नवरात्र का तीसरा दिन माँ चंद्र घंटा की आराधना का दिन होता है , अर्थात माँ चंद्रघंटा ही भगवती का तीसरा रूप है। माँ चंद्रघंटा सिंह की सवारी करती है, जिनकी दस भुजाएं है, तीन नेत्र है और मस्तक पर घंटाकर अर्धचंद्र सुशोभित है, इसीलिए माँ जगदम्बे के इस रूप को चंद्रघंटा की संज्ञा दी गई है। माँ चंद्रघंटा की आराधना करने वाला साधक सदैव बलशाली और यशस्वी होता है।

शास्त्रों के अनुसार माँ चंद्रघंटा की पूजा आराधना करने से सभी जन्मों के पापों से मुक्ति मिलका मोक्ष्य की प्राप्ति होती है। माँ चंद्रघंटा के आठ हाथों में अस्त्र शस्त्र धारण किये हुए है अतः शत्रु दूर से हि भयाक्रांत होकर उसका नाश हो जाता है। शुद्ध अंतःकरण से माँ चंद्रघंटा की पूजा करते समय निम्नांकित मन्त्र का वाचन और जाप करें तो माँ चंद्रघंटा अवश्य ही प्रसन्न होकर मनवांछित फल प्रदान करती है।
पिण्डज प्रवरारुढ़ा चण्डकोपास्त्र कैर्युता |
प्रसादं तनुते मह्यं चंद्र घंष्टेति विश्रुता ||

शास्त्रों के अनुसार माँ चंद्रघंटा की पूजा आराधना करने से सभी जन्मों के पापों से मुक्ति मिलका मोक्ष्य की प्राप्ति होती है। माँ चंद्रघंटा के आठ हाथों में अस्त्र शस्त्र धारण किये हुए है अतः शत्रु दूर से हि भयाक्रांत होकर उसका नाश हो जाता है। शुद्ध अंतःकरण से माँ चंद्रघंटा की पूजा करते समय निम्नांकित मन्त्र का वाचन और जाप करें तो माँ चंद्रघंटा अवश्य ही प्रसन्न होकर मनवांछित फल प्रदान करती है।
पिण्डज प्रवरारुढ़ा चण्डकोपास्त्र कैर्युता |
प्रसादं तनुते मह्यं चंद्र घंष्टेति विश्रुता ||
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