चांपेकर बंधुओं के नाम से सुप्रसिद्ध बलिदानी भाइयों में दामोदर हरि चांपेकर उस परिवार के अग्रज थे, जिसके त्रिरत्नों ने स्वयं को भारत माँ की अस्मिता की रक्षा के लिए सर्वोच्च बलिदान कर दिया। दामोदर हरि चांपेकर का जन्म २५ जून, १८६९ को पुणे में विख्यात कथावाचक श्री हरि विनायक पन्त के घर में हुआ था। दामोदर हरि चांपेकर के जन्म के बाद १८७३ में बालकृष्ण चांपेकर और १८७९ में वासुदेव चांपेकर का जन्म हुआ। चांपेकर बंधू बचपन से ही अपने गुणी पिता श्री हरि विनायक पन्त के साथ भजन कीर्तन में बढ़चढ़कर भाग लेते थे।
दामोदर चांपेकर को भजन गायन के साथ साथ काव्यपाठ और व्यायाम का भी बहुत शौक था। चांपेकर परिवार के साथ साथ उनके पडोसी भी बालगंगाधर तिलक का अखबार केसरी पढ़ते थे तथा तिलक जी को अपना आदर्श मानते थे | तिलक जी को जब अंग्रेजों ने गिरफ्तार किया, तो दामोदर बहुत रोये। उन्होंने खाना पीना भी छोड़ दिया । इस पर उनकी माँ ने उन्हें समझाया और कहा कि- बेटा तिलक जी ने हमें रोना नहीं, लड़ना सिखाया है।" बस फिर क्या था ? बाल दामोदर ने माँ की यह सीख गाँठ बाँध ली।
आगे जाकर उन्होंने ‘राष्ट्र हितेच्छु मंडल’ के नाम से राष्ट्रवादी युवकों का एक ऊर्जावान संगठन बनाया। संगठन के सभी सदस्यों में एक राय थी की- "राष्ट्र के लिए स्वयं को मजबूत बनाओ" अतः उन्होंने नित्य व्यायाम करना प्रारम्भ कर दिया । जब उन्हें वासुदेव बलवन्त फड़के की जेल में अमानवीय हत्या का समाचार मिला, तो संगठन के सब युवाओं ने सिंहगढ़ दुर्ग पहुंचकर वासुदेव बलवन्त फड़के के अधूरे काम को पूर्ण करने का प्रण किया। दामोदर चांपेकर ने शस्त्र चलाना सीखने के लिए अंग्रेजों की सेना में भर्ती होने का प्रयास किया; पर उनका यह प्रयास विफल हो गया। अंततः वह अपने पिता की विरासत संभालने लगे।
एक बार किसी काम से वे तत्कालीन बम्बई गये। वहाँ लोग इकट्ठे होकर रानी विक्टोरिया की आदमकद मूर्ति के सामने भरी सभा में रानी के गुणगान कर रहे थे। दामोदर ने अर्धरात्रि में विक्टोरिया की मूर्ति पर कालिख पोत दी, तथा गले में जूतों का हार पहना दिया । इस घटना से अफरा तफरी मच गई । उन्हीं दिनों पुणे में प्लेग का आतंक था, अतः प्रशासन ने मिस्टर रैण्ड को प्लेग कमिश्नर बनाकर पुणे भेजा। वह प्लेग की बीमारी की जाँच करने के नाम पर सब के घरों और पूजागृहों में जूते पहनकर घुस जाता, माताओं-बहनों पर अत्याचार करता। दामोदर एवं उनके संगठन ने अंग्रेज अफसर मिस्टर रेन्ड को सबक सिखाने का निश्चय किया। इसके लिए लोकमान्य तिलक जी का आशीर्वाद उनके साथ था।
२२ जून, १८९७ को रानी विक्टोरिया का ६० वाँ राज्यारोहण दिवस था। अंग्रेजी प्रशासन की ओर से पूरे देश में समारोह मनाये जा रहे थे, पुणे में भी रात के समय एक क्लब में पार्टी थी। रैण्ड जब पार्टी से वापस लौट रहा था, तो दामोदर हरि चांपेकर तथा उनके संगठन के अन्य मित्रों ने उस पर गोली चला दी। इस घटना में आर्यस्ट नामक अंग्रेज अधिकारी वहीं घटना स्थल पर मारा गया। रैण्ड भी बुरी तरह घायल हो गया तथा तीन जुलाई को अस्पताल में उसकी मृत्यु हो गई।
पूरे पुणे शहर में हाहाकार मच गया; पर वे पुलिस के हाथ न आये। कुछ समय बाद दो द्रविड़ भाइयों के विश्वासघात से दामोदर और फिर बालकृष्ण पकडे़ गये। जिन्होंने विश्वासघात कर उन्हें पकड़वाया था, वासुदेव और रानाडे ने उन्हें गोली से उड़ा दिया। रामा पांडू नामक पुलिसकर्मी ने अत्यधिक उत्साह दिखाया था, उस पर थाने में ही गोली चलाई; पर वह बच गया।
न्याय दिलाने का पूरा नाटक हुआ और अंततः १८ अप्रैल, १८९८ को अमर बलिदानी राष्ट्रभक्त वीर दामोदर चांपेकर को फाँसी दे दी गयी। अन्तिम समय में उनके हाथ में लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक जी द्वारा लिखित तथा हस्ताक्षरित ग्रन्थ ‘गीता रहस्य’ था। उन्होंने हँसते हुए स्वयं ही फाँसी का फन्दा गले में डाला। आगे चलकर उनके भाई बालकृष्ण, वासुदेव और रानाडे को भी अंग्रेजों द्वारा फाँसी पर चढ़ा दिया गया।
ऐसे परम देशभक्त परिवार को वैदिक भारत परिवार, http://www.vaidikbhatrat.in और समस्त पाठकों की तरफ से हार्दिक श्रद्धांजली |
वीर चांपेकर बंधू अमर रहे
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