र सम्मत प्रकार और उनकी उपयोगिता और लाभ के बारे में बताएँगे |
प्रातः काल में स्नान को धर्म शास्त्र में चार उपनाम दिए है।
1 मुनि स्नान।
जो प्रातः काल में 4 से 5 के मध्य किया जाता है।
2 देव स्नान।
जो प्रातः काल में 5 से 6 के मध्य किया जाता है।
3 मानव स्नान।
जो प्रातः काल में 6 से 8 के मध्य किया जाता है।
4 राक्षसी स्नान।
जो प्रातः काल में 8 के पश्चात किया जाता है।
वैदिक ग्रंथों में वर्णित कथनानुसार स्नान करते समय अनर्गल विचारों के विपरीत साधक को स्नान मन्त्र का जप करना चाहिए,उपरोक्त में से कोई सा भी स्नान करते समय वैदिक मंत्रोच्चार किया जाये तो स्नान की पवित्रता बढ़ जाती है |
स्नान मन्त्र
गंगे च यमुने चैव गोदावरि सरस्वति ।
नर्मदे सिन्धु कावेरि जलऽस्मिन्सन्निधिं कुरु ।।
स्नान की उपयोगिता
मुनि स्नान सर्वोत्तम है, देव स्नान उत्तम है, मानव स्नान समान्य है और राक्षसी स्नान धर्म में सर्वथा निषेध है। किसी भी मानव को 8 बजे के बाद स्नान नही करना चाहिए।
मुनि स्नान
घर में सुख ,शांति ,समृद्धि, विध्या , बल , आरोग्य , चेतना , प्रदान करता है।
देव स्नान
आप के जीवन में यश , किर्ती , धन वैभव,सुख ,शान्ति, संतोष , प्रदान करता है।
मानव स्नान
काम में सफलता ,भाग्य ,अच्छे कर्मो की सूझ ,परिवार में एकता , मंगल मय , प्रदान करता है।
राक्षसी स्नान
दरिद्रता , हानि , कलेश ,धन हानि , परेशानी, प्रदान करता है ।
अतः किसी भी मनुष्य को 8 के बाद स्नान नही करना चाहिए, प्राचीन काल में इसी लिए सभी सूरज निकलने से पहले स्नान करते थे, विशेषतः जो घर की स्त्री होती थी। चाहे वो स्त्री माँ के रूप में हो,पत्नी के रूप में हो, बहन के रूप में हो। घर के बडे बुजुर्ग यही समझाते कि सूरज के निकलने से पहले ही स्नान हो जाना चाहिए। ऐसा करने से धन ,वैभव लक्ष्मी, आप के घर में सदैव वास करती है।
प्राचीन काल में एक मात्र व्यक्ति की कमाई से पूरा हरा भरा पारिवार पल जाता था , और आज मात्र परिवार में चार सदस्य भी कमाते है तो भी पूरा नही होता। उस की वजह हम खुद ही है । पुराने नियमो को तोड़ कर अपनी सुख सुविधा के लिए नए नियम बनाए है। प्रकृति का नियम है, जो भी उस के नियमो का पालन नही करता ,उस का दुष्परिणाम सब को मिलता है। इसलिए अपने जीवन में कुछ नियमो को अपनाये । ओर उन का पालन भी करे।
#वैदिक_भारत
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मुनि स्नान सर्वोत्तम है, देव स्नान उत्तम है, मानव स्नान समान्य है और राक्षसी स्नान धर्म में सर्वथा निषेध है। किसी भी मानव को 8 बजे के बाद स्नान नही करना चाहिए।
मुनि स्नान
घर में सुख ,शांति ,समृद्धि, विध्या , बल , आरोग्य , चेतना , प्रदान करता है।
देव स्नान
आप के जीवन में यश , किर्ती , धन वैभव,सुख ,शान्ति, संतोष , प्रदान करता है।
मानव स्नान
काम में सफलता ,भाग्य ,अच्छे कर्मो की सूझ ,परिवार में एकता , मंगल मय , प्रदान करता है।
राक्षसी स्नान
दरिद्रता , हानि , कलेश ,धन हानि , परेशानी, प्रदान करता है ।
अतः किसी भी मनुष्य को 8 के बाद स्नान नही करना चाहिए, प्राचीन काल में इसी लिए सभी सूरज निकलने से पहले स्नान करते थे, विशेषतः जो घर की स्त्री होती थी। चाहे वो स्त्री माँ के रूप में हो,पत्नी के रूप में हो, बहन के रूप में हो। घर के बडे बुजुर्ग यही समझाते कि सूरज के निकलने से पहले ही स्नान हो जाना चाहिए। ऐसा करने से धन ,वैभव लक्ष्मी, आप के घर में सदैव वास करती है।
प्राचीन काल में एक मात्र व्यक्ति की कमाई से पूरा हरा भरा पारिवार पल जाता था , और आज मात्र परिवार में चार सदस्य भी कमाते है तो भी पूरा नही होता। उस की वजह हम खुद ही है । पुराने नियमो को तोड़ कर अपनी सुख सुविधा के लिए नए नियम बनाए है। प्रकृति का नियम है, जो भी उस के नियमो का पालन नही करता ,उस का दुष्परिणाम सब को मिलता है। इसलिए अपने जीवन में कुछ नियमो को अपनाये । ओर उन का पालन भी करे।
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