१६६६ की बात है , यह दिन हिदुस्तान के इतिहास में विशेष महत्व का दिन है इसीलिए यह दिन इतिहास में स्वर्णाक्षरों में दर्ज है।
मिर्जा राजा जयसिंह के आग्रह पर हिंदू ह्रदय सम्राट वीर शिवाजी और मुग़ल बादशाह औरंगजेब दोनों के मध्य बातचीत के लिए आगरा में मिलने का समय निश्चित हो गया था। शिवाजी की योजना थी कि औरंगजेब का वध उसके ही दरबार में ही कर दिया जाए, जिससे सारे देश में फैला मुस्लिम आतंक मिट जायेगा । अतः अपने पुत्र सम्भाजी और ३५० से अधिक विश्वस्त सैनिकों के साथ वे आगरा की ओर कूँच कर दिये।
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औरंगजेब भी तो जन्मजात धूर्त था। उसने दरबार में शिवाजी का बहुत अपमान किया और पिता-पुत्र दोनों को पकड़कर जेल में डाल दिया तथा वह इन दोनों को जेल में ही समाप्त करने की योजना बनाने लगा। शिवाजी समझ गये कि यहाँ रहना अर्थात मौत को निमंत्रण है। गोलकुंडा से आगरा तक के मार्ग के मध्य में उनके कईं विश्वस्त लोग तथा समर्थ स्वामी रामदास द्वारा स्थापित हिन्दू अखाड़े विद्यमान थे। इसी को ध्यान में रखकर उन्होंने औरंगजेब की जेल को तोड़ने की योजना बनायी।योजनानुसार कुछ ही दिन में यह सूचना फैला दी गयी कि शिवाजी गंभीर रूप से बीमार हैं। उन्हें कोई ऐसा रोग हुआ है कि दिन-प्रतिदिन वजन कम हो रहा है। उनके साथ आये हुए वैद्य ही नहीं, आगरा नगर के वैद्य भी निराश हो गये हैं, तथा अब वे कुछ ही दिनों के अतिथि है। औरंगजेब ने जब यह सुना तो वह बहुत खुश हुआ। उसे लगा कि भगवान् ने उसका कार्य और आसान कर दिया शिवाजी तो स्वयं ही मरने वाले है; परन्तु उसे क्या पता कि शिवाजी तो कुछ और तैयारियाँ कार। रहे थे।
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एक दिन शिवाजी ने यह खबर भिजवायी कि वे जीवन के अंतिम समय में कुछ धर्म पुण्य करना चाहते हैं। औरंगजेब को इसमें भला क्या आपत्ति हो सकती थी ? प्रति दिन मिठाइयों से भरे बड़े बड़े टोकरे शिवाजी के कक्ष तक आते। शिवाजी उन्हें हाथ से स्पर्श कर पुनः बांटे जाने हेतु भिजवा देते। जाते समय जेल के द्वार पर प्रत्येक टोकरे की तलाशी होती तथा उसके पश्चात उन्हें गरीबों और भिखारियों में बँटवा दिया जाता।कई दिन ऐसे ही यत्न चलता रहा । १७ अगस्त, १६६६ जेल तोड़ने की तिथि निश्चित की गयी थी। दो दिन पूर्व ही आगे की व्यवस्था के लिए शिवाजी के कुछ खास साथी जेल के बाहर आ गये। वह निश्चित दिन आया। आज दो टोकरों में शिवाजी और सम्भाजी बैठे। शिवाजी की वेशभूषा में हिरोजी फर्जन्द चादर ओढ़कर शिवाजी के बिस्तर पर लेट गया। अभिनय में किसी प्रकार की कमी न रह जाये, इसलिए शिवाजी का अति विश्वस्त सेवक मदारी मेहतर उनके पाँव दबाने लगा। कहारों ने टोकरे उठाये और द्वार पर पहुँच गये।
चूंकि इतने दिनों से यही क्रम चल रहा था अतः पहरेदारों ने विश्वास करके एक दो टोकरे ही जांच हेतु रोक कर शेष टोकरों को ऐसे ही बाहर जाने दिया। मिठाई वाली टोकरियाँ गरीब बस्तियों में पहुंची ; तथा शेष दोनों नगर के बाहर ही रोक दी । वहाँ शिवाजी के विश्वस्त साथी घोड़े लेकर तैयार थे। रात रात में ही सब सुरक्षित मथुरा पहुँच गये।
कुछ घंटों बाद हिरोजी और मदारी भी दवा लाने के बहाने जेल से बाहर निकल गये। रात भर जबरदस्त पहरा चलता रहा। सुबह जब यह भेद खुला, तो औरंगजेब के होश उड़ गये। चारों ओर घुड़सवार दौड़ाये गये; पर अब तो शिवाजी को पकड़ना असंभव था।
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