Saturday, August 12, 2017

माँ भारती के तीन टुकड़े करने वाले सेक्युलर ही अब देश को सहिष्णुता का पाठ पढ़ाने चले है , पढ़कर राष्ट्रवादियों की भुजाएं फड़क उठेगी।

 

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दीदी सुतपा उवाच :"मेरी प्यारी बहनों और भाईयों मैं आज से अपने अखण्ड-भारत के"खण्डित"होने के त्रासदी पूर्ण इतिहास पर आपका ध्यान आकर्षित कराने के करुणामय उद्रेश्य से एक श्रृँञ्खला प्रस्तुत कर रही हूँ!!आशा करती हूँ कि मैं आपसब के साथ इतिहास के कुछ पन्नों को पलटती हुयी उनसे आजके परिप्रेक्ष्य में कुछ शिक्षा जरूर ले पाउँगी!"

भारत में ब्रिटिश शासकों ने हमेशा ही "फूट डालो और राज्य करो" की नीति का अनुसरण करते हुवे मेरे गुलाम भारत के नागरिकों को संप्रदाय के अनुसार अलग-अलग समूहों में बाँट कर ही रक्खा था। ब्रिटिश सरकार और भारतीय कांग्रेस के नेता गण मुस्लिमों को विशेषाधिकार देने और हिन्दुओं के प्रति भेदभाव करने में लगे थे!!और ऐसी ही तुष्टीकरण की राजनीति वे आज भी करते चले आ रहे हैं!! परिणामस्वरूप भारत में जब आज़ादी की भावना उभरने लगी तो आज़ादी के संग्राम को नियंत्रित करने में दोनों संप्रदायों के नेताओं में धार्मिक प्रतिस्पर्धात्मक विवाद तो होने ही थे!!

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सन् उन्नीस सौ छे में ढाका में बहुत से इस्लामी और तथाकथित सेक्यूलर नेताओं ने मिलकर मुस्लिम लीग की स्थापना की!!इन घृणित नेताओं की भावना थी कि मुस्लिमों को बहुसंख्यक हिन्दुओं से कम अधिकार उपलब्ध थे तथा भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस हिन्दुओं का प्रतिनिधित्व करती थी!!और तब इसी मुस्लिम लीग ने उन्निस सौ तीस में मुस्लिम लीग की मजलिस में प्रसिद्ध उर्दू कवि मुहम्मद इक़बाल के एक भाषण द्वारा पहली बार मुसलमानों के लिए एक अलग राज्य की माँग उठाई!! और कितने आश्चर्य की बात है कि इसी घृणास्पद ब्यक्तित्व को आज भी भारतीय राष्ट्रवादी कवि की श्रेणी में यही सैक्यूलर नेता रखते नहीं अघाते!!

और फिर तो सन् उन्नीस सौ पैंतीस में इक़बाल, मौलाना मुहम्मद अली जौहर और मुहम्मद अली जिन्ना ने आरोप लगाना शुरू कर दिया कि कांग्रेसी नेता मुसलमानों के हितों पर ध्यान नहीं दे रहे और वे अलग-अलग राष्ट्र चाहते हैं!!

मैं प्रारंभ और जन्म तथा अपने संस्कारों से यही सीखी हूँ कि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ,आर्यसमाज और हिन्दू महासभा,आजाद हिन्द फौज जैसे सभी राष्ट्रवादी संगठन भारत माता के विभाजन के घोर विरोधी थे, लेकिन उनकी सुनता ही कौन था ? कांग्रेस के भी राष्ट्रवादी नेता पंथ-निरपेक्ष थे और संप्रदाय के आधार पर भारत का विभाजन करने के विरुद्ध थे,तथापि कांग्रेसमें तब तक जवाहरलाल नेहरू,मुहम्मद अली जिन्ना और महात्मा गांधी का एक छत्र शासन हो चुका था!!

ब्रिटिश सरकार ने तो पहले से ही हमें "खण्ड-खण्ड करने की योजना जिन्ना के साथ मिलकर बना रक्खी थी!!उनकी मुस्लिम लीग ने अगस्त 1946 में सिंध आंदोलन दिवस मनाया और कलकत्ता में भीषण दंगे किये जिसमें लगभग आठ हजार हिंदुवों की हत्या कर दी गयी थी!!इतिहास साक्षी है कि हुबली नदी पर बने "हाबणा"पुल पर उन्हें लिटाकर"आइ इस आइ एस"आतंकवादियों ने जैसे सामुहिक हत्याऐं की थी!वैसे उनके सर काट डाले गये,ट्रामों के सामने लिटाकर कुचल दिया गया!!

बड़ी बात : जिन्हें विदेशी भाषा बोलने में गर्व और राष्ट्र भाषा बोलने में लज्जा का अनुभव होता हो उन्हें यह लेख अवश्य पढ़ना चाहिए


और तो और,सखियों!!पहले तो महात्मा गांधीजी ने कहा था कि भारत का विभाजन मेरी लाश पर होगा!"मेरी पूरी आत्मा इस विचार के विरुद्ध विद्रोह करती है कि हिन्दू और मुसलमान दो विरोधी मत और संस्कृतियाँ हैं!!तथापि राष्ट्रपिता बनने की ईच्छा और नेहरू तथा जिन्ना की जल्दी से जल्दी प्रधान मंत्री बनने की राष्ट्र-घाती माँग के समक्ष उन्होंने घुटने टेक ही दिये-और लाखों मासूम हिंदूवों की सामूहिक हत्या के(विभाजन) घोषणापत्र का समर्थन कर ही दिया!!

और परिणामतःभारत-विभाजन की योजना को THIRD June Plan या Lord mount beaten Plan" काश्मीरीय नाम दे दिया गया था!!मेरे देश और पूर्वी तथा पश्चिमी पाकिस्तान के मध्य की विभाजन रेखा!! यहाँ की भौगोलिक स्थितियों से बिल्कुल ही अंजान एक घिनौने और चर्च के Ligal Adviser- Sir Sir I'll Redclipf लंडन में अपने ऑफिस में बैठे बैठे ही खींच कर हमारी माँ भारती को तीन टूकड़ों में काट डाला!!

यह तथाकथित सभ्य लोकतंत्र की प्रथम हत्या थी!! अट्ठारह जुलाई 1947 को ब्रिटिश संसद ने भारतीय स्वतंत्रता अधिनियम पारित किया जिसमें विभाजन की प्रक्रिया को अंतिम रूप भी दे दिया गया,और इसको हमारी इसी "कांग्रेस"और इसके महान नेताओं ने गुप-चुप तरीके से बिना हमारे देश की जनता को जाने अपनी"मौन और लिखित सहमति"भी दे दी!!

और भी एक अनसुलझी पहेली मैं आपके समक्ष रखना चाहती हूँ कि विभाजन के निर्णय के बाद और पन्द्रह अगस्त के पहले ही कांग्रेस ने संयुक्त राष्ट्र में नए सदस्य के रूप में ब्रिटिश भारत की कुर्सी भी संभाल ली!इतने कुर्सी के लोभी बन चुके थे ये!!

विभाजन के बाद के जून से लेकर दिसम्बर तक के महीनों में दोनों नये देशों के बीच तीन टुकणों में विशाल जन पलायन हुआ!!दोनों ही पाकिस्तानों से तो उसी समय नब्बे प्रतिशत हिन्दू, जैन,बौद्धऔर सिखों को तो किन्ही ढोरों की तरह या तो काट डाला गया या फिर भारत की तरफ ढकेल दिया गया!!

किंतु हमारे"राष्ट्रपिता महात्मा-गांधीजी ? ने कांग्रेस पर दबाव डाला और सुनिश्चित किया कि मुसलमान अगर चाहें तो भारत में रह सकें, अहो अद्भुत ! तब भी हम असहिष्णु ही हैं!! सीमा रेखाएं जब निश्चित हो गयीं थीं और जब धर्म के आधार पर हमारी माँ को काट दिया गया था तो फलस्वरूप दंगे हुवे और बहुत से लोगों की जाने गईं और बहुत से लोगों को घर छोड़कर भागना पड़ा। इतिहास साक्षी है कि कि इस अवधि में लगभग तीस-लाख लोग मारे गये और इनमें से बाइस लाख हिंदुवों की हत्या उन्ही दोनों पाकिस्तानों में की गयी,और ये एक घृणित सच्चाई है!  

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साभार : राष्ट्रवादी बहिन दीदी सुतपा

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