माँ कुष्मांडा की आराधना नवरात्र के चौथे दिन की जाती है, अतः माँ दुर्गा
का चौथा अवतार माँ कुष्मांडा ही है। कुष्मांडा का अर्थ है ब्रह्माण्ड
स्वरूपी अंड के रूप में विद्यमान देवी, जिन्होंने इस पूरे ब्रह्माण्ड का
निर्माण किया है। हिन्दू धर्म के प्राचीन ग्रंथों में वर्णित प्रसंगों के
अनुसार भगवान् विष्णु ने जब ब्रह्माण्ड का निर्माण प्रारम्भ किया तो माँ
दुर्गा ने खिलते पुष्प की भांति मुस्कान बिखेरी, जिससे सृष्टि का निर्माण
हुआ। माँ कुष्मांडा की अष्ट भुजाएं है जिनमे वे कमंडल, धनुष, तीर, अमृत कलश, कमल,चक्र, गदा, माला आदि धारण किये हुए रहती है।
आध्यात्मिक भाव में माँ कुष्मांडा "अनाहत चक्र" को धारण करती है। माँ कुष्मांडा की आराधना से साधक को सुस्वास्थ्य और धन की प्राप्ति होती है। माँ कुष्मांडा जीवन में आने वाली समस्त विपत्तियों का नाश करके जीवन को अन्धकार से प्रकाश की और ले जाती है। माँ कुष्मांडा की सत्य भाव से आराधना करने के लिए निम्नांकित मन्त्र का जाप करने से माँ शीघ्र प्रसन्न होकर मनवांछित फल प्रदान करती है
सुरासम्पूर्णकलशं रुधिराप्लुतमेव च ।
दधाना हस्तपद्माभ्यां कूष्माण्डा शुभदास्तु मे ॥
आध्यात्मिक भाव में माँ कुष्मांडा "अनाहत चक्र" को धारण करती है। माँ कुष्मांडा की आराधना से साधक को सुस्वास्थ्य और धन की प्राप्ति होती है। माँ कुष्मांडा जीवन में आने वाली समस्त विपत्तियों का नाश करके जीवन को अन्धकार से प्रकाश की और ले जाती है। माँ कुष्मांडा की सत्य भाव से आराधना करने के लिए निम्नांकित मन्त्र का जाप करने से माँ शीघ्र प्रसन्न होकर मनवांछित फल प्रदान करती है
सुरासम्पूर्णकलशं रुधिराप्लुतमेव च ।
दधाना हस्तपद्माभ्यां कूष्माण्डा शुभदास्तु मे ॥
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