साधारणतया व्यक्ति बनी बनाई रीति पर चलते हैं, जबकि कुछ बिरले व्यक्तित्व अपनी कल्पनाशीलता से समूचे विश्व के लिए नए उदाहरण स्थापित कर जाते है । राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के वरिष्ठ प्रचारक माननीय श्री अजीत जी दूसरी श्रेणी के कार्यकर्ता थे। उनका जन्म २७ अगस्त, १९३४
को कर्नाटक के गुडीवंडेयवर जिला के कोलार नामक स्थान पर हुआ था। श्रीमती पुट्टताईम्म तथा वरिष्ठ सरकारी अधिकारी श्री ब्रह्मसुरय्य की आठ संतानों में से एक थे श्री अजीत जी।
प्राथमिक शिक्षा ननिहाल में पूरी कर वे पिताजी के साथ बंगलौर आ गये। यहां उनका संघ से सम्पर्क हुआ। कर्नाटक प्रांत प्रचारक श्री यादवराव जोशी से वे बहुत प्रभावित थे। अभियन्ता की शिक्षा प्राप्त करते समय वे 'अ.भा.विद्यार्थी परिषद' में भी सक्रिय रहे। अपनी कक्षा में सदा प्रथम श्रेणी पाने वाले अजीत जी ने इलैक्ट्रिक एवं मैकेनिकल इंजीनियर की डिग्री स्वर्ण पदक सहित प्राप्त की। उनकी रुचि खेलने, परिश्रम करने तथा साहसिक कार्यों में थी। नानी के घर में कुएं से १०० बाल्टी पानी वे अकेले निकाल देते थे। एक शिविर में उन्होंने १,७५२ दंड-बैठक लगाकर पुरस्कार पाया था।
१९५७ में शिवगंगा में आयोजित एक वन-विहार कार्यक्रम में उन्होंने प्रचारक बनने का निश्चय किया। उन्हें क्रमशः नगर, महानगर, विभाग प्रचारक आदि जिम्मेदारियां मिलीं। संघ शिक्षा वर्ग में कई बार वे मुख्यशिक्षक रहे। वे हर काम उत्कृष्टता से करते थे। कपड़े धोने से लेकर सुखाने तक को वे एक कला मानते थे। गणवेश कैसा हो, इसके लिए लोग उनका उदाहरण देते थे। कार्यक्रम के बाद भी वे पेटी और जूते पॉलिश कर के ही रखते थे।
अजीत जी ने प्रख्यात योगाचार्य श्री पट्टाभि तथा श्री आयंगर से योगासन सीखे। फिर उन्होंने संघ शिक्षा वर्ग के लिए इसका पाठ्यक्रम बनाया। इसके बाद उन्होंने बंगलौर के डा.कृष्णमूर्ति से आरोग्य संबंधी कुछ आवश्यक सूत्र सीखकर उनका प्रयोग भी विभिन्न प्रशिक्षण वर्गों में किया। योग और शरीर विज्ञान के समन्वय का अभ्यास उन्होंने डा. नागेन्द्र के पास जाकर किया। अपने ये अनुभव उन्होंने ‘योग प्रवेश’ तथा ‘शरीर शिल्प’ नामक पुस्तक में छपवाये।
१९७५ में आपातकाल लगने पर वे भूमिगत होकर काम करते रहे; पर एक सत्याग्रह कार्यक्रम के समय वे पहचान लिये गये। पहले बंगलौर और फिर गुलबर्गा जेल में उन्हें रखा गया। वहां भी उन्होंने योग की कक्षाएं लगायीं।
अजीत जी की मान्यता थी कि समाज में अच्छे लोगों की संख्या बहुत अधिक है। अतः उन्होंने ‘हिन्दू सेवा प्रतिष्ठान’ संस्था के माध्यम से ऐसे सैकड़ों युवक व युवतियों को जोड़ा। उन्हें थोड़ा मानदेय एवं प्रशिक्षण देकर अनेक सेवा कार्यों में लगाया गया। संस्कृत संभाषण योजना के सूत्रधार भी अजीत जी ही थे। १९८० के दशक में उन्होंने ऐसी कई योजनाओं को साकार किया।
उनके मन में और भी अनेक योजनाएं थीं, जिनके बारे में वे चर्चा किया करते थे। उनका परिश्रम और काम के प्रति छटपटाहट देखकर लोग उन्हें saint in a hurry कहते थे। १९९० में वे कर्नाटक प्रान्त प्रचारक बनाये गये। दिसम्बर मास में बंगलौर में विश्व संघ शिविर होने वाला था, अतः
३ दिसम्बर, १९९० को उसकी तैयारी के लिए अजीत जी के साथ नरेन्द्र जी, विजयेन्द्र नरहरि तथा गणेश नीर्कजे कार से कहीं जा रहे थे; पर नेलमंगल के पास एक ट्रक से हुई भीषण टक्कर में चारों कार्यकर्ता असमय काल-कवलित हो गये।
एक बार भैया जी दाणी के पूछने पर अजीत जी ने कहा था कि- "जब तक प्राण है, तब तक संघ कार्य करूंगा।" उन्होंने मर कर भी अपना यह संकल्प पूरा कर दिखाया। वैदिक भारत संगठन ऐसे राष्ट्रभक्त को उनकी जनतिथि २७ अगस्त पर सादर नमन करता है।
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