Tuesday, July 4, 2017

देवशयनी एकादशी अथवा पद्मा एकादशी का महत्व,पूजा विधि एवं व्रत कथा

 

देवशयनी एकादशी, पद्मा एकादशी, महत्व,पूजा विधि, व्रत कथा,Festivals,Devshayani Ekadashi,Padma Ekadashi,Rituals,Fast methode,Story
आषाढ़ माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी को ही देवशयनी एकादशी के नाम से जाना जाता है। इस वर्ष देवशयनी एकादशी मंगलवार को अंग्रेजी कैलेंडर के अनुसार ४ जुलाई २०१७  के दिन मनाई जायेगी । देवशयनी एकादशी अथवा पद्मा एकादशी के दिन से ही चातुर्मास का आरंभ हो जाता  है। देवशयनी एकादशी को हरिशयनी एकादशी पद्मनाभा तथा प्रबोधनी के नाम से भी जाना जाता है सभी उपवासों में देवशयनी एकादशी व्रत श्रेष्ठतम कहा गया है। इस व्रत को करने से भक्तों की समस्त मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं, तथा सभी पापों का नाश होता है। इस दिन भगवान विष्णु की विशेष पूजा अर्चना करने का महत्व  होता है क्योंकि इसी रात्रि से भगवान का शयन काल आरंभ हो जाता है, जिसे चातुर्मास या चौमासा का प्रारंभ भी कहते हैं।

देवशयनी एकादशी अथवा पद्मा एकादशी का पौराणिक महत्व

देवशयनी या हरिशयनी एकादशी के विषय में पुराणों में विस्तारपूर्वक वर्णन मिलता है जिनके अनुसार इस दिन से भगवान श्री विष्णु चार मास की अवधि तक क्षीर सागर में शयन करते है। कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी से श्री विष्णु भगवान् पाताल लोक के लिये गमन करते है और इसके चार माह पश्चात सूर्य के तुला राशि में प्रवेश करने पर विष्णु भगवान की निद्रा  समाप्त होती है तथा इस दिन को देवोत्थान एकादशी या देव ऊठनी का दिन होता है। इन चार माह में भगवान श्री विष्णु क्षीर सागर की अनंत लहरों में शेषनाग की शय्या पर शयन करते है। इसलिये ऐसा माना जाता है कि भगवान विष्णु किसी भी धार्मिक कार्य में उपस्थित होने में असमर्थ रहेंगे अतः  इन चारों माह में कोई भी धार्मिक व पवित्र कार्य नहीं किया जाता है।

देवशयनी एकादशी अथवा पद्मा एकादशी पूजा विधि
देवशयनी एकादशी व्रत की शुरुआत दशमी तिथि की रात्रि से ही हो जाती है। दशमी तिथि की रात्रि के भोजन में नमक का प्रयोग नहीं करना चाहिए। अगले दिन प्रात: काल उठकर दैनिक कार्यों से निवृत होकर व्रत का संकल्प करें भगवान विष्णु की प्रतिमा को आसन पर आसीन कर उनका षोडशोपचार सहित पूजन करना चाहिए। पंचामृत से स्नान करवाकर, तत्पश्चात भगवान की धूप, दीप, पुष्प, नैवैद्य आदि से पूजा करनी चाहिए।  भगवान को ताम्बूल, सुपारी  अर्पित करने के बाद मंत्रोच्चार करना चाहिए। इसके अतिरिक्त शास्त्रों में व्रत के जो सामान्य नियम बताये गए है, उनका यथासंभव पालन करना चाहिए।

देवशयनी एकादशी अथवा पद्मा एकादशी व्रत कथा
देवशयनी एकादशी अथवा पद्मा एकादशी से संबन्धित एक पौराणिक कथा है। सूर्यवंशी कुल में  मान्धाता नामक एक राजा हुए थे, मान्धाता पूर्ण सत्यवादी, कार्यों से महान, कर्त्तव्य परायण प्रतापी और चक्रवती थे। वह अपनी प्रजा को पुत्र समान समझते थे और एक पिता की तरह समस्त प्रजा का ध्यान रखते थे । उनके राज्य में कभी भी अकाल नहीं पडता था। परंतु एक समय राजा के राज्य में अकाल पड गया अत्यन्त दु:खी प्रजा राजा के पास जाकर प्रार्थना करने लगी, यह देख दु;खी होते हुए राजा इस कष्ट से मुक्ति पाने का कोई समाधान के उद्देश्य से सैनिकों के साथ जंगल की ओर चल दिए।  
घूमते-घूमते वे ब्रह्मा के पुत्र अंगिरा ऋषि के आश्रम में पहुंच गयें। राजा ने उनके सम्मुख प्रणाम उन्हें अपनी समस्या बताते हैं। इस पर ऋषि उन्हें एकादशी व्रत करने को कहते हैं। ऋषि के कथन अनुसार राज एकादशी व्रत का पालन करते हैं ओर उन्हें अपने संकट से मुक्ति प्राप्त होती है।
इस व्रत को करने से समस्त रखते वाले व्यक्ति को अपने चित, इंद्रियों, आहार और व्यवहार पर संयम रखना होता है। एकादशी व्रत का उपवास व्यक्ति को अर्थ-काम से ऊपर उठकर मोक्ष और धर्म के मार्ग पर चलने की प्रेरणा देता है।


वैदिक भारत

No comments:
Write comments