जब श्रीकृष्ण महाभारत के युद्ध पश्चात् लौटे तो रोष में भरी रुक्मिणी ने उनसे पूछा.., " बाकी सब तो ठीक था किंतु आपने द्रोणाचार्य और भीष्म पितामह जैसे धर्मपरायण लोगों के वध में पांडवों का साथ क्यों दिया?"
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श्री कृष्ण ने उत्तर दिया.., "ये सही है की द्रोणाचार्य और भीष्म पितामह ने जीवन पर्यंत धर्म का पालन किया किन्तु उनके किये एक पाप ने उनके सारे पुण्यों को हर लिया "
"वो कौनसे पाप थे?"
श्री कृष्ण ने कहा : "जब भरी सभा में द्रोपदी का चीर हरण हो रहा था तब ये दोनों भी वहां उपस्थित थे, और बड़े होने के नाते ये दुशासन को ऐसा पाप नहीं करने की आज्ञा भी दे सकते थे, किंतु इन्होंने ऐसा नहीं किया, उनके इस एक पाप से बाकी धर्मनिष्ठता छोटी पड गई"
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रुक्मिणी ने पुछा, "और करण? वो तो अपनी दानवीरता के लिए जगत प्रसिद्ध था ,कोई उसके द्वार से खाली हाथ नहीं गया, उसकी क्या गलती थी?"
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श्री कृष्ण ने कहा, "वस्तुतः वो अपनी दानवीरता के लिए विख्यात था और उसने कभी किसी को ना नहीं कहा, किन्तु जब अभिमन्यु सभी युद्धवीरों को धूल चटाने के बाद युद्धक्षेत्र में आहत हुआ भूमि पर पड़ा था तो उसने करण से, जो उसके पास खड़ा था, पानी माँगा ,करण जहाँ खड़ा था उसके पास पानी का एक गड्ढा था किंतु करण ने मरते हुए अभिमन्यु को पानी नहीं दिया इसलिये उसका जीवन भर दानवीरता से कमाया हुआ पुण्य नष्ट हो गया। बाद में उसी गड्ढे में उसके रथ का पहिया फंस गया और वो मारा गया"
अक्सर ऐसा होता है की हमारे आसपास कुछ गलत हो रहा होता है और हम कुछ नहीं करते । हम सोचते हैं की इस पाप के भागी हम नहीं हैं किंतु मदद करने की स्थिति में होते हुए भी कुछ ना करने से हम उस पाप के उतने ही हिस्सेदार हो जाते हैं ।
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किसी स्त्री, बुजुर्ग, कमज़ोर या बच्चे पर अत्याचार होते देखना और कुछ ना करना हमें पाप का भागी बनाता है। सड़क पर दुर्घटना में घायल हुए व्यक्ति को लोग नहीं उठाते हैं क्योंकि वो समझते है की वो पुलिस के चक्कर में फंस जाएंगे|
आपके अधर्म का एक क्षण सारे जीवन के कमाये धर्म को नष्ट कर सकता है।
#वैदिक_भारत
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