शनिवार
४ नवम्बर २०१७ को कार्तिक मास की पूर्णिमा है। शास्त्रों में कार्तिक माह
बहुत ही पवित्र माह माना जाता है, विशेषतया कार्तिक मास की पूर्णिमा का
दिन बहुत ही शुभ दिन माना जाता है। इ्स दिन स्नान और दान का विशेष महत्व
है, इस दिन गंगा और अन्य पवित्र नदी सरोवर में स्नान करने से सभी जन्मों के
पापों से मुक्ति होकर मोक्ष की प्राप्ति होती है। इस विशेष दिवस पर
शास्त्र सम्मत पूजा अर्चना करना बहुत ही फलदायी होता है फलस्वरूप इससे
समृद्धि आकर जातक के सभी कष्ट दूर हो जाते हैं।

सभी प्रमुख तीर्थ स्थलों और नदी सरोवर तटों पर इस दिन बहुत भीड़ भाड़ होती है इस पर्व को बड़ी ही धूमधाम से मनाया जाता है। इस दिन श्रद्धालु गंगा स्नान कर दीप दान और वस्तु दान करते हैं। इलाहाबाद, वाराणसी, अयोध्या, पुष्कर, हरिद्वार, ऋषिकेश जैसे शहरों में यह पर्व बड़ी ही धूमधाम से मनाया जाता है। कार्तिक पूर्णिमा को गंगा स्नान और उपवास करने से सहस्त्र अश्वमेघ और सौ राजसूय यज्ञ का पुण्य और फल प्राप्त होता है।
इस दिन की पूजा विधि
- ब्रह्म मुहूर्त में उठकर सूर्य देवता को जल से अर्घ्य करें, जल में चावल और लाल पुष्प, कुमकुम आदि भी डालें।
- स्नान के पश्चात घर के मुख्यद्वार पर आम अथवा अशोक के पत्तों का बंदनवार बनाकर बांधे।
- किसी जरूरतमंद को अन्न, वस्त्र, आभूषण आदि सामर्थ्यानुसार दान करें।
- संध्या काल में तुलसी के पास घी का दीप जलाएं और तुलसी मैया की परिक्रमा करें.
- चंद्रोदय के समय समय शिवा, संभूति, संतति, प्रीति, अनुसूया और क्षमा इन छ: कृतिकाओं का पूजन अवश्य करें इस से भगवानशिव भोलेनाथ प्रसन्न होकर आशीर्वाद देते है।
कार्तिक पूर्णिमा की कथा और रहस्य
शास्त्रों में उल्लेखित है कि कार्तिक पूर्णिमा को ही भगवान शिव ने त्रिपुर नामक राक्षस का वध किया था। त्रिपुर ने तीनों लोकों में अजेय होने के लिए एक लाख वर्ष तक प्रयाग तीर्थ में कठिन तपस्या कर ब्रह्मा जी से मनुष्य और देवताओं के हाथों ना मारे जाने का वरदान हासिल किया था। इसके बाद भगवान शिव ने ही उसका संहार कर के संसार को उसके अत्याचारों से मुक्ति दिलाई थी।
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शास्त्रों में उल्लेखित है कि कार्तिक पूर्णिमा को ही भगवान शिव ने त्रिपुर नामक राक्षस का वध किया था। त्रिपुर ने तीनों लोकों में अजेय होने के लिए एक लाख वर्ष तक प्रयाग तीर्थ में कठिन तपस्या कर ब्रह्मा जी से मनुष्य और देवताओं के हाथों ना मारे जाने का वरदान हासिल किया था। इसके बाद भगवान शिव ने ही उसका संहार कर के संसार को उसके अत्याचारों से मुक्ति दिलाई थी।
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