गाय को हिंदू धर्म( सनातन) में माता का दर्जा दिया गया है,और उसकी पूजा की जाती है। ग्रामीण इलाकों में तो आज भी हर रोज खाना बनाते समय पहली रोटी गाय के नाम की बनती है। प्राचीन काल में गोदान को सबसे बड़ा दान माना जाता था और गौहत्या को धार्मिक दृष्टि से ब्रह्म हत्या के समान माना जाता है।
यही कारण था की वैदिक काल से ही हिंदू धर्म में गाय की पूजा करते आ रहे हैं। गाय की पूजा के लिये गोपाष्टमी का त्यौहार भी पुरे भारत भर में मनाया जाता है। गाय का धार्मिक एवं पौराणिक महत्व जब समुद्र मंथन के समय लक्ष्मी जी के साथ सुरभि (गाय) भी प्रकट हुई।
देव और असुरों ने जब सिर उठाकर देखा तो पता चला कि यह साक्षात सुरभि कामधेनु गाय थी। इस गाय को काले, श्वेत, पीले, हरे तथा लाल रंग की सैकड़ों गौएं घेरे हुई थीं। गाय को हिन्दू धर्म में सबसे पवित्र पशु माना जाता है। गाय मनुष्य जाति के जीवन को चलाने के लिए महत्वपूर्ण पशु है। गाय को कामधेनु कहा गया है।
कामधेनु का मतलब सबका काम चलाने वाली ,पौराणिक काल में गाय को धेनु ही कहते थे। गाय को माता का दर्ज़ा प्राचीन काल से ही दिया जाता है। गाय को माता मानने के पीछे कही आस्थायें जुडी है की गाय में समस्त देवता निवास करते है और गोमाता के पृष्ठदेश यानि पीठ में ब्रह्मा निवास करते हैं तो गले में भगवान विष्णु विराजते हैं। भगवान शिव मुख में निवास करते हैं। मध्य भाग में सभी देवताओं का वास है।
गाय माता का रोम रोम महान महर्षियों का ठिकाना है तो पूंछ का स्थान अनंत नाग का है, और उसके खूरों में सारे पर्वत समाये हैं तो गौमूत्र में गंगादि पवित्र नदिया, गौमय जहां लक्ष्मी का निवास तो माता के नेत्रों में सूर्य और चंद्र का वास है। कुल मिलाकर गाय को पृथ्वी, ब्राह्मण और देव का प्रतीक माना जाता है। भगवान शिव का वाहन नंदी (बैल), भगवान इंद्र के पास समस्त मनोकामनाओं को पूर्ण करने वाली गाय कामधेनू, भगवान श्री कृष्ण का गोपाल होना एवं अन्य देवियों के मातृवत गुणों को गाय में देखना भी गाय को पूज्य बनाते हैं।
गाय का आर्थिक महत्व प्राचीन काल में तो व्यक्ति की समृद्धि, संपन्नता गोधन से ही आंकी जाती थी यानि जिसके पास जितनी ज्यादा गाय वह उतना ही धनवान, तमाम कर्मकांडो, संस्कारों में गो दान को ही अहमियत दी जाती थी, परिवार का भरण पोषण गाय पर ही निर्भर करता था, खेतों को जोतने के लिये बैल गाय से ही मिलते थे, दूध, दही, घी की आपूर्ति तो होती ही थी, गौ मूत्र और गोबर तक उपयोगी माने जाते हैं।
कुल मिलाकर मनुष्य के जीवन स्तर को समृद्ध बनाने में गाय अहम भूमिका निभाती थी, लेकिन आज हालात बदल चुके हैं अब गाय का आर्थिक महत्व कम होने लगा है और धार्मिक महत्ता भी धीरे-धीरे कम होने लगी है। वैज्ञानिक महत्व गाय केवल धार्मिक और आर्थिक दृष्टि से तो महत्वपूर्ण है, बल्कि गाय का वैज्ञानिक महत्व भी है। गाय एकमात्र ऐसा प्राणी है इस संसार में जो ऑक्सीजन ग्रहण करती है और ऑक्सीजन ही छोड़ती है।
गाय के मूत्र में पोटेशियम, सोडियम, नाइट्रोजन, फास्फेट, यूरिया, यूरिक एसिड होता है, दूध देते समय गाय के मूत्र में लेक्टोज की वृद्धि होती है। जो हृदय रोगों के लिए लाभकारी है। गाय का दूध पीने से मोटापा नहीं बढ़ता तथा स्त्रियों के प्रदर रोग आदि में लाभ होता है। गाय के गोबर के कंडे से धुआं करने पर कीटाणु, मच्छर आदि भाग जाते हैं तथा दुर्गंध का नाश होता है। और खाद का उपयोग खेतो में भी करते है। गौमूत्र को बहुत पवित्र माना जाता है। इसके छिड़काव से ही बहुत बीमारियां दूर हो जाती है। अगर रोजाना एक गिलास रोज़ सुबह ख़ाली पेट सेवन करे तो कैंसर रोग नही होगा
यही कारण था की वैदिक काल से ही हिंदू धर्म में गाय की पूजा करते आ रहे हैं। गाय की पूजा के लिये गोपाष्टमी का त्यौहार भी पुरे भारत भर में मनाया जाता है। गाय का धार्मिक एवं पौराणिक महत्व जब समुद्र मंथन के समय लक्ष्मी जी के साथ सुरभि (गाय) भी प्रकट हुई।
देव और असुरों ने जब सिर उठाकर देखा तो पता चला कि यह साक्षात सुरभि कामधेनु गाय थी। इस गाय को काले, श्वेत, पीले, हरे तथा लाल रंग की सैकड़ों गौएं घेरे हुई थीं। गाय को हिन्दू धर्म में सबसे पवित्र पशु माना जाता है। गाय मनुष्य जाति के जीवन को चलाने के लिए महत्वपूर्ण पशु है। गाय को कामधेनु कहा गया है।
कामधेनु का मतलब सबका काम चलाने वाली ,पौराणिक काल में गाय को धेनु ही कहते थे। गाय को माता का दर्ज़ा प्राचीन काल से ही दिया जाता है। गाय को माता मानने के पीछे कही आस्थायें जुडी है की गाय में समस्त देवता निवास करते है और गोमाता के पृष्ठदेश यानि पीठ में ब्रह्मा निवास करते हैं तो गले में भगवान विष्णु विराजते हैं। भगवान शिव मुख में निवास करते हैं। मध्य भाग में सभी देवताओं का वास है।
गाय माता का रोम रोम महान महर्षियों का ठिकाना है तो पूंछ का स्थान अनंत नाग का है, और उसके खूरों में सारे पर्वत समाये हैं तो गौमूत्र में गंगादि पवित्र नदिया, गौमय जहां लक्ष्मी का निवास तो माता के नेत्रों में सूर्य और चंद्र का वास है। कुल मिलाकर गाय को पृथ्वी, ब्राह्मण और देव का प्रतीक माना जाता है। भगवान शिव का वाहन नंदी (बैल), भगवान इंद्र के पास समस्त मनोकामनाओं को पूर्ण करने वाली गाय कामधेनू, भगवान श्री कृष्ण का गोपाल होना एवं अन्य देवियों के मातृवत गुणों को गाय में देखना भी गाय को पूज्य बनाते हैं।
गाय का आर्थिक महत्व प्राचीन काल में तो व्यक्ति की समृद्धि, संपन्नता गोधन से ही आंकी जाती थी यानि जिसके पास जितनी ज्यादा गाय वह उतना ही धनवान, तमाम कर्मकांडो, संस्कारों में गो दान को ही अहमियत दी जाती थी, परिवार का भरण पोषण गाय पर ही निर्भर करता था, खेतों को जोतने के लिये बैल गाय से ही मिलते थे, दूध, दही, घी की आपूर्ति तो होती ही थी, गौ मूत्र और गोबर तक उपयोगी माने जाते हैं।
कुल मिलाकर मनुष्य के जीवन स्तर को समृद्ध बनाने में गाय अहम भूमिका निभाती थी, लेकिन आज हालात बदल चुके हैं अब गाय का आर्थिक महत्व कम होने लगा है और धार्मिक महत्ता भी धीरे-धीरे कम होने लगी है। वैज्ञानिक महत्व गाय केवल धार्मिक और आर्थिक दृष्टि से तो महत्वपूर्ण है, बल्कि गाय का वैज्ञानिक महत्व भी है। गाय एकमात्र ऐसा प्राणी है इस संसार में जो ऑक्सीजन ग्रहण करती है और ऑक्सीजन ही छोड़ती है।
गाय के मूत्र में पोटेशियम, सोडियम, नाइट्रोजन, फास्फेट, यूरिया, यूरिक एसिड होता है, दूध देते समय गाय के मूत्र में लेक्टोज की वृद्धि होती है। जो हृदय रोगों के लिए लाभकारी है। गाय का दूध पीने से मोटापा नहीं बढ़ता तथा स्त्रियों के प्रदर रोग आदि में लाभ होता है। गाय के गोबर के कंडे से धुआं करने पर कीटाणु, मच्छर आदि भाग जाते हैं तथा दुर्गंध का नाश होता है। और खाद का उपयोग खेतो में भी करते है। गौमूत्र को बहुत पवित्र माना जाता है। इसके छिड़काव से ही बहुत बीमारियां दूर हो जाती है। अगर रोजाना एक गिलास रोज़ सुबह ख़ाली पेट सेवन करे तो कैंसर रोग नही होगा
#वैदिक_भारत
साभार: भाई श्री गणेश चौधरी
No comments:
Write comments