राजा परीक्षित ने शुकदेव जी से कहा कि "हे भगवन,आपने मुझे समस्त एकादशी का माहात्म्य और कथा वर्णन विस्तारपूर्वक सुनाया है कृपा करके भाद्रपद कृष्ण पक्ष एकादशी का माहात्म्य और कथा वर्णन भी विस्तारपूर्वक सुनाइये ! भाद्रपद कृष्ण एकादशी का वैदिक नाम क्या है? व्रत करने की विधि तथा इसका माहात्म्य कहिए।
शुकदेव जी कहने लगे कि- हे राजन ! इस एकादशी का नाम अजा एकादशी है,तथा यह सब प्रकार के समस्त पापों का नाश करने वाली है। इस एकादशी के दिन भगवान श्री विष्णु जी की पूजा का विधान होता है। जो मनुष्य इस दिन भगवान ऋषिकेश की पूजा करता है उसको वैकुंठ की प्राप्ति अवश्य होती है।
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अजा एकादशी व्रत की विधिएकादशी के दिन प्रातः सूर्योदय के पूर्व स्नान ध्यान से निवृत होकर भगवान श्री विष्णु के समक्ष घी का दीपक जलाएं फलों तथा फूलों से भक्तिपूर्वक पूजा करनी चाहिए। भगवान की पूजा के बाद विष्णु सहस्रनाम,गोपाल सहस्त्रनाम अथवा श्री मद्भगवद्गीता महाग्रंथ का पाठ करना चाहिए।
साधक को निराहार एवं निर्जल रहने का विधान शास्त्रों में है। किन्तु सामर्थ्य न हो तो फलाहार कर सकते हैं।
सामान्य स्थिति में सांय काल में भगवान श्री विष्णु की पूजा के पश्चात जल और फल ग्रहण कर सकते हैं। इसमें एकादशी को रात्रि जागरण करने के पश्चात द्वादशी तिथि को प्रातः ब्राह्मण को भोजन करवाने के पश्चात ही स्वयं अन्न युक्त भोजन करना चाहिए।
अजा एकादशी व्रत कथा
प्राचीनकाल में सूर्यवंश के सत्यवादी राजा हरिशचंद्र नामक एक चक्रवर्ती राजा का राज्य था। किसी कर्म गति में पड़कर राजा ने अपना समस्त राज्य व धन वैभव त्याग दिया, साथ ही अपनी स्त्री, पुत्र तथा स्वयं को बेच दिया।
वह राजा श्मसान में चांडाल का दास बनकर सत्य को धारण करता हुआ मृतकों का वस्त्र ग्रहण करता था किन्तु सत्य के मार्ग से किसी प्रकार से भी तनिक भी विचलित नहीं हुआ। राजा चिंता के समुद्र में डूबकर अपने मन में विचार करने लगता और ईश्वर से प्रार्थना करता कि- "हे प्रभु , अब मैं कहां जाऊं? क्या करूं? जिससे मेरा परिवार मुझसे पुनः मिले और मेरा उद्धार हो।"
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इस प्रकार का कार्य करते करते राजा को कई वर्ष व्यतीत गए। एक दिन राजा इसी चिंता में बैठा हुआ था कि महर्षि गौतम का आगमन हुआ । राजा ने उन्हें देखकर प्रणाम किया और सारा वृत्तांत का सुनाया। यह बात सुनकर गौतम ऋषि ने कहा कि राजन भाग्य से आज से सात दिन बाद भाद्रपद कृष्ण पक्ष की अजा नाम की एकादशी आएगी, तुम विधिपूर्वक उसका व्रत करो तुम्हारा भाग्य निश्चय ही बदलेगा ।गौतम ऋषि ने कहा कि इस अद्भुत व्रत के पुण्य प्रभाव से तुम्हारे समस्त जन्मों के पाप नष्ट हो जाएंगे। इतना कहकर गौतम ऋषि अंतर्ध्यान हो गए। राजा ने महर्षि गौतम के कथनानुसार एकादशी आने पर विधिपूर्वक व्रत व जागरण किया। उस व्रत के प्रभाव से राजा के समस्त पाप नष्ट हो गए।
स्वर्ग से बाजे बजने लगे और पुष्पों की वर्षा होने लगी। उसने अपने मृतक पुत्र को जीवित और अपनी स्त्री को वस्त्र तथा आभूषणों से युक्त देखा। व्रत के प्रभाव से राजा को पुन: राज्य मिल गया। अंत में वह अपने परिवार सहित स्वर्ग को गया।
हे राजन ! यह सब अजा एकादशी के प्रभाव से ही हुआ। अत: जो मनुष्य यत्न के साथ विधिपूर्वक इस व्रत को करते हुए रात्रि जागरण करते हैं, उनके समस्त पाप नष्ट होकर अंत में वे स्वर्गलोक को प्राप्त होते हैं। इस एकादशी की कथा के श्रवण मात्र से अश्वमेध यज्ञ का फल प्राप्त होता है।
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