Monday, September 18, 2017

वैदिक ज्ञान : मनुस्मृति को गलत मानकर जातिवाद फैलाने वालों की आँखें खोल देगा यह लेख, प्रत्येक हिन्दू अवश्य पढ़ें

 


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जैसा की विदित है की प्राचीन समय में साम्राज्यवाद जब अपने कदम बढ़ा रहा था तो प्रत्येक शासक अपने साम्राज्य के विस्तार के लिए विरोधी को नतमस्तक करने के लिए युद्ध के अलावा भी अनेकों हथकंडे अपनाते थे, जैसे की  इतिहास को तोड़ो मरोडो, भाषा को विक्षिप्त कर दो , परम्पराओं को नष्ट कर दो ताकि देश की संस्कृति को नष्ट करके वर्णित राज्य पर अपना आधिपत्य स्थापित किया जा सके !  

प्राचीन काल में भारत वर्ष पर भी अनेकों आक्रमण हुए और आक्रमण कार्यों  ने हमारी संस्कृति  और गौरवशाली इतिहास को नष्ट करने में कोई कौताही नहीं बरती। 

ऐसा ही कुछ हमारे प्राचीन ग्रंथों, मंदिरों, और अन्य धार्मिक और सांस्कृतिक  प्रतिष्ठानों   के साथ भी हुआ। 
चीन की महान दीवार से प्राप्त हुयी पांडुलिपि में ‘पवित्र मनुस्मृति’ का जिक्र, सही मनुस्मृति में ६३० श्लोक ही थे, मिलावटी मनुस्मृति में अब श्लोकों की संख्या २४०० हो गयी, सवाल यह उठता है कि, जब चीन की इस प्राचीन पांडुलिपी में मनुस्मृति में ६३० श्लोक बताया है तो आज २४०० श्लोक कैसे हो गयें ? इससे यह स्पष्ट होता है कि, बाद में मनुस्मृति में जानबूझकर षड्यंत्र के तहत अनर्गल तथ्य जोड़े गये जिसका मकसद महान सनातन धर्म को बदनाम करना तथा भारतीय समाज में फूट डालना था।

मनु कहते हैं- जन्मना जायते शूद्र: कर्मणा द्विज उच्यते। अर्थात जन्म से सभी शूद्र होते हैं और कर्म से ही वे ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और शूद्र बनते हैं। वर्तमान दौर में ‘मनुवाद’ शब्द को नकारात्मक अर्थों में लिया जा रहा है। ब्राह्मणवाद को भी मनुवाद के ही पर्यायवाची के रूप में उपयोग किया जाता है। वास्तविकता में तो मनुवाद की रट लगाने वाले लोग मनु अथवा मनुस्मृति के बारे में जानते ही नहीं है या फिर अपने निहित स्वार्थों के लिए मनुवाद का राग अलापते रहते हैं। दरअसल, जिस जाति व्यवस्था के लिए मनुस्मृति को दोषी ठहराया जाता है, उसमें जातिवाद का उल्लेख तक नहीं है। 

                                               शूद्रो ब्राह्मणतामेति ब्राह्मणश्चैति शूद्रताम।
                                           क्षत्रियाज्जातमेवं तु विद्याद्वैश्यात्तथैव च। (१०/६५ )
महर्षि मनु कहते हैं कि कर्म के अनुसार ब्राह्मण शूद्रता को प्राप्त हो जाता है और शूद्र ब्राह्मणत्व को। इसी प्रकार क्षत्रिय और वैश्य से उत्पन्न संतान भी अन्य वर्णों को प्राप्त हो जाया करती हैं। विद्या और योग्यता के अनुसार सभी वर्णों की संतानें अन्य वर्ण में जा सकती हैं।

आखिर जिस मनुस्मृति में कहा गया की जन्म से सब सूद्र ही होते है कर्मो से वो ब्राम्हण,क्षत्रिय,वैश्य बनते है,जातिवाद नही वर्णवाद नियम था की शूद्र के घर पैदा होने वाला ब्राम्हण बन सकता था,सब कर्म आधारित था,आज उसको जातिवाद की राजनीती का केंद्र बना दिया गया ।

मनुस्मृति और सनातन ग्रंथों में मिलावट उसी समय शुरू हो गयी थी जब भारत में बौद्धों का राज बढ़ा, अगर समयकाल के दृष्टि से देखें तो यह मिलावट का खेल ९ वीं शताब्दी के बाद शुरू हुआ था। मनुस्मृति पर बौद्धों द्वारा अनेक टीकाएँ भी लिखी गयी थीं। लेकिन जो सबसे ज्यादा मिलावट हुयी वह अंग्रेजों के शासनकाल में ब्रिटिश थिंक टैंक द्वारा करवाई गयीं जिसका लक्ष्य भारतीय समाज को बांटना था। यह ठीक वैसे ही किया ब्रिटिशों ने जैसे उन्होंने भारत में मिकाले ब्रांड शिक्षा प्रणाली लागू की थी। ब्रिटिशों द्वारा करवाई गयी मिलावट काफी विकृत फैलाई।

इसी तरह ९ वीं शताब्दी में मनुस्मृति पर लिखी गयी ‘भास्कर मेघतिथि टीका’ की तुलना में १२ वीं शताब्दी में लिखी गई ‘टीका कुल्लुक भट्ट’ के संस्करण में १७० श्लोक ज्यादा था। इस चीनी दीवार के बनने का समय लगभग २२० से २०६ ईसा पूर्व का है अर्थात लिखने वाले ने कम से कम २२० ईसा पूर्व ही मनु के बारे में अपने हस्तलेख में लिखा।





स्त्रोत : Manu Dharma shastra : a sociological and historical study, Page No-232 (Motwani K.)
           Education in the Emerging India, Page No- 148 (R.P. Pathak)

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