Friday, August 11, 2017

हमारे त्यौहार : संकष्टी चतुर्थी ,माहात्म्य,वैदिक व्रत विधि और पौराणिक व्रत कथा

 

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क्या है संकष्टी चतुर्थी अथवा संकट चौथ ?
हिन्दु पंचांग में प्रत्येक मास में दो चतुर्थी होती हैं। पूर्णिमा के बाद आने वाली कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को संकष्टी चतुर्थी अथवा संकट चौथ कहते हैं और अमावस्या के बाद आने वाली शुक्ल पक्ष की चतुर्थी को विनायक चतुर्थी कहते हैं। यद्यपि संकष्टी चतुर्थी अथवा संकट चौथ  का व्रत हर माह में होता है परन्तु सबसे मुख्य संकष्टी चतुर्थी वैदिक पञ्चाङ्ग के अनुसार माघ माह में आती है।

यदि संकष्टी चतुर्थी मंगलवार के दिन आती है तो उसे "अंगारकी चतुर्थी" कहते हैं और इसे अत्यधिक  शुभ माना जाता है। भारत के पश्चिमी और दक्षिणी भाग के कई राज्यों में और विशेषतया महाराष्ट्र में संकष्टी चतुर्थी अथवा संकट चौथ का व्रत अधिक प्रचलित है।

भगवान श्री गणपति के भक्त संकष्टी चतुर्थी के दिन सूर्योदय से चन्द्रोदय तक उपवास रखते हैं। संकट से मुक्ति मिलने को संकष्टी कहते हैं। भगवान गणेश जिन्हें सबसे बुद्धिमान देवता माना जाता हैं, और विघ्न का विनाश करने के लिए उनकी पूजा की जाती  हैं। अतः ऐसी मान्यता है कि संकष्टी चतुर्थी अथवा संकट चौथ का व्रत करने वाले साधकों को समस्त दुखों से मुक्ति मिल जाती है।

संकष्टी चतुर्थी अथवा संकट चौथ व्रत की विधि

  • चतुर्थी के दिन नित्यकर्म से निवृत्त होकर स्वच्छ व् सात्विक वस्त्र धारण करें।
  • इस दिन यदि साधक लाल रंग के वस्त्र धारण करें तो बहुत ही शुभ फलदायी होता है ।
  • भगवान् श्रीगणेश की पूजा पूर्व मुख अथवा उत्तर मुख होकर करें।
  • कुशा अथवा सूती वस्त्र निर्मित स्वच्छ आसन पर बैठकर ही भगवान श्री गणपति का पूजन करें। 
  • फल, फूल, रौली, मौली, अक्षत, पंचामृत से श्रीगणेश को स्नान कराके विधिवत तरीके से पूजा करें। 
  • गणेश पूजन के दौरान धूप-दीप नैवेद्य आदि से भगवान् श्रीगणेश की आराधना करें।  
  • भगवान् श्री गणेश को तिल से बनी वस्तुओं, तिल-गुड़ के लड्‍डू तथा मोदक का भोग लगाएं। 
  • सायंकाल में साधक संकष्टी गणेश चतुर्थी की कथा पढ़े, अथवा सुनें और सुनाएं।  
  • अंत में गणेशजी व् लक्ष्मी जी की आरती करें।
  • यदि आप गणेश चालीसा व् ॐ गं गणपतये नमः का १०८ बार जाप करते है तो अत्यंत फलदायी है 

संकष्टी चतुर्थी का उपवास बहुत ही कठिन होता है जिसमे साधक द्वारा मात्र  फलों, जड़ों  और कांड मूल फल इत्यादि का ही सेवन किया जाता है। तथा  संकष्टी चतुर्थी का साधारण व्रत करने वाले साधक साबूदाना व् सावा खिचड़ी, सिंघाड़ा, आलू और मूँगफली से बने आहार का सेवन कर सकते हैं। यहाँ इस बात का ध्यान रहे कि चन्द्र -दर्शन करने के पश्चात ही उपवास को सम्पूर्ण करते हैं। सम्पूर्ण उत्तरी भारत में माघ माह में आने वाली संकष्टी चतुर्थी को "सकट चौथ" के नाम से भी जाना जाता है। इसके साथ ही भाद्रपद माह के दौरान आने वाली विनायक चतुर्थी को गणेश चतुर्थी के नाम से भी मनाया जाता है। तथा सम्पूर्ण विश्व में गणेश चतुर्थी को भगवान श्री गणेश के जन्म दिवस के रूप में मनाया जाता है।

संकष्टी चतुर्थी अथवा संकट चौथ व्रत कथा :
प्राचीन काल की बात है, किसी नगर में एक कुम्हार रहता था । एक बार उसने बर्तन बनाकर आव लगाया तो आव पका  ही नहीं । हारकर वह राजा के पास गया और पूरा वृत्तांत सुनाया और प्रार्थना करने लगा । राजा ने राजपंडित को बुलाकर कारण पूछा तो राज्य पंडित ने कहा की हर बार आव लगते समय बच्चे की बलि देने से आव पक जाएगा । राजा का आदेश हो गया । बलि आरम्भ हुई । जिस परिवार की बारी होती वह परिवार अपने बच्चो में से एक बच्चा बलि के लिए भेज देता । इसी तरह कुछ दिनों बाद सकट के दिन एक बुढ़िया के लड़के की बारी आयी । बुडिया के लिए वही एक मात्र  जीवन का सहारा था, किन्तु राजा की आज्ञा के आगे अनुनय विनय का कोई मूल्य नहीं था  । दुखी बुढ़िया ने सोचा कि मेरा तो एक ही सहारा है , और  यदि वह भी इस संकट के कारण मुझसे बिछड़ जाएगा तो मेरा क्या होगा ? बुढ़िया ने लड़के को साबुत सुपारी और दूब का बीड़ा देकर कहा "भगवान श्री गणेश का नाम लेकर आव में बैठ जाना । भगवान् गणपति तेरी रक्षा करेंगे   । " बालक आव  में बिठा दिया गया और बुढ़िया भगवान्  श्री गणेश का नाम लेकर पूजा करने लगी । पहले तो आव  पकने में कई दिन लग जाते थे,पर इस बार भगवान् गणेश जी की कृपा से एक ही रात में आव  पाक गया था । सवेरे कुम्भार ने देखा तो हैरान रह गया । आव  पाक गया था । बुडिया का बेटा एवं अन्य बालक भी जीवित एंव सुरक्षित थे । नगर वासियों ने सकत की महिमा स्वीकार की तथा लड़के को भी धन्य माना ।  भगवान् श्री गणेश की कृपा से नगर के अन्य बालक भी जी उठे । और नगर की समस्त प्रजा भगवान् श्री गणेश का जयकारा लगाते और अपने घरों को जाकर ख़ुशी से झूमने लगे जैसे की कोई त्योंहार हो । तभी से इस चतुर्थी को त्योंहार की तरह हर्षोल्लास से मनाया जाने लगा।

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