राजस्थान की भूमि को वीर प्रसूता भी कहा जाता है इस मिट्टी ने जहां महाराणा प्रताप,पृथ्वीराज चौहान और वीर दुर्गादास जैसे वीरों को जन्म दिया है वहीं श्री कृष्ण की परम भक्त, भक्त शिरोमणि मीराबाई को भी जन्म दिया है। ऐसे ही एक वीर की गाथा आज वैदिक भारत आपको बताने जा रहा है, और यह गाथा है अमर बलिदानी विराट क्षत्रीय वीर श्री हनूत सिंह जी की । हनूत सिंह जी में राजस्थानी मिट्टी के दोनों गुण थे भक्ति का भी वीरता का भी । हनूत सिंह जी की ही अगुवाई में पूना केवलरी रेजीमेंट ने वर्ष १९६५ तथा १९७१ के भारत-पाक युद्ध में पाकिस्तान के ४८ टैंक नष्ट कर दिए थे जिसके बाद पाक सेना के सामने हार स्वीकार करने के अतिरिक्त कोई विकल्प ही नहीं बचा।
ले. जनरल हनूत सिंह का जन्म ६ जुलाई १९३३ को ले. कर्नल अर्जुन सिंह जी राठौड़, ठिकाना जसोल,राजस्थान के घर हुआ था। हनूत सिंह जी भारत के भूतपूर्व विदेश एवं रक्षामंत्री जसवंत सिंह के चचेरे भाई थे। देहरादून के कर्नन ब्राउन स्कूल से पढ़ाई पूरी करने के बाद वह १९४९ में एनडीए में भर्ती हुए,और उन्होंने सेना ज्वॉइन की। यहां वह सैकण्ड लेफ्टिनेंट पद पर नियुक्त हुए। इसके बाद वह समयानुसार पदौन्नति प्राप्त करते रहे और अंततोगत्वा लेफ्टिनेंट जनरल बने।
भारत-पाक युद्ध में दिखाई ताकत:
वर्ष १९६५ व १९७१ में हनूत सिंह ने भारत-पाक युद्ध में पूना कैवेलरी रेजीमेंट की ओर से भाग लिया। इनके नेतृत्व में ए.बी. तारापोरे व सैकण्ड लेफ्टिनेंट अरूण क्षेत्रपाल ने युद्ध कौशल का परिचय देते हुए पाकिस्तान सेना के ४८ टैंक ध्वस्त कर पाक सेना के छक्के छुड़ा दिए।
जब पाक ने भी कहा फक्र-ए-हिंद-:
युद्ध में हनूत सिंह के कौशल से प्रभावित पाकिस्तान की यूनिट ने भारत की इस रेजीमेंट को फक्र-ए-हिंद के टाइटल से नवाजा जो कि भारतीय सेना के इतिहास में पहली बार किसी विरोधी सेना की ओर से नवाजा गया था। युद्ध में उन्हें बहादुरी दिखाने के लिए महावीर चक्र से भी नवाजा गया था।
आजीवन रहे बाल-ब्रहमचारी-
रेजीमेंट में हनूत सिंह गुरूदेव के नाम से जाने जाते थे। सभी लोग उन्हें यह कहते हुए सम्मान देते थे। उन्होंने आजीवन ब्रह्मचर्य का पालन किया और विवाह नहीं किया, उनसे प्रभावित होकर उनकी यूनिट के अधिकतर अधिकारियों ने भी शादी नहीं की।
सिपाही से कैसे बन गए साधु ?
उनका बचपन से ही आध्यात्म व योग की ओर रूझान था। सेना के दौरान उनका परिचय देहरादून के शैव बाल आश्रम से हुआ। सेना से रिटायर्ड होने के बाद उन्होंने वहीं रहना शुरू कर दिया। उन्हें गुरूजी के नाम से जाना जाता था। शराब तथा मांस के वह सख्त खिलाफ थे। देहरादून के बाल शिवयोगी से प्रभावित होकर उन्होंने उनसे दीक्षा ली। इसके बाद वह वहीं बस गए। वह वर्ष में दो महीने के लिए जोधपुर के बालासति आश्रम में आया करते थे। वहां भी वह परिवार से अधिक बात नहीं करते और अपनी आध्यात्मिक साधना में ही लीन रहते। सन् १९७१ के भारत पाकिस्तान युद्ध में महावीर चक्र विजेता जिन्हाेने अद्वितीय रणनीती से पाकिस्तान के ४८ से अधिक टेंकाे काे नेस्तानाबूद कर दिया था।इस युद्ध के कारण ही भारतीय सेना लाहौर को घेरने में सफल हुई थी जिससे १९७१ की लड़ाई में भारत पाकिस्तान के शकरगढ़ क्षेत्र में विजयी हुआ था।
जीवन परिचय :
हणूत सिंह राठौड़ जसोल रावल मल्लिनाथ वंशज थे,उनका वंश राठौड़ो के वरिष्ठ शाखा महेचा राठौड़ है,उनके पिता लेफ्ट. Colonel. अर्जुन सिंह जी थे,इनका जन्म ६ जुलाई १९३३ को हुआ था,ये जीवन भर अविवाहित रहे और सती माता रूपकंवर बाला गांव के परम भक्तों में थे,इन्हे २८ दिसंबर १९५२ को भारतीय सेना में कमीशन प्राप्त हुआ था,आज़ाद भारत के १२ महानतम जनरलाें में शामिल और भारतीय फाैज में जनरल हनुत के नाम से प्रसिद्ध जनरल साब अभी देहरादून में रह रहे थे।पूर्व केन्द्रीय मंत्री जसवंतसिंहजी के सगे चचेरे भाई जनरल हनुत आध्यात्मिक साधना में लीन रहते थे। सन् १९७१ के भारत पाकिस्तान युद्ध में इन्हे असाधारण वीरता के लिए महावीर चक्र प्रदान किया गया था,उन्होंने FLAG HISTORY OF ARMOURED CORPS किताब की रचना भी की थी इन्हे परम विशिस्ट सेवा मेडल PVSM भी दिया गया था, ३१ जुलाई १९९१ में वे रिटायर हो गए।
१९७१ का भारत पाकिस्तान युद्ध:
लेफिनेंट कर्नल(तत्कालीन) हणूत सिंह राठौड़ ने इस युद्ध में ४७ इन्फेंट्री ब्रिगेड को कमांड किया था,इस युद्ध में जिन क्षेत्रों में सबसे घमासान युद्ध हुआ था उनमे शकरगढ़ भी एक था,लेफिनेंट कर्नल(तत्कालीन) हणूत सिंह की ४७ इन्फेंट्री ब्रिगेड को शकरगढ़ सेक्टर में बसन्तर नदी के पास तैनात किया गया था,पाकिस्तान ने इस नदी में बहुत सी लैंड माइंस लगा रखी थी, १६ दिसंबर १९७१ के दिन हणूत सिंह की कमांड में सेना ने नदी को सफलता पूर्वक पार किया,पाकिस्तान ने दो दिन लगातार टैंको से हमले किये,
लेफिनेंट कर्नल(तत्कालीन) हणूत सिंह ने अपनी सुरक्षा की परवाह किये बिना एक खतरनाक सेक्टर से दूसरे खतरनाक सेक्टर में जाकर सेना का नेतृत्व और मार्गदर्शन किया। इस युद्ध में इनके नेतृत्व में भारतीय सेना ने पाकिस्तान के ४८ टैंक ध्वस्त कर दिए,और पाकिस्तान का आक्रमण विफल कर दिया। उन्होंने आश्चर्यजनक वीरता, नेतृत्व और कर्तव्यपरायणता का परिचय दिया और इस विजय के फलस्वरूप हणूत सिंह को महावीर चक्र से सम्मानित किया गया।
पूर्व सेनाध्यक्ष जनरल वी के सिंह ने अपनी पुस्तक LEADERSHIP IN THE INDIAN ARMY
में हणूत सिंह जी के बारे में लिखा है कि " हनूत सिंह को भारतीय सेना के सर्वोच्चा योद्धा के रूप में सदैव याद किया जाएगा। उनकी सादगी, साहस, जुझारूपन, तर्कशक्ति, कार्य के प्रति लगन और नैतिकता ऐसे गुण है जो भारतीय सेना के हर नए आने वाले सैनिक और अधिकारी के लिए आदर्श है।"
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