Sunday, October 8, 2017

हमारे व्रत त्यौहार : करवा चौथ महत्व, वैदिक व्रत विधि और सम्पूर्ण व्रत कथा

 

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भारत एक आध्यात्मिक संस्कृति वाला देश है।  यहाँ जितने त्यौंहार मनाये जाते है शायद ही विश्व के किसी अन्य देश में मनाये जाते हों। प्रतिमाह औसतन २-३ प्रमुख त्यौहार तो आते ही है। इन्ही प्रमुख त्यौंहारों में से ही एक करवा चौथ भी है। करवा चौथ कार्तिक मास कृष्ण पक्ष के चतुर्थी को प्रतिवर्ष बड़े ही धूम धाम से देश भर में मनाया जाता है।  यह व्रत सौभाग्यवती स्त्रियों के लिए ही होता है।  इस व्रत के माध्यम से सुहागिनें अपनी पति की कुशलता और लम्बी आयु के कामना करती है।  आजकल सब एकल परिवारों में रहते है अतः इस महत्त्व पूर्ण व्रत के बारे में जानकारी देने वाला कोई नहीं मिलता इसीलिए वैदिक भारत ने सभी माताओं और बहनों के लिए इस व्रत की वैदिक विधि प्रस्तुत की है।   
करवा चौथ, की वैदिक व्रत विधि


करवा चौथ की वैदिक व्रत विधि :- 
1. ब्रह्म मुहूर्त से पहले जागरण करके स्‍नान करें और व्रत प्रारम्भ करने का संकल्‍प लें और सूर्योदय से पूर्व जो भी  हल्का फुल्का चाय नाश्ता करना हो कर लें  
2. इसके पश्चात करवा चौथ का निर्जल व्रत प्रारम्भ हो जाता है। मां पार्वती, महादेव शिव, चौथ माता व गणेश जी का स्मरण करते हुए सुबह का पूजा पाठ कर लें 
3.  पूरा दिन निर्जल और निराहार रहकर व्रत का पालन करें 
4. संध्याकाळ में दीवार पर गेरू से पुताई करके सफ़ेद मिटटी के घोल से करवा चौथ और गणेश जी स्थापित करने का चित्र बनाएं । देशी घी में आठ पूरियां और हलुआ बनाएं तथा पक्के पकवान बनाएं। 
5. फिर पीली मिट्टी से मां गौरी के स्वरुप में  और शिव जी की मूर्ति बना कर मां गौरी की गोद में गणेश जी का स्‍वरूप बिठाएं । 
6.  मिट्टी का टोंटीदार करवा लें और उसमे शक्‍कर का बूरा भर दें। उसके ऊपर दक्षिणा रखें। करवे पर कुमकुम से स्‍वास्तिक स्थापित करें । 
7. शिव, गौरी और गणेश के स्‍वरूपों की पूजा करें। इस मंत्र का जाप करें - 
'नमः शिवायै शर्वाण्यै सौभाग्यं संतति शुभाम्‌। प्रयच्छ भक्तियुक्तानां नारीणां हरवल्लभे॥'  
8. अब करवा चौथ की कथा सुननी चाहिये। कथा सुनने के बाद आपको अपने घर के सभी वरिष्‍ठ लोगों का चरण स्‍पर्श कर लेना चाहिये। 
9. रात्रि में चंद्रोदय के समय छलनी के प्रयोग से चंद्र दर्शन करके उसे अर्घ्य प्रदान करें और विधि विधान से चन्द्रमा की पूजा करें, धुप दीप और नैवेद्य अर्पित करें । तत्पश्चात पति के पैरों को छूते हुए उनका आर्शिवाद लें। 
10. पति से जल ग्रहण करने की आज्ञा पाकर, सर्वप्रथम पति देव को प्रसाद दें और भोजन करवाएं और खुद भी भोजन करें। 

 करवा चौथ की व्रत कथा :-

करवा चौथ की व्रत कथा :-
बहुत समय पहले की बात है, एक साहूकार के सात बेटे और उनकी एक बहन करवा थी। सभी सातों भाई अपनी बहन से बहुत प्यार करते थे। यहां तक कि वे पहले उसे खाना खिलाते और बाद में स्वयं खाते थे। एक बार उनकी बहन ससुराल से मायके आई हुई थी। शाम को भाई जब अपना व्यापार-व्यवसाय बंद कर घर आए तो देखा उनकी बहन बहुत व्याकुल थी। सभी भाई खाना खाने बैठे और अपनी बहन से भी खाने का आग्रह करने लगे, लेकिन बहन ने बताया कि उसका आज करवा चौथ का निर्जल व्रत है और वह खाना सिर्फ चंद्रमा को देखकर उसे अर्घ्‍य देकर ही खा सकती है। चूंकि चंद्रमा अभी तक नहीं निकला है, इसलिए वह भूख-प्यास से व्याकुल हो उठी है।

सबसे छोटे भाई को अपनी बहन की हालत देखी नहीं जाती और वह दूर पीपल के पेड़ पर एक दीपक जलाकर चलनी की ओट में रख देता है। दूर से देखने पर वह ऐसा प्रतीत होता है कि जैसे चतुर्थी का चांद उदित हो रहा हो।
इसके बाद भाई अपनी बहन को बताता है कि चांद निकल आया है, तुम उसे अर्घ्य देने के बाद भोजन कर सकती हो। बहन खुशी के मारे सीढ़ियों पर चढ़कर चांद को देखती है, उसे अर्घ्‍य देकर खाना खाने बैठ जाती है।

वह पहला टुकड़ा मुंह में डालती है तो उसे छींक आ जाती है। दूसरा टुकड़ा डालती है तो उसमें बाल निकल आता है और जैसे ही तीसरा टुकड़ा मुंह में डालने की कोशिश करती है तो उसके पति की मृत्यु का समाचार उसे मिलता है। वह बौखला जाती है।उसकी भाभी उसे सच्चाई से अवगत कराती है कि उसके साथ ऐसा क्यों हुआ। करवा चौथ का व्रत गलत तरीके से टूटने के कारण देवता उससे नाराज हो गए हैं और उन्होंने ऐसा किया है।


सच्चाई जानने के बाद करवा निश्चय करती है कि वह अपने पति का अंतिम संस्कार नहीं होने देगी और अपने सतीत्व से उन्हें पुनर्जीवन दिलाकर रहेगी। वह पूरे एक साल तक अपने पति के शव के पास बैठी रहती है। उसकी देखभाल करती है। उसके ऊपर उगने वाली सूईनुमा घास को वह एकत्रित करती जाती है। एक साल बाद फिर करवा चौथ का दिन आता है। उसकी सभी भाभियां करवा चौथ का व्रत रखती हैं। जब भाभियां उससे आशीर्वाद लेने आती हैं तो वह प्रत्येक भाभी से 'यम सूई ले लो, पिय सूई दे दो, मुझे भी अपनी जैसी सुहागिन बना दो' ऐसा आग्रह करती है, लेकिन हर बार भाभी उसे अगली भाभी से आग्रह करने का कह चली जाती है।

इस प्रकार जब छठे नंबर की भाभी आती है तो करवा उससे भी यही बात दोहराती है। यह भाभी उसे बताती है कि चूंकि सबसे छोटे भाई की वजह से उसका व्रत टूटा था अतः उसकी पत्नी में ही शक्ति है कि वह तुम्हारे पति को दोबारा जीवित कर सकती है, इसलिए जब वह आए तो तुम उसे पकड़ लेना और जब तक वह तुम्हारे पति को जिंदा न कर दे, उसे नहीं छोड़ना। ऐसा कह कर वह चली जाती है। सबसे अंत में छोटी भाभी आती है। करवा उनसे भी सुहागिन बनने का आग्रह करती है, लेकिन वह टालमटोली करने लगती है। इसे देख करवा उन्हें जोर से पकड़ लेती है और अपने सुहाग को जिंदा करने के लिए कहती है। भाभी उससे छुड़ाने के लिए नोचती है, खसोटती है, लेकिन करवा नहीं छोड़ती है। अंत में उसकी तपस्या को देख भाभी पसीज जाती है और अपनी छोटी अंगुली को चीरकर उसमें से अमृत उसके पति के मुंह में डाल देती है। करवा का पति तुरंत श्रीगणेश-श्रीगणेश कहता हुआ उठ बैठता है। इस प्रकार प्रभु कृपा से उसकी छोटी भाभी के माध्यम से करवा को अपना सुहाग वापस मिल जाता है।  हे श्री गणेश- मां गौरी जिस प्रकार करवा को चिर सुहागन का वरदान आपसे मिला है, वैसा ही सब सुहागिनों को मिले। बोलो चौथ माता गणेश जी की जय ! 

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