वैसे तो संघ ने राष्ट्र के लिए क्या किया? और क्या नहीं किया? यह किसी से छुपा हुआ नहीं है। तथा न ही संघ द्वारा राष्ट्रहित में किये गए कार्यों का प्रशस्ति पत्र किसी विदेशी बार बाला और अंग्रेज परस्त पार्टी से लिए जाने की आवश्यकता है, तथापि चूँकि ये मुद्दा देश की सर्वोच्च संस्था में उठाया गया है, अतः इस का प्रत्युत्तर देना, एक राष्ट्रवादी संगठन होने के नाते पूरे राष्ट्र के सामने रखना, अति आवश्यक हो जाता है। ६ अप्रैल १९३० को जब असहयोग आन्दोलन प्रारम्भ हुआ तो संघ के संस्थापक पूजनीय डॉ. केशव बलिराम हेडगेवार जी ने संघचालक का दायित्व डॉ.परांजपे को सौंपकर अनेक स्वयंसेवको के साथ आंदोलन में कुद पड़े।
मई १९३० को नमक कानुन के बजाए जंगल कानून तोड़कर संघ का सत्याग्रह शुरू करने का निर्णय । डॉ. हेडगेवार के साथ गए जत्थे में अप्पाजी जोशी ( जो बाद में संघ के सरकार्यवाह बने ) ,दादाराव परमार्थ (जो बाद में मद्रास प्रान्त के प्रथम प्रान्त प्रचारक बने) ,आदि १२ प्रमुख स्वयंसेवक थे। उनको ९ महीने का सश्रम कारावास का दंड दिया गया। उसके बाद अ.भा.शारीरिक शिक्षण प्रमुख श्री मार्तण्ड राव जोग, नागपुर के जिला संघचालक श्री अप्पाजी हल्दे आदी अनेक स्वयंसेवकों ने भाग लिया तथा शाखाओं के जत्थे ने भी सत्याग्रह में भाग लिया था।सत्याग्रह के समय पुलिस की बर्बरता के शिकार बने सत्याग्रहियों की सुरक्षा के लिए १०० स्वयंसेवकों की टोली बनायीं गयी जिसके सदस्य सत्याग्रह के समय उपस्थित रहते थे। ८ अगस्त को गढ़वाल दिवस पर धारा १४४ तोड़कर जुलूस निकलने पर पूलिस की मार से अनेकों स्वयंसेवक घायल हुए।
विजयदशमी १९३१ को परम पूज्य डॉ हेडगेवार जी जेल में थे उनकी विदर्भ के अष्टीचिमुर क्षेत्र में संघ के स्वयंसेवको ने सामानांतर सरकार स्थापित कर दी । स्वयंसेवको ने असहनीय
अत्याचारों का सामना किया। उस क्षेत्र में १ दर्जन से अधिक स्वयंसेवकों ने अपना जीवन बलिदान कर दिया था। नागपुर के निकट रामटेक के तत्कालीन नगर कार्यवाह श्री रमाकांत केशव देशपांडे उपाख्य बालासाहेब देशपांडे को आंदोलन में भाग लेने पर मृत्यु दंड सुनाया गया।बाद में अपनी सरकार के समय मुक्त होकर उन्होंने बनवासी कल्याण आश्रम की स्थापना की।
देश के कोने-कोने में स्वयंसेवक जूझ रहे थें।स्वयंसेवको द्वारा दिल्ली- मुजफ्फरनगर रेल लाईन पूरी तरह क्षतिग्रस्त कर दी गयी। आगरा के निकट बरहन रेलवे स्टेशन को जला दिया गया| मेरठ जिले में मवाना तहसील पर झंडा फहराते समय स्वयंसेवकों पर पुलिस ने गोली चलायी जिसमे अनेकों घायल हुए थे।
चतुर्थ संघचालक पूज्य रज्जु भैया जी ने प्रयाग में आंदोलन किया था।संघ द्वारा १९४२ के अंग्रेजो भारत छोडो आंदोलन में भी माननीय दतोपन्त ठेंगड़ी जी सहित अनेको प्रमुख संघ नेताओ को आंदोलन के लिये भेजा गया था।
संघ का क्रांतिकारियों से रिश्ता
क्रांतिकारीयो के बिच संघ के संस्थापक हेडगेवार जी का नाम "कोकीन " था तथा शस्त्रो के लिये "एनाटमि " शब्दो का प्रयोग किया जाता था।क्रांतिकारीयो से रिश्ते प्रगाढ़ होने के कारण ही १९२८ में साण्डर्स की हत्या के बाद राजगुरू को डाक्टर जी ने अपने पास छिपाकर रखा था। १९२७ में जब ब्रिटीश सरकार द्वारा भारतीय सेनाओ को चीन भेजने के विरोध का प्रस्ताव पूजनीय हेडगेवार जी ने ही तैयार किया था और उस प्रस्ताव को संघ स्वयंसेवक परांजपे जी द्वारा सभा के सामने रखा गया था। और इसी तीव्र विरोध के कारण भारतीय लोगों को चीन जाने से रोका गया था ।
सन १९२८ में 'साइमन कमीशन विरोधी आंदोलन के प्रचार-प्रसार एवं लोगो को जागृत करने का कार्य का दायित्व डा हेडगेवार जी को सौंपा गया । सन २८ अप्रैल १९२९ को वर्धा के प्रशिक्षण वर्ग में स्वयंसेवको को सार्वजनिक रूप से कहा गया कि- "स्वराज्य प्राप्ति के लिये वे अपना सर्वस्व त्याग हेतु तैयार रहे, हमारा लक्ष्य स्वराज्य प्राप्त करना है ।
संघ ने २६ जनवरी १९३० को सभी शाखाओ पर स्वतंत्रता दिवस मनाया था ।
पूना शिविर में प पू गुरूजी तथा बाबा साहेब आप्टे ने अंग्रेजो के विरूद्ध संघर्ष करने का आह्वान किया ।
संघ के स्वयंसेवको द्वारा क्रांतिकारियों व आंदोलनकारीयो को देश भर में शरण दी गयी।दिल्ली प्रान्त के माननीय संघचालक श्री हंसराज गुप्ता जी के निवास पर अरूणा व जयप्रकाश नारायण, पुणे के माननीय संघचालक श्री भाउसाहब देवरस के यहाँ अच्युत पटवर्धन , आंध्र प्रदेश के माननीय प्रान्त संघचालक पण्डित सातवेलकर के यहाँ क्रांतिकारी नाना पाटिल आदि ने आवास के साथ-साथ अपनी गतिविधियों का केंद्र बनाया।
साभार पुष्कर जी नारायणा
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