Tuesday, September 12, 2017

विशेष रिपोर्ट:गलत प्रचार से कैसे ३३ कोटि देवताओं को ३३ करोड़ बना दिया गया? पढ़िए हिन्दू धर्म का सामान्य ज्ञान !

 

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जैसा की सर्वविदित है, हिन्दू धर्म की सभ्यता और संस्कृति पूरे ब्रह्माण्ड में सबसे प्राचीन है । करोड़ों वर्षों से हिन्दू धर्म निर्विवादित रूप से पूरे संसार का मार्ग दर्शक रहा है, किन्तु कालान्तर में हिन्दू धर्म में अलग अलग सम्प्रदाय बंटते चले गए और, इस मतान्तर का हिन्दु विरोधी ताकतों ने भरपूर लाभ उठाकर धर्म के खिलाफ जमकर दुष्प्रचार किया ।
इस दुष्प्रचार के कारण हिन्दू धर्म से विमुख होकर अन्धविश्वासी हो गए, और आज स्थिति यह है की एक सामान्य हिन्दू को अपने धर्म से जुड़ी सामान्य से सामान्य जानकारी भी नहीं है । तो आज वैदिक भारत डॉट इन आपको हिन्दू धर्म से जुडी तमाम सामान्य और जरूरी जानकारी उपलब्ध कराने जा रहा है जो आपको अपने इष्ट जनों के साथ अवश्य सांझा करनी चाहिए, तभी आम जन को और युवाओं को हमारे धर्म के बारे में वांछित और अत्यधिक आवश्यक जानकारी हो पाएगी |  

३३ करोड़ नहीं ३३ कोटी देवी देवता हैँ हिंदू धर्म में ;

कोटि = प्रकार ।
देवभाषा संस्कृत में कोटि के दो अर्थ होते हैं । कोटि का मतलब प्रकार होता है, और एक अर्थ करोड़ भी होता ।
हिंदू धर्म का दुष्प्रचार करने के लिए ये बात उड़ाई गयी की हिन्दूओं के ३३ करोड़ देवी देवता हैं और अब तो मुर्ख हिन्दू खुद ही गाते फिरते हैं की हमारे ३३ करोड़ देवी देवता हैं...

कुल ३३ कोटि (प्रकार) के देवी देवता हैँ हिंदू धर्म में क्रमशः :-


१२ प्रकार हैँ :-आदित्य , धाता, मित, आर्यमा, शक्रा, वरुण, अँशभाग, विवास्वान, पूष, सविता, तवास्था, और विष्णु |
८ प्रकार हैं :-वासु:, धरध्रुव, सोम, अह, अनिल, अनल, प्रत्युष और प्रभाष।

११ प्रकार हैं :- रुद्र: ,हरबहुरुप, त्रयँबक, अपराजिता, बृषाकापि, शँभू, कपार्दी, रेवात, मृगव्याध, शर्वा, और कपाली।

२ प्रकार हैँ :- अश्विनी और कुमार ।

कुल :- १२+११+८+२=३३  कोटी


यह बहुत ही अच्छी जानकारी है इसे अधिक से अधिक लोगों में बाँटिये और इस कार्य के माध्यम से पुण्य के भागीदार बनिये ।  एक हिंदू होने के नाते जानना आवश्यक है । अब आपकी बारी है कि इस जानकारी को आगे बढ़ाए अपने भारत की संस्कृति को पहचानें। ज्यादा से ज्यादा लोगों तक पहुचायें।
खासकर अपने बच्चों और समाज के समस्त युवाओं को बताएं  क्योंकि ये बात उन्हें कोई दुसरा व्यक्ति नहीं बताएगा

एक माह में दो पक्ष-
कृष्ण पक्ष , शुक्ल पक्ष |

तीन ऋण -
देव ऋण , पितृ ऋण , ऋषि ऋण |

चार युग -
सतयुग , त्रेतायुग , द्वापरयुग , कलियुग |

चार धाम -
द्वारिका , बद्रीनाथ , जगन्नाथ पुरी , रामेश्वरम धाम |

चारपीठ -
शारदा पीठ ( द्वारिका ) ज्योतिष पीठ ( जोशीमठ बद्रिधाम ) गोवर्धन पीठ ( जगन्नाथपुरी ) , शृंगेरीपीठ |

चार वेद-
ऋग्वेद , अथर्वेद , यजुर्वेद , सामवेद |

चार आश्रम -
ब्रह्मचर्य , गृहस्थ , वानप्रस्थ , संन्यास |

चार अंतःकरण -
मन , बुद्धि , चित्त , अहंकार |

पञ्च गव्य -

गाय का घी, दूध, दही, गोमूत्र, गोबर |

पञ्च देव -
गणेश , विष्णु , शिव , देवी , सूर्य
पंच तत्त्व -
पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु, आकाश |

छह दर्शन -
वैशेषिक, न्याय, सांख्य, योग, पूर्व मिसांसा, दक्षिण मिसांसा |

सप्त ऋषि -
विश्वामित्र, जमदाग्नि, भरद्वाज, गौतम, अत्री, वशिष्ठ और कश्यप |

सप्त पुरी -
अयोध्या पुरी, मथुरा पुरी, माया पुरी ( हरिद्वार ), काशी, कांची ( शिन कांची - विष्णु कांची ), अवंतिका और
द्वारिका पुरी |

आठ योग -
यम, नियम, आसन, प्राणायाम, प्रत्याहार, धारणा, ध्यान एवं समाधि |

आठ लक्ष्मी -
आध्या, विद्या, सौभाग्य, अमृत, काम, सत्य, भोग, एवं योग लक्ष्मी |

नव दुर्गा -
शैल पुत्री, ब्रह्मचारिणी, चंद्रघंटा, कुष्मांडा, स्कंदमाता, कात्यायिनी, कालरात्रि, महागौरी एवं सिद्धिदात्री |

दस दिशाएं -
पूर्व, पश्चिम, उत्तर, दक्षिण, ईशान, नैऋत्य, वायव्य, अग्नि, आकाश एवं पाताल |

मुख्य ११ अवतार -
मत्स्य, कच्छप, वराह, नरसिंह, वामन, परशुराम, श्री राम, श्री कृष्ण, बलराम, बुद्ध, एवं कल्कि |

बारह मास -
चैत्र, वैशाख, ज्येष्ठ, अषाढ, श्रावण, भाद्रपद, अश्विन, कार्तिक, मार्गशीर्ष, पौष, माघ, फागुन |

बारह राशी -
मेष, वृषभ, मिथुन, कर्क,  सिंह, कन्या, तुला, वृश्चिक, धनु, मकर, कुंभ, कन्या |

बारह ज्योतिर्लिंग -
सोमनाथ, मल्लिकार्जुन, महाकाल, ओमकारेश्वर, बैजनाथ, रामेश्वरम, विश्वनाथ, त्र्यंबकेश्वर, केदारनाथ, घुष्नेश्वर, भीमाशंकर, नागेश्वर |
पंद्रह तिथियाँ -
प्रतिपदा, द्वितीय, तृतीय, चतुर्थी, पंचमी, षष्ठी, सप्तमी, अष्टमी, नवमी, दशमी, एकादशी, द्वादशी, त्रयोदशी, चतुर्दशी, पूर्णिमा, अमावास्या |

स्मृतियां -
मनु, विष्णु, अत्री, हारीत, याज्ञवल्क्य, उशना, अंगीरा, यम, आपस्तम्ब, सर्वत, कात्यायन, ब्रहस्पति, पराशर, व्यास, शांख्य, लिखित, दक्ष,शातातप, वशिष्ठ |


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