कजरी तीज का महत्व
यूं तो साल में २४ बार तीज आती हैं और हर तीज का अपना अलग महत्व होता है। कजरी तीज वर्षा ऋतु मे आती है और बारिश का ही स्वागत करती है। काजली तेज के दिन, माताएं और बहने पूरे दिन उपवास रखती हैं, सुबह-सुबह शुद्ध जल से स्नान करके, सूर्य देवता को अर्घ्य दिया जाता है, उसके पश्चात माताएं बहनें पूरे दिन के लिए उपवास करती हैं। संध्याकाळ में सभी महिलाएं अच्छे कपड़े और गहने पहनकर सजधज कर तैयार हो जाती हैं। सूर्य की उपासना के समय, परिवार और पड़ोस की सभी महिलाएं एक साथ मिलती हैं और पूजा करती हैं और 'बडी तीज कथा' या बडी तीज की कहानी कहती और सुनती हैं। हल्दी, कुमकुम, मेहंदी, चावल, काजल, चढ़ाकर और सतू का भोग लगाकर परंपरागत तरीके से 'नीम माता' (नीम का पेड़) की पूजा की जाती है। मीठा सत्तू ,फल एक दूध-पानी का मिश्रण सत्तू एक बड़ी थाली अथवा परात में तैयार किया जाता है एक प्लेट में फल और अन्य चीजें रखी जाती हैं। पूजा के बाद, सभी महिलाएं इस पानी और दूध के मिश्रण में फल धोती हैं। वे फिर चंद्रमा की पूजा करते हैं और सत्तू से अपना उपवास तोड़ती हैं उपवास करने वाली महिलाएं केवल मीठे सत्तू और फलों को खाकर उपवास पूर्ण करती हैंइस दिन मां पार्वती की पूजा भी की जाती है। माना जाता है कि जो विवाहिता औरतें इस दिन मां पार्वती की पूजा करती हैं वो अपने पति से कभी अलग नहीं होतीं। ये दिन मां पार्वती के पति अर्थात शिव भगवान के प्रति अटूट प्रेम को दर्शाता है। मां पार्वती ने शिव भगवान से व्याह रचाने के लिये १०८ जन्म लिये थे। पार्वती की अटूट लग्न और सच्चे प्रेम को देखते हुए भगवान शिव ने उनको अपनी अर्धांगिनी बनाया था। इस दिन जो विवाहिता स्त्रियां पूजा करती हैं उन्हें उपवास भी रखना होता है।
कजली तीज की पूजा का मुहूर्त व् शुभ समय :
कजली तीज की पूजन का शुभ समय समय सायं ७:१९ बजे से ८:४६ सर्वश्रेष्ठ मुहूर्त है
कजली तीज की व्रत कथा
एक साहूकार था ,उसके सात बेटे थे। उसका सबसे छोटा बेटा दिव्यांग था। वह रोजाना एक वेश्या के पास जाता था। उसकी पत्नी बहुत गुणी और पतिव्रता थी। वह स्वयं उसके पति को कंधे पर बैठाकर वेश्या के यहाँ ले जाती थी। बहुत गरीब थी अतः जेठानियों के पास दिन भर काम करके अपना और पति का गुजारा करती थी।
भाद्रपद का महीना आया, कजली तीज के दिन सभी ने तीज माता के व्रत और पूजा के लिए विभिन्न प्रकार के सत्तु बनाये। चूँकि छोटी बहु अत्यधिक गरीब थी, अतः उसकी सास ने उसके लिए भी एक सत्तु का छोटा पिंडा बनाया। संध्याकाळ को पूजा करके जैसे ही वो सत्तू पासने लगी उसका पति बोला मुझे वेश्या के यहाँ जाना है पहले मुझे जल्दी से वहाँ छोड़ कर आ हर दिन की तरह उस दिन भी वह पति को कंधे पैर बैठा कर छोड़ने गयी, लेकिन उसका पति बोलना भूल गया की तू वापस जा।
वह बाहर ही उसका इंतजार करने लगी इतने में जोर से वर्षा आने लगी और बरसाती नदी में पानी बहने लगा । कुछ देर बाद नदी आवाज़ से आवाज़ आई “आवतारी जावतारी दोना खोल के पी, पिव प्यारी होय “ आवाज़ सुनकर उसने नदी की तरफ देखा तो दूध का दोना नदी में तैरता हुआ आता दिखाई दिया। उसने दोना उठाया और सात बार उसे पी कर दोने के चार टुकड़े किये और चारों दिशाओं में फेंक दिए।
उधर तीज माता की कृपा से उस वेश्या का ह्रदय परिवर्तन हुआ और वह अपना सारा धन उसके पति को वापस देकर सदा के लिए वहाँ से चली गई। पति ने सारा धन लेकर घर आकर पत्नी को आवाज़ दी ” दरवाज़ा खोल ” तो उसकी पत्नी ने कहा में दरवाज़ा नहीं खोलूँगी। तब उसने कहा कि अब में वापस नहीं जाऊंगा। हम दोनों मिलकर सातु पासेगें।
लेकिन उसकी पत्नी को विश्वास नहीं हुआ, उसने कहा मुझे वचन दो वापस वेश्या के पास नहीं जाओगे। पति ने पत्नी को वचन दिया तो उसने
दरवाज़ा खोला और देखा उसका पति गहनों और धन माल सहित खड़ा था। उसने सारे गहने कपड़े अपनी पत्नी को दे दिए। फिर दोनों ने
बैठकर सातु पासा।
सुबह जब जेठानी के यहाँ काम करने नहीं गयी तो बच्चे बुलाने आये काकी चलो सारा काम पड़ा है। उसने कहा अब तो मुझ पर तीज माता कीपूरी कृपा है अब मै काम करने नहीं आऊंगी। बच्चो ने जाकर माँ को बताया की आज से काकी काम करने नहीं आएगी उन पर तीज माता की कृपा हुई है वह नए – नए कपडे गहने पहन कर बैठी है और काका जी भी घर पर बैठे है। सभी लोग बहुत खुश हुए।
हे तीज माता !!! जैसे आप उस पर प्रसन्न हुई वैसे ही वैसी ही सब पर प्रसन्न होना ,सब के दुःख दूर करना।
कैसे मनाया जाता है कजली तीज का त्यौहार
कजली तीज का मुख्य पर्व और तीज की सवारी का आयोजन राजस्थान के बुंदी शहर में बड़ी धूम धाम से किया जाता है। जिस प्रकार छोटी तीज पर आयोजित जयपुर का जुलूस दुनिया भर में प्रसिद्ध है, उसी प्रकार बुंदी के काजली तीज के मेले और आयोजन की भी स्थानीय और विदेशी पर्यटकों के बीच समान रूप से ख्याति हैं। बुंदी राजस्थान में कोटा शहर से लगभग ४० किलोमीटर दूर स्थित है। बडी तीज के दिन, 'तीज माता' का एक भव्य जुलूस यहां आयोजित किया जाता है, जो कई देशी विदेशी पर्यटकों के आकर्षण का केंद्र होता है, लोग विशेष रूप से दूर के स्थानों से देखने के लिए आते हैं। जुलूस बूंदी शहर में नवल सागर से चलता है और आज़ाद पार्क की ओर मुड़ता हुआ कुम्भा स्टैडियम पर जाकर मेले का रूप ले लेता है। संगीतकारों, लोक नर्तकियों और अन्य लोक कलाकारों सहित हाथी, घोड़े, ऊंट, जुलूस की शोभा मे साथ जाते हैं।
राजस्थान में बूंदी के अलावा, कजरी तीज उत्तर और मध्य भारत के अन्य भागों में भी बड़े ही उत्साह और उमंग के साथ मनाया जाता है। मध्य प्रदेश और उत्तर प्रदेश (विशेष रूप से वाराणसी और मिर्जापुर में) में महिलाएं उत्साह के साथ कजली तीज मनाती हैं।
कजरी तीज को कजली तीज या बड़ी तीज भी कहा जाता है। इसे उत्तर और पश्चिम भारत के कुछ हिस्सों में मनाया जाता है। इस तीज पर देस के कई भागों में भगवान कृष्ण की पूजा भी होती है। तीज की धूम बिहार, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, राजस्थान और गुजरात में ज्यादा देखने को मिलती है। कजरी तीज भाद्रपद मास में कृष्णा पक्ष में मनाई जाती है।
कजरी तीज के पकवान
विवाहित महिलाएं इस दिन व्रत रखती हैं। पुरुषों के लिये इस दिन कई तरह की सत्तु की मिठाइयां बनती हैं। साथ ही मालपुया और घेवर भी ।
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