आश्विन माह की कृष्ण पक्ष की एकादशी तिथि को इंदिरा एकादशी भी कहा जाता है।
इस वर्ष यह एकादशी आज ही अर्थात १६ सितंबर को है। बड़े संयोग की बात है कि
आज ही सूर्यदेवता भी राशि परिवर्तन कर रहे हैं। अतः इस एकादशी का महत्व और
भी बढ गया है।
इंदिरा एकादशी का महत्व :
शास्त्रों के अनुसार बताया गया है कि इंदिरा एकादशी का व्रत करने वाले साधक को यमलोक की घोर यातना का सामना नहीं करना पड़ता। पद्म पुराण के अनुसार तो श्राद्ध पक्ष में आने वाली इस एकादशी को यदि पितृगणों को समर्पित कर दिया जाए तो, नरक में गए पितृगण भी वहां से मुक्त होकर स्वर्ग में विराजमान हो जाते हैं।
इंदिरा एकादशी व्रत की कथा :
एक समय की बात है माहिष्मती नगरी में राजा अमरेंद्र का राज्य था। एक दिन की बात है के राजा ने सपने में अपने पिता को नरक की यातनायें भोगते देखा। पिता ने राजा अमरेंद्र से कहा कि हे पुत्र ! मुझे इस नरक से मुक्ति दिलाने का कुछ उपाय करो। राजा अमरेंद्र ने नारद मुनि के सुझाव पर आश्विन मास की कृष्ण पक्ष की एकादशी का व्रत किया। इस व्रत से प्राप्त पुण्य को अपने पिता को समर्पित कर दिया। इसके प्रभाव के कारण राजा अमरेंद्र के पिता नरक से मुक्त होकर भगवान विष्णु के लोक बैकुंठ में चले गए।
इंदिरा एकादशी के व्रत की विधि :
इस व्रत के विषय में शास्त्रों में वर्णित विधि में बताया गया है कि इस दिन काले तिल और ऋतु फलों से भगवान विष्णु के चतुर्भुज स्वरूप की पूजा करनी चाहिए। विष्णु सहस्रनाम,गोपाल सहस्त्रनाम अथवा विष्णु सतनाम स्तोत्र का पाठ करने से विशेष फल की प्राप्ति होती है। अगले दिन अर्थात द्वादशी तिथि को व्रत का श्रद्धानुसार परायण अवश्य करना चाहिए।
शनिवार को एकादशी के संगम के कारण, शनि की पीड़ा से मुक्ति :
इस बार इंदिरा एकादशी शनिवार के दिन अतः काले तिल से भगवान विष्णु और लक्ष्मी माँ की पूजा करने से शनि दोष को भी दूर करने में सहायक होगा।
इंदिरा एकादशी का महत्व :
शास्त्रों के अनुसार बताया गया है कि इंदिरा एकादशी का व्रत करने वाले साधक को यमलोक की घोर यातना का सामना नहीं करना पड़ता। पद्म पुराण के अनुसार तो श्राद्ध पक्ष में आने वाली इस एकादशी को यदि पितृगणों को समर्पित कर दिया जाए तो, नरक में गए पितृगण भी वहां से मुक्त होकर स्वर्ग में विराजमान हो जाते हैं।
इंदिरा एकादशी व्रत की कथा :
एक समय की बात है माहिष्मती नगरी में राजा अमरेंद्र का राज्य था। एक दिन की बात है के राजा ने सपने में अपने पिता को नरक की यातनायें भोगते देखा। पिता ने राजा अमरेंद्र से कहा कि हे पुत्र ! मुझे इस नरक से मुक्ति दिलाने का कुछ उपाय करो। राजा अमरेंद्र ने नारद मुनि के सुझाव पर आश्विन मास की कृष्ण पक्ष की एकादशी का व्रत किया। इस व्रत से प्राप्त पुण्य को अपने पिता को समर्पित कर दिया। इसके प्रभाव के कारण राजा अमरेंद्र के पिता नरक से मुक्त होकर भगवान विष्णु के लोक बैकुंठ में चले गए।
इंदिरा एकादशी के व्रत की विधि :
इस व्रत के विषय में शास्त्रों में वर्णित विधि में बताया गया है कि इस दिन काले तिल और ऋतु फलों से भगवान विष्णु के चतुर्भुज स्वरूप की पूजा करनी चाहिए। विष्णु सहस्रनाम,गोपाल सहस्त्रनाम अथवा विष्णु सतनाम स्तोत्र का पाठ करने से विशेष फल की प्राप्ति होती है। अगले दिन अर्थात द्वादशी तिथि को व्रत का श्रद्धानुसार परायण अवश्य करना चाहिए।
शनिवार को एकादशी के संगम के कारण, शनि की पीड़ा से मुक्ति :
इस बार इंदिरा एकादशी शनिवार के दिन अतः काले तिल से भगवान विष्णु और लक्ष्मी माँ की पूजा करने से शनि दोष को भी दूर करने में सहायक होगा।
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