Tuesday, August 29, 2017

खेल दिवस विशेष : मेजर ध्यानचंद का योगदान बड़ा या भारत रत्न ? बड़ा सवाल

 

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 मेजर ध्यानचंद का देश के लिए योगदान किसी से छुपा हुआ नहीं हैं, मेजर ध्यानचंद ऐसे व्यक्ति थे जिन्होंने भारत के राष्ट्रीय खेल हॉकी को न केवल अंतराष्ट्रीय स्तर पर पहचान दिलाई अपितु राष्ट्रीय खेल हॉकी के गौरवशाली अतीत पर एक और नया इतिहास लिख दिया। यही वह कारण है जिसके कारण मेजर ध्यानचंद को हॉकी का जादूगर कहा जाने लगा। पूरा विश्व जानता है की मेजर ध्यानचंद को यदि हॉकी का पर्याय कहें तो कोई अतिश्योक्ति नहीं होगी।    

मेजर ध्यानचंद का योगदान
भारत ने सर्व प्रथम बार १९२८ के एम्सटर्डम ओलम्पिक में भाग लिया था।  मेजर ध्यानचन्द भी इस दल के सदस्य थे। उस समय भारत की हॉकी टीम और मेजर ध्यानचंद का इतना दबदबा था की तत्कालीन विश्व चैंपियन इंग्लैंड ने ओलिंपिक में भाग लेने से ही साफ़ मना कर दिया था। अपेक्षा अनुसार भारत ने एम्स्टर्डम ओलिंपिक में स्वर्ण पदक जीता और पूरे विश्व को दिखा दिया की इंग्लैंड के डरने का क्या कारण था।  तत्पश्चात १९३६ के बर्लिन ओलम्पिक में हॉकी टीम की कप्तानी मेजर ध्यानचंद को मिली। दुबारा इतिहास लिखा गया और बर्लिन ओलिंपिक में भी भारत ने स्वर्ण जीता। तत्पश्चात १९४८ के लन्दन ओलम्पिक में भारतीय टीम ने कुल २९  गोल करके पुनः स्वर्ण पदक जीता। २९ में से १५ गोल तो अकेले मेजर ध्यानचन्द के ही थे। कुल मिलाकर इन तीन ओलम्पिक की १२ मैचों में ३८ गोल अकेले मेजर ध्यानचंद ने किये।

१९२६ से १९४८ तक के खेल जीवन में मेजर ध्यानचन्द दुनिया के जिस देश में भी खेलने जाते थे , वहाँ दर्शक उनकी हॉकी की जादूगरी  के कायल होकर उमड़ आते थे। उनकी फैन फॉलोविंग का आलम यह था कि आस्ट्रिया की राजधानी वियना के एक स्टेडियम में तो वहां की सरकार ने उनकी प्रतिमा ही स्थापित कर दी गयी। ४२ वर्ष की आयु में हॉकी के इस सर्वकालिक महापुरुष ने अंतर्राष्ट्रीय हॉकी से संन्यास लेकर राष्ट्रीय खेल संस्थान में हॉकी के प्रशिक्षक कार्य किया। 

भारत के इस महान सपूत को भारत सरकार ने १९५६ में ‘पद्मभूषण’ से सम्मानित किया। उनका जन्मदिवस २९ अगस्त भारत में ‘खेल दिवस’ के रूप में मनाया जाता है। सब कुछ अच्छा लगता है क किन्तु मन में एक प्रश्न हर २९ अगस्त को अनायास  आ ही जाता है  क्या मेजर ध्यानचंद केवल पद्मभूषण के ही लायक थे। पता नहीं सरकार को ये कब समझ में आएगा कि वो भगवान् के बनाये  सबसे उत्कृष्ट भारत रत्न थे, चाहे सरकार इस बात को समझे या नहीं समझे किंतु यही कटु सत्य है।



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