जैसे ही बाबा राम रहीम पर सीबीआई कोर्ट में आरोप साबित हुए पूरे देश में एक
नया माहौल खड़ा हो गया। डेरा समर्थकों द्वारा सैंकड़ों गाड़िया आग की भेंट
चढ़ा दी गई। अनगिनत सरकारी सम्पत्तियों को तहस नहस कर दिया गया। सैंकड़ों
लोगों को घायल कर दिया गया। और तो और लगभग 40 लोगों को जान से हाथ भी धोना
पड़ा। आखिर क्यों किया गया ये सब ? बात सीधी सी है - "जिसकी लाठी उसकी
भैंस" अर्थात डेरा समर्थकों ने शायद सोचा होगा कि भाजपा की सरकार में
संख्याबल दिखाने पर उन्हें रियायत मिल जायगी। किन्तु ऐसा संभव नहीं हो
पाया।
आश्चर्य जनक रूप से इस मामले की शुरुआत भी 15 वर्ष पहले अटल बिहारी
जी के नेतृत्व में NDA नीत केंद्र सरकार ने की थी, और इसका अंत भी भाजपा
शासन में ही हुआ है। गलियारों में ये भी चर्चा है की बीच के दस सालों में
कांग्रेस नीत UPA की सरकार रही तब इस मामले को दबा क्यों दिया गया ? इसे
क्या कहें कि कांग्रेस ने बाबा राम रहीम को अघोषित जमानत देकर फायदा
पहुंचाने की कोशिश की थी ? खैर जो भी हो दूध का दूध और पानी का पानी हो
चुका है, बाबा को न्यूनतम 10 वर्ष की सजा मिलना निश्चित हो चुका
है।
और रही बात डेरा सच्चा सौदा की तो इसकी प्रॉपर्टी को भी अटैच करने का
आदेश भी पंजाब हरियाणा हाई कोर्ट दे चुका है। देश भर में जो भी नुक्सान
डेरा समर्थकों ने किया है उसकी भरपाई डेरा सच्चा सौदा को करनी पड़ेगी। बाबा
राम रहीम का धन भी गया धर्म के साथ साथ इज्जत भी गई। शायद इसीलिए कहते है
कि - "भगवान की लाठी में आवाज़ नहीं होती"
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