Wednesday, June 21, 2017

हमारे महापुरुष : डॉ. केशव बलिराम हेडगेवार जिन्होंने अखंड भारत के लिए अपना सर्वस्व अर्पण कर दिया

 

हमारे महापुरुष,डॉ. केशव बलिराम हेडगेवार,अखंड भारत,राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ,Dr.Keshav Balliram Hedgewar,Founder,RSS,Rashtriya Swayam Sewak Sangh,Death Anniversary,21st June 1940.,

विश्व के सबसे बड़े स्वयंसेवी संगठन राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ अर्थात (RSS) को आज कौन नहीं जानता ? भारत के कोने-कोने में और विश्व के अधिकाँश देशों में संघ की शाखाएँ हैं। विश्व में जिस देश में भी हिन्दू रहते हैं, वहाँ किसी न किसी रूप में संघ का काम है। संघ के निर्माता डा. केशवराव हेडगेवार का जन्म चैत्र शुक्ल प्रतिपदा, विक्रम  सम्वत् १९४६ (अंग्रेजी तिथि के हिसाब से एक अप्रेल,१८८९) को नागपुर में हुआ था। इनके पिता का नाम श्री बलिराम हेडगेवार तथा माता श्रीमती रेवतीबाई  थीं।

केशव जन्म से ही एक राष्ट्रवादी और देशभक्त थे। बचपन से ही उन्हें नगर में घूमते  हुए अंग्रेज सैनिक, सीताबर्डी के किले पर फहराता अंग्रेजों का झण्डा यूनियन जैक तथा विद्यालय में गाया जाने वाला गीत ‘गाॅड सेव दि किंग’ बहुत बुरा लगता था। उन्होंने एक बार सुरंग खोदकर उस झंडे को उतारने की योजना भी बनाई; पर बालपन की यह योजना सफल नहीं हो पाई।

बाल केशव के मन में सदैव ये विचार आते थे कि इतने बड़े राष्ट्र पर पहले मुगलों ने और फिर सात समुन्दर पार से आये मुट्ठी भर अंग्रेजों ने अधिकार कैसे कर लिया ? वे अपने अध्यापकों और अन्य बड़े लोगों से बार-बार यह प्रश्न पूछा करते थे। बहुत दिनों बाद उनकी समझ में यह आया कि भारत में रहने वाले हिन्दू असंगठित हैं। वे जाति, प्रान्त, भाषा, वर्ग, वर्ण आदि के नाम पर तो एकत्र हो जाते हैं; पर हिन्दू के नाम पर नहीं। भारत के राजाओं और जमीदारों में अपने वंश तथा राज्य का दुराभिमान तो है; पर देश का अभिमान नहीं। इसी कारण विदेशी आकर भारत को लूटते रहे और हम देखते रहे। यह सब सोचकर केशवराव ने स्वयं इस दिशा में कुछ काम करने का विचार किया।

उन दिनों देश की आजादी के लिए सब लोग संघर्षरत थे। स्वाधीनता के प्रेमी केशवराव भी उसमें कूद पड़े। उन्होंने कोलकाता में मैडिकल की पढ़ाई करते समय क्रान्तिकारियों के साथ और वहाँ से नागपुर लौटकर कांग्रेस के साथ काम किया। इसके बाद भी उनके मन को शान्ति नहीं मिली।
सब विषयों पर खूब चिन्तन और मनन कर उन्होंने नागपुर में १९२५ की विजयादशमी महापर्व पर हिन्दुओं को संगठित करने के लिए राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की स्थापना की। गृहस्थी के बन्धन में न पड़ते हुए उन्होंने पूरा समय इस हेतु ही राष्ट्र को समर्पित कर दिया। यद्यपि स्वाधीनता आंदोलन में उनकी सक्रियता बनी रही तथा १९३० में जंगल सत्याग्रह में भाग लेकर वे एक वर्ष अकोला जेल में रहे।

उन दिनों प्रायः सभी संगठन धरने, प्रदर्शन, जुलूस, वार्षिकोत्सव जैसे कार्यक्रम करते थे; पर डा. हेडगेवार ने दैनिक शाखा नामक नई पद्धति का आविष्कार किया। शाखा में स्वयंसेवक प्रतिदिन एक घंटे के लिए एकत्र होते हैं। वे अपनी शारीरिक स्थिति के अनुसार कुछ खेलकूद और व्यायाम करते हैं। फिर देशभक्ति के गीत गाकर महापुरुषों की कथाएं सुनते और सुनाते हैं। अन्त में भारतमाता की प्रार्थना के साथ उस दिन की शाखा समाप्त होती है।

प्रारम्भ में लोगों ने इस शाखा पद्धति की हँसी उड़ायी; पर डा. हेडगेवार निर्विकार भाव से अपने काम में लगे रहे। उन्होंने बड़ों की बजाय छोटे बच्चों में काम प्रारम्भ किया। धीरे-धीरे शाखाओं का विस्तार पहले महाराष्ट्र और फिर पूरे भारत में हो गया। अब डा. जी ने पूरे देश में प्रवास प्रारम्भ कर दिया। हर स्थान पर देशभक्त नागरिक और उत्साही युवक संघ से जुड़ने लगे।
डा. हेडगेवार अथक परिश्रम करते थे। इसका दुष्प्रभाव उनके शरीर पर दिखायी देने लगा। अतः उन्होंने सब कार्यकर्ताओं से परामर्श कर श्री माधवराव गोलवलकर (श्री गुरुजी) को नया सरसंघचालक नियुक्त किया। अंग्रेजी तिथि २० जून १९४० को उनकी रीढ़ की हड्डी का आॅपरेशन (लम्बर पंक्चर) किया गया; पर उससे भी बात नहीं बनी और अगले दिन २१ जून,१९४० को उन्होंने देह त्याग दी।

वैदिक भारत संगठन नमन करता है ऐसे राष्ट्रवादी महापुरुष को जिन्होंने हिन्दू और अखंड भारत की परिकल्पना को साकार करने के लिए अपना सर्वस्व न्यौछावर कर दिया और राष्ट्र को एक ऐसा संगठन देकर गए जो आज पूरे विश्व में माँ भारती के गौरव के लिए अडिग खड़ा है।

यह भी पढ़ें
हमारे महापुरुष :आरएसएस के द्वितीय सरसंघचालक श्री माधवराव सदाशिव राव गोलवलकर जी की गाथा

हमारे महापुरुष : ३ जून बुन्देलखण्ड का शेर वीर छत्रसाल का जन्म-दिवस विशेष,वीर छत्रसाल अमर रहे

No comments:
Write comments