नवरात्रा के पवित्र नौ दिनों में सप्तमी तिथि से ही कन्या पूजन का दौर प्रारम्भ हो जाता है, और इस पूरे प्रक्रम में छोटी छोटी कन्याओं को घर निमंत्रित किया जाता है,उनको दैवीय अवतार मानकर खूब मान सम्मान किया जाता है। दुर्गाष्टमी और नवमी के दिन इन नौ कन्याओं को नौ देवियों का प्रतिरूप मानकर घर बुलाकर इनका स्वागत किया जाता है, चरण वंदना की जाती है, नौ देवियों की तरह ही आदर सत्कार और स्वादिष्ट पकाएं युक्त भोजन कराने से लेकर भेंट चढाने तक सारे कार्य किये जाते है। ऐसी मान्यता है कि ऐसा करने से मां दुर्गा अत्यंत प्रसन्न होकर अपने साधकों को सुख समृद्धि और दीर्घायु का वरदान देती हैं।
कौनसा दिन श्रेष्ठ है कन्या पूजन के लिए ?
प्रायः समय की उपलब्धता के अनुसार लोग सप्तमी से ही कन्या पूजन प्रारम्भ कर देते है। किन्तु शास्त्रों के अनुसार अष्टमी तिथि को की गई कन्या पूजा सर्वाधिक फलदायी होती है।
कन्या पूजन की विधि
- कन्या पूजन के एक दिन पूर्व ही कन्याओं को अगराहपूर्वक निमंत्रण देना चाहिए
- बिना तैयारी के इधर-उधर से कन्याओं को पकड़ पकड़ के लाना सही नहीं होता है, पूरे सम्मान के साथ पूर्व तैयारी से कन्याओं को निमंत्रण देकर ही कन्या भोजन और पूजा करनी चाहिए
- घर आई कन्याओं का आत्मीयता से स्वागत करें और पूर्ण मान सम्मान से आतित्थ्य करें। घर आई इन नौ कन्याओं को आरामदायक और स्वच्छ आसान पर बिठाकर इनके चरणों को कच्चे दूध से भरे चौड़े पात्र में क्रमानुसार रखकर अपने हाथों से इन कन्याओं के चरण प्रक्षालन करना चाहिए और स्वच्छ पानी से धोकर चरण छूकर आशीर्वाद लेना चाहिए।
- तत्पश्चात कन्याओं के मस्तक पर अक्षत, पुष्प और कुंकुम का टीका लगाना चाहिए।
- फिर माँ दुर्गा का स्मरण करके माँ का जयकार करें और इन नौ देवी रूपी कन्याओं को अपनी सामर्थ्य के अनुसार स्वादिष्ट भोजन भरपेट कराएं।
- भोजन समाप्ति के पश्चात सभी नौ कन्याओं को सामर्थ्य के अनुसार भेंट व दक्षिणा अथवा उपहार दें और पुनः चरण छूकर इनका आशीर्वाद लें।
- अंत में सभी कन्याओं को आदर के साथ घर तक छोड़कर आएं।

कन्या पूजन के लिए कितने आयु की कन्या को करे निमंत्रित ?
कन्याओं की आयु दो वर्ष से कम तथा 9 वर्ष से अधिक नहीं होनी चाहिए तथा संख्या कम से कम 9 तो होनी ही चाहिए और एक बालक भी होना चाहिए जिसे भैरव या हनुमान जी का रूप माना जाता है। जिस प्रकार बिना भैरव के माँ की पूजा पूर्ण नहीं होती, उसी प्रकार कन्या-पूजन भी बिना बालक के अपूर्ण होती है।
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