Friday, September 1, 2017

धर्म और त्यौहार : भाद्रपद शुक्ल एकादशी, जलझूलनी एकादशी अथवा परिवर्तिनी एकादशी, व्रत विधि और व्रत कथा

 

धर्म और त्यौहार, जलझूलनी एकादशी ,परिवर्तिनी एकादशी,व्रत विधि,व्रत कथा,Festivals.Parivartini ekadashi,Jaljhoolni Ekadashi.Vrat Katha,Vrat Method

भाद्रपद माह में शुक्ल पक्ष की एकादशी का नाम जलझूलनी एकादशी अथवा परिवर्तिनी एकादशी है. यह जयंती एकादशी भी कहलाती है। इसका यज्ञ करने से वाजपेय यज्ञ का फल मिलता है। शत्रु विनाशक शक्तियां प्राप्त करने हेतु इस एकादशी का व्रत सर्वश्रेष्ठ माना गया है । जो मनुष्य इस एकादशी के दिन भगवान् श्री हरी विष्णु  अर्थात वामन रूप की पूजा करता है, उसका तीनों लोकों में यश बढ़ता है। अत: यह मोक्ष प्राप्ति का सर्वसुलभ मार्ग है   इसीलिए परिवर्तिनी एकादशी का उपवास अवश्य करें।  अतः यह भी कहा जाता है की जो साधक भाद्रपद शुक्ल एकादशी का व्रत और पूजन करता है, उससे ब्रह्मा, विष्णु तथा शंकर  तीनों त्रिदेव स्वतः ही प्रसन्न हो जाते है। इस दिन भगवान श्री हरी विष्णु क्षीर सागर में शेष शैया पर  करवट लेते हैं, इसलिए इसको परिवर्तिनी एकादशी भी कहते हैं।


व्रत विधि:
शास्त्रों के अनुसार एकादशी से एक दिन पूर्व अर्थात दशमी तिथि को साँयकाल में सूर्यास्त के पश्चात भोजन से परहेज करना चाहिए और रात्रि  में विष्णु कीर्तन करके सोना चाहिए। प्रातः काल ब्रह्म मुहूर्त अर्थात ५ बजे उठकर स्नान आदि से निवृत होकर स्वच्छ वस्त्र धारण कर भगवान् विष्णु की प्रतिमा के सामने घी का दीप जलाएं. भगवान् विष्णु की पूजा में  तुलसी, ऋतु फल एवं तिल का प्रयोग करें। व्रत के दिन अन्न का त्याग करें, निराहार रहें और संध्या पूजा के पश्चात यदि सामर्थ्य नहीं है तो फल ग्रहण कर सकते है. घर के किसी भी सदस्य को एकादशी के दिन चावल का प्रयोग भोजन में करने से परहेज करना चाहिए। अगले दिन यानी द्वादशी तिथि को ब्रह्मभोज करवाने के बाद स्वयं भोजन करें। भाद्रपद  शुक्ल एकादशी अर्थात परिवर्तिनी एकादशी को भगवान् विष्णु की पूजा कमल के पुष्प द्वारा की जाती है.

सागार:
इस दिन ककड़ी का सागार लेना चाहिए।

फल:
शास्त्रों के अनुसार ऐसा माना जाता है कि परिवर्तिनी एकादशी के दिन व्रत और पूजन  ब्रह्मा विष्णु सहित तीनो लोकों की पूजा के समान है।

परिवर्तिनी एकादशी अथवा जलझूलनी एकादशी व्रत कथा :
त्रेतायुग में बलि नामक एक दैत्य राजा था। वह भगवान् विष्णु का परम भक्त था। विविध प्रकार के वेद सूक्तों से श्री हरी विष्णु का पूजन किया करता था, और नित्य ही ब्राह्मणों को अन्न, धन, धान इत्यादि दान देकर आशीर्वाद प्राप्त करता था।  उसने ऐसे ही पुण्य प्रताप के बल पर राजा इन्द्र को भी जीत कर स्वर्ग पर आधिपत्य कर लिया था, अतः सभी देवता भगवान् श्री हरी विष्णु के पास गए और राजा बलि से स्वर्ग वापस प्राप्त करने की याचना करने लगे।

भगवान् विष्णु ने वामन ब्राह्मण का रूप धारण किया और राजा बलि से दान दक्षिणा में तीन पग भूमि की याचना की। राजा बलि ने इसे तुच्छ दान समझकर तीन पग भूमि का संकल्प वामन अवतार को  दे दिया और दो ही पग में आकाश पाताल दोनों नाप दिया।  तब वामन अवतार श्री हरी ने  राजा बलि का हाथ पकड़कर कहा कि- हे राजन !अब तीसरा पग कहां रखूं?" तब बलि नतमस्तक हो गया और वामन रूप ने  अपना पैर उसके मस्तक पर रख दिया जिससे मेरा वह पाताल में प्रवेश कर गया। इस प्रकार देवताओं को स्वर्ग मिल गया और राजा बलि को मोक्ष्य।

जो भी साधक सविधि इस एकादशी का उपवास करते हैं,उनको सर्व सुख, मोक्ष्य और यश की प्राप्ति होती है । जो साधक इस कथा को पढ़ते, सुनाते या सुनते हैं, उनको वाजपेय यज्ञ का फल प्राप्त होता है। 

No comments:
Write comments