Tuesday, September 26, 2017

षष्टम नवरात्रा : माँ दुर्गा के छठे रूप माँ कात्यायनी की महिमा, जानिए कैसे उत्पत्ति हुई माँ कात्ययायनी की ?

 

षष्टम नवरात्रा, माँ दुर्गा,कात्यायनी, उत्पत्ति,माँ कात्ययायनी,Sixth day of navratra,maa durga,maa katyayni,Mahishasur,mardini
 
माँ कात्यायनी दुर्गा माँ का छठा रूप हैं। पौराणिक मतों के अनुसार माँ दुर्गा ने महर्षि कात्यायन की  पुत्री के रूप में जन्म लिया, इसीलिए माँ के इस स्वरुप का नाम कात्यायनी हुआ। नवरात्रा के छठे दिन माँ कात्यायनी देवी की पूजा आराधना की जाती है।

कात्यायनी देवी का स्वरूप
दिव्य स्वरूपा माँ कात्यायनी की काया स्वर्ण के समान कांतिमय है । चतुर्भुजा धारी माँ कात्यायनी की सवारी सिंह है । एक हाथ में तलवार और दूसरे हाथ में कमल पुष्प लिये हुए रहती है। माँ की शेष दो भुजाएं वरमुद्रा और अभयमुद्रा में हैं।

माँ दुर्गा कैसे बनी कात्यायनी ?
पौराणिक कथा के अनुसार एक वन में महर्षि कत नाम के एक ऋषि थे, उनका एक पुत्र हुआ जिसका नाम कात्य रखा गया। इसके पश्चात कात्य गोत्र में महर्षि कात्यायन ने जन्म लिया। महर्षि कात्यायन की कोई संतान नहीं थी अतः मां भगवती को पुत्री रूप में प्राप्त करने की इच्छा से उन्होंने पराम्बा की कठोर तपस्या की। महर्षि कात्यायन की तपस्या से प्रसन्न होकर देवी ने उन्हें पुत्री रूप में प्राप्त होने  का वरदान दिया। कुछ समय बीतने के बाद राक्षस महिषासुर का अत्याचार अत्यधिक बढ़ गया। तब त्रिदेवों के तेज से एक कन्या ने महर्षि कात्यायन के घर जन्म लिया और महिषासुर वध कर दिया। कात्य गोत्र में जन्म लेने के कारण देवी का नाम कात्यायनी पड़ गया। महिषासुर का वध करने के कारण माँ कात्यायनी को महिषासुर मर्दिनी भी कहा गया है।

देवी कात्यायनी का मंत्र  माँ कात्यायनी का उपासना मंत्र निम्न प्रकार से है-


                                          चंद्र हासोज्ज वलकरा शार्दू लवर वाहना|
                                        कात्यायनी शुभं दद्या देवी दानव घातिनि||


माँ कात्यायनी की पूजा विधि :
नवरात्र की षष्ठी तिथि के दिन माँ कात्यायनी देवी की पूजा में मधु अर्थात शहद का महत्व शास्त्रों में  बताया गया है। इस दिन माता के प्रसाद में मधु अर्थात शहद का उपयोग करने से माँ प्रसन्न होकर मनवांछित फल प्रदान करती है।

No comments:
Write comments