Wednesday, October 4, 2017

हमारे व्रत और त्यौंहार : शरद पूर्णिमा का वैदिक महत्व,करें ये उपाय, घर में हो जायेगी धन धान्य की बरसात

 

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आश्चिन मास की पूर्णिमा को शरद पूर्णिमा,कोजोगार पूर्णिमा अथवा रास पूर्णिमा के रूप में मनाया जाता है।  

शरद पूर्णिमा व्रत करने की शास्त्र सम्मत विधि 
नित्य कर्म से निवृत्त होकर भगवान् श्री विष्णु और लक्ष्मी जी की पूजा करनी चाहिए। इस दिन गोपाल सहस्त्रनाम व श्रीसूक्त अथवा लक्ष्मीस्तोत्र का पाठ करने से माता लक्ष्मी अति प्रसन्न होकर धन-धान्य, मान-प्रतिष्ठा, सुख समृद्धि प्रदान करती हैं। पूजा के उपरांत यथासंभव दान करना चाहिए।  रात्रि को खीर बनाकर भगवान् को भोग लगाएं और चंद्र की रश्मियों में रखना चाहिए। ऐसी मान्यता है की इस दिन चन्द्रमा कि किरणों से अमृत वर्षा होती है, जिससे खीर अमृत का रूप धारण कर लेती है।  

खीर के विषय में वैज्ञानिक अवधारणा  
शरद पूर्णिमा की रात को चंद्रमा धरती के सबसे निकट होता है, अतःचंद्रमा  के प्रकाश में मौजूद वायुमंडलीय तत्व सीधे पृथ्वी पर गिरते हैं।  खाने-पीने की चीजें खुले आकाश के नीचे रखने से चंद्रमा की किरणे सीधे उन पर भी अवश्य पड़ती है।  जिससे कि विशेष पोषक तत्व खाद्य पदार्थों में मिल जाते हैं जो हमारी सेहत के लिए अनुकूल होते हैं। 

शरद पूर्णिमा की व्रत कथा
आश्विन मास की पूर्णिमा(शरद पूर्णिमा) की पौराणिक कथा कुछ इस प्रकार से है -
एक साहूकार के दो पुत्रियां थी। दोनों पुत्रियां पूर्णिमा का व्रत रखती थी, परन्तु बड़ी पुत्री विधिपूर्वक पूरा व्रत करती थी जबकि छोटी पुत्री आधा अधूरा व्रत ही किया करती थी। संयोग से साहूकार के छोटी पुत्री की संतान पैदा होते ही मर जाती थी। उसने पंडितों से अपने संतानों के मरने का कारण पूछा तो उन्होंने बताया कि पहले समय में तुम पूर्णिमा का अधूरा व्रत किया करती थी, जिस कारणवश तुम्हारी सभी संतानें पैदा होते ही मर जाती है। फिर छोटी पुत्री ने पंडितों से इसका उपाय पूछा तो उन्होंने बताया कि यदि तुम विधिपूर्वक पूर्णिमा का व्रत करोगी, तब तुम्हारे संतान जीवित रह सकते हैं। साहूकार की छोटी कन्या ने उन भद्रजनों की सलाह पर पूर्णिमा का व्रत विधिपूर्वक संपन्न किया। फलस्वरूप उसे पुत्र रत्न की प्राप्ति हुई परन्तु वह शीघ्र ही मृत्यु को प्राप्त हो गया। तब छोटी पुत्री ने उस लड़के को पीढ़ी पर लिटाकर उसे कपडे से ढंक दिया।

बड़ी बहन जब पीढ़े पर बैठने लगी तो उसका घाघरा उस मृत बच्चे को छू गया, बच्चा घाघरा छूते ही रोने लगा। बड़ी बहन बोली- तुम तो मुझे कलंक लगाना चाहती थी। मेरे बैठने से तो तुम्हारा यह बच्चा यह मर जाता। तब छोटी बहन बोली- बहन तुम नहीं जानती, यह तो पहले से ही मरा हुआ था, तुम्हारे भाग्य से ही फिर से जीवित हो गया है। तेरे पुण्य से ही यह जीवित हुआ है। देखते ही देखते बच्चा जीवित होकर खेलने लगा। 

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