सुदर्शन चक्र के साथ अनेक पौराणिक मान्यताएं जुडी है। श्री हरी विष्णु और उनके अवतार श्री कृष्ण ने सुदर्शन चक्र को धारण किया था। इस चक्र से अनेक राक्षसों का वध किया था। सुदर्शन चक्र भगवान विष्णु का अमोघ अस्त्र है।
सुदर्शन अस्त्र के रूप में प्रयोग किया जाने वाला एक चक्र था। जो चलाने के बाद अपने लक्ष्य पर पहुँचकर वापस आ जाता है। इसे तेजी से हाथ से घुमाने पर यह हवा के प्रवाह से मिल कर प्रचंड़ वेग से अग्नि प्रज्जवलित कर दुश्मन को भस्म कर देता था। यह अत्यंत सुंदर, तीव्र गामी, तुरंत संचालित होने वाला एक भयानक अस्त्र था। भगवान श्री कृष्ण के पास यह देवी की कृपा से आया। यह चांदी की शलाकाओं से निर्मित था। इसकी उपरी और निचली सतहों पर लौह शूल लगे हुए थे। इसके साथ ही इसमें अत्यंत विषैले किस्म के विष, जिसे द्विमुखी पैनी छुरियों मे रखा जाता था, का भी उपयोग किया गया था। इसके नाम से ही विपक्ष में मौत का भय छा जाता था।
एक पौराणिक मान्यता के अनुसार भगवान विश्वकर्मा की बेटी का विवाह भगवान सूर्य से हुआ था। शादी के बाद भी उनकी बेटी खुश नहीं थी। क्यों की सूर्य की गर्मी और उनके ताप के कारण उनका वैवाहिक जीवन सही तरीके से नहीं चल पा रहा था ,बेटी के इस दुःख को देखकर भगवान ने सूर्य से थोड़ी सी चमक और ताप ले के पुष्पक विमान का निर्माण किया। और इसके साथ ही भगवान शिव के त्रिशूल और भगवान विष्णु के सुदर्शन चक्र का निर्माण भी किया
भगवान विष्णु को सुदर्शन चक्र की प्राप्ति से सम्बन्धित एक अन्य प्रसंग
निम्नलिखित है-
जब दानवों के अत्याचार धरती पर बहुत ज्यादा बढ़ने लगे तो देवताओं ने
श्रीहरि विष्णु के पास जाकर उनसे मदद मांगी। तब भगवान विष्णु ने कैलाश पर्वत पर जाकर भगवान शिव की विधिपूर्वक आराधना करने लगे। वे बहुत नामों से शिव की स्तुति करने लगे। वे प्रत्येक नाम पर एक कमल पुष्प भगवान शिव को चढ़ाते। तब भगवान शिव ने विष्णु की परीक्षा लेने के लिए उनके द्वारा लाए गए एक हजार कमल में से एक कमल का फूल छिपा दिया। शिव की माया के कारण विष्णु को यह पता न चला। एक फूल कम पाकर भगवान विष्णु उसे ढूँढने लगे। परंतु फूल नहीं मिला। तब विष्णु ने एक फूल की पूर्ति के लिए अपना एक नेत्र निकालकर शिव को अर्पित कर दिया। विष्णु की भक्ति देखकर भगवान शिव प्रसन्न हुए और विष्णु के समक्ष प्रकट होकर वरदान मांगने के लिए कहा। तब विष्णु ने दानवों को समाप्त करने के लिए अजेय शस्त्र का वरदान माँगा। तब भगवान शिव ने विष्णु को सुदर्शन चक्र प्रदान किया। विष्णु ने उस चक्र से धरती से दानवों का संहार किया। इस प्रकार देवताओं को दानवों से मुक्ति मिली तथा सुदर्शन चक्र उनके स्वरूप के साथ सदैव के लिए जुड़ गया।
#वैदिक_भारत
सुदर्शन अस्त्र के रूप में प्रयोग किया जाने वाला एक चक्र था। जो चलाने के बाद अपने लक्ष्य पर पहुँचकर वापस आ जाता है। इसे तेजी से हाथ से घुमाने पर यह हवा के प्रवाह से मिल कर प्रचंड़ वेग से अग्नि प्रज्जवलित कर दुश्मन को भस्म कर देता था। यह अत्यंत सुंदर, तीव्र गामी, तुरंत संचालित होने वाला एक भयानक अस्त्र था। भगवान श्री कृष्ण के पास यह देवी की कृपा से आया। यह चांदी की शलाकाओं से निर्मित था। इसकी उपरी और निचली सतहों पर लौह शूल लगे हुए थे। इसके साथ ही इसमें अत्यंत विषैले किस्म के विष, जिसे द्विमुखी पैनी छुरियों मे रखा जाता था, का भी उपयोग किया गया था। इसके नाम से ही विपक्ष में मौत का भय छा जाता था।
एक पौराणिक मान्यता के अनुसार भगवान विश्वकर्मा की बेटी का विवाह भगवान सूर्य से हुआ था। शादी के बाद भी उनकी बेटी खुश नहीं थी। क्यों की सूर्य की गर्मी और उनके ताप के कारण उनका वैवाहिक जीवन सही तरीके से नहीं चल पा रहा था ,बेटी के इस दुःख को देखकर भगवान ने सूर्य से थोड़ी सी चमक और ताप ले के पुष्पक विमान का निर्माण किया। और इसके साथ ही भगवान शिव के त्रिशूल और भगवान विष्णु के सुदर्शन चक्र का निर्माण भी किया
भगवान विष्णु को सुदर्शन चक्र की प्राप्ति से सम्बन्धित एक अन्य प्रसंग
निम्नलिखित है-
जब दानवों के अत्याचार धरती पर बहुत ज्यादा बढ़ने लगे तो देवताओं ने
श्रीहरि विष्णु के पास जाकर उनसे मदद मांगी। तब भगवान विष्णु ने कैलाश पर्वत पर जाकर भगवान शिव की विधिपूर्वक आराधना करने लगे। वे बहुत नामों से शिव की स्तुति करने लगे। वे प्रत्येक नाम पर एक कमल पुष्प भगवान शिव को चढ़ाते। तब भगवान शिव ने विष्णु की परीक्षा लेने के लिए उनके द्वारा लाए गए एक हजार कमल में से एक कमल का फूल छिपा दिया। शिव की माया के कारण विष्णु को यह पता न चला। एक फूल कम पाकर भगवान विष्णु उसे ढूँढने लगे। परंतु फूल नहीं मिला। तब विष्णु ने एक फूल की पूर्ति के लिए अपना एक नेत्र निकालकर शिव को अर्पित कर दिया। विष्णु की भक्ति देखकर भगवान शिव प्रसन्न हुए और विष्णु के समक्ष प्रकट होकर वरदान मांगने के लिए कहा। तब विष्णु ने दानवों को समाप्त करने के लिए अजेय शस्त्र का वरदान माँगा। तब भगवान शिव ने विष्णु को सुदर्शन चक्र प्रदान किया। विष्णु ने उस चक्र से धरती से दानवों का संहार किया। इस प्रकार देवताओं को दानवों से मुक्ति मिली तथा सुदर्शन चक्र उनके स्वरूप के साथ सदैव के लिए जुड़ गया।
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