महाराजा श्री रणजीत सिंह जी का जन्म १७८० में गुजरांवाला (अभी पाकिस्तान में) में हुआ था । उस समय पंजाब छोटी छोटी मिसलों में बंटा हुआ था ।इनके पिताजी महासिंहजी सुकर चकिया मिसल के राजा थे । रणजीत सिंह जी ने १२ वर्ष की आयु में पिताजी की मृत्यु के बाद विषम स्थितियों में राज्य संभाला ।
महाराजा रणजीत सिंह ने सन १८०१ में बैसाखी पर्व के दिन लाहौर (अभी पाकिस्तान में ) में बाबा साहब बेदी सिंह जी के हाथों माथे पर तिलक लगवाकर अपने आपको एक स्वतंत्र भारतीय शासक के रूप में प्रतिस्थापित किया। महाराजा के रूप में उनका राजतिलक तो अवश्य हुआ किन्तु वे कभी राज सिंहासन पर नहीं बैठे। अपने दरबारियों के साथ मसनद के सहारे जमीन पर बैठना उन्हें अधिक प्रिय था. २१ वर्ष की उम्र में ही रणजीत सिंह को ‘महाराजा’ की उपाधि से विभूषित किया गया, तथा कुछ ही समय पश्चात वे ‘शेर – ए – पंजाब’ के नाम से विख्यात हुए ।
महाराजा श्री रणजीत सिंह जी ने अपने पराक्रम से पूरे पंजाब को एक राज्य के रूप में संगठित किया । इनके जीते जी अंग्रेज इनके राज्य के आसपास फटक तक नहीं सके । इसीलिए इन्हें शेर-ए-पंजाब कहा जाता था । पहली आधुनिक सिख सेना का गठन भी इन्होनें ही किया था। बेशकीमती कोहिनूर हीरा भी इन्हीं के पास था जो इनकी मृत्यु के बाद अंग्रेज चुरा के ले गए और रानी विक्टोरिया को सौंप दिया ।
महान इतिहासकार जे. डी कनिंघम से एक बार जब पूछा गया तो जे. डी कनिंघम ने कहा था कि-
”राजा रणजीत सिंह की उपलब्धियाँ निःसंदेह अतुलनीय थी. उन्होंने पंजाब को एक आपसी फूट से लड़ने वाली छोटी छोटी रियासतों के रूप में प्राप्त किया तथा एक गौरवशाली और शक्तिशाली राज्य के रूप में प्रतिस्थापित किया ”.
महाराजा रणजीत सिंह जी के शासनकाल में कभी किसी को मृत्युदंड नहीं दिया गया, यह तथ्य अपने आप में आश्चर्यजनक है. उस युग में जब सत्ता में चूर सामंत और राजा बात बात में अपने प्रतिद्वंदियों को मौत के घाट उतार देते थे, रणजीत सिंह ने सदैव अपने विरोधियो के प्रति उदारता और दया का दृष्टिकोण रखा. जिस किसी राज्य या नवाब का राज्य जीत कर उन्होंने अपने राज्य में मिलाया उसे जीवनयापन के लिए कोई न कोई जागीर निश्चित रूप से दे दी.
एक व्यक्ति के रूप में महाराजा रणजीत सिंह अपनी उदारता और दयालुता के लिए बहुत प्रसिद्ध थे. उनकी इस भावना के कारण उन्हें लाखबख्श कहा जाता था. शारारिक दृष्टि से रणजीत सिंह उन व्यक्तियों में से नहीं थे, जिन्हें सुदर्शन नायक के रूप में याद किया जाये. उनका कद औसत दर्जे का था. रंग गहरा गेहुँवा था. बचपन में चेचक की बीमारी के कारण उनकी बाई आँख ख़राब हो गयी थी. चेहरे पर चेचक के गहरे दाग थे परन्तु उनका व्यक्तित्व आकर्षक था.
तत्कालीन ब्रिटिश गवर्नर ज़नरल लार्ड विलियम बेटिंक ने एक बार फ़क़ीर अजिजमुद्दीन से पुछा की महाराजा की कौन सी आँख ख़राब है. फ़क़ीर साहब ने उत्तर दिया – ” उनके चेहरे पर इतना तेज है कि मैंने कभी सीधे उनके चेहरे की ओर देखा ही नहीं. इसलिए मुझे यह नहीं मालूम की उनकी कौन सी आँख ख़राब है ”.
महाराजा रणजीत सिंह का २७ जून १८३९ में लाहौर में देहावसान हो गया. उनके शासन के ४० वर्ष निरंतर युद्धों के साथ ही साथ पंजाब के आर्थिक और सामाजिक विकास के वर्ष थे, रणजीत सिंह को कोई उत्तराधिकारी प्राप्त नहीं हुआ, यह दुर्भाग्य की बात थी. महाराजा रणजीत सिंह की कार्यशैली में अनेक ऐसे गुण थे, जिन्हें वर्तमान शासन व्यवस्था में भी आदर्श के रूप में भी सम्मुख रखा जा सकता है.
वे "शेर-ए पंजाब" के नाम से हमेशा हर भारत वासी के ह्रदय में रहेंगे. ऐसे महान शासक को वैदिक भारत का नमन.अभी देश को ऐसे ही वीर योद्धाओं की आवश्यकता है।
श्रीवाहेगुरुजी का खालसा, श्रीवाहेगुरुजी की फतेह । जो बोले सो निहाल, सत श्री अकाल
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