Thursday, August 17, 2017

हमारे महापुरुष : अंग्रेजों को इंग्लैंड जाकर मारने वाले अमर शहीद श्री मदन लाल धींगरा की जीवन गाथा

 

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स्वतंत्रता जितना सूंदर नाम दिखाई और सुनाई देता है उसे पाना उतना ही कठिन और दुष्कर है , माँ भारती की स्वाधीनता के लिए हमारे देश के हज़ारों क्रांतिकारियों ने खड़े खड़े और हँसते हँसते अपने प्राणों की आहुति दे दी। ऐसे ही महान क्रांतिकारी थे ‘अमर बलिदानी श्री मदन लाल धींगरा' जी भी।  अमर बलिदानी श्री मदन लाल धींगरा जी महान् राष्ट्रभक्त, धर्मनिष्ठ, कर्तव्यनिष्ठ और बहुत ही अनुशाषित क्रांतिकारी थे। माँ भारती के लिए फांसी के फंदे को हँसते हँसते चूम लिया किन्तु अपने कर्त्तव्य पथ से तनिक भी विमुख न हुए ऐसे थे "परम पूज्य धींगरा जी।" 

प्रारम्भिक जीवन परिचय

श्री मदन लाल धींगरा का जन्म सन् १८८३ में पंजाब प्रांत के एक संपन्न और संभ्रांत हिंदू परिवार में हुआ था। उनके पिताजी एक पेशेवर डॉक्टर थे और पूर्णरूपेण पाश्चात्य संस्कृति के पैरोकार थे ; किन्तु उनकी माताजी अत्यन्त धार्मिक, शालीन और भारतीय संस्कारों से परिपूर्ण एक विशुद्ध भारतीय नारी थीं। उनका परिवार अंग्रेजों बहुत ही का विश्वासपात्र था। जब श्री मदन लाल को भारतीय स्वतंत्रता संग्राम आंदोलन से सम्बंधित आरोप में लाहौर के एक विद्यालय से निष्काषित कर दिया गया, तो उनके परिवार ने उनकी एक न सूनी और परिवार ने श्री मदन लाल से आजीवन नाता तोड़ लिया। ऐसी विकत परिस्थितियों में धींगरा जी को बहुत कष्ट उठाने पड़े और खाने के लिए दोनों समय का भोजन भी जुटाना कठिन हो गया था, अतः उन्होंने म्हणत मजदूरी करके जीवनयापन करने का निश्चय किया । कुछ दिन तक उन्होंने मुम्बई में भी काम किया। अपनी बड़े भाई से विचार विमर्श कर वे सन् १९०६ में उच्च शिक्षा के लिए इंग्लैड चले गये, जहां 'यूनिवर्सिटी कॉलेज ऑफ़ लंदन' में मकेनिकल इंजीनियरिंग में प्रवेश लिया और अध्ययन करने लगे । अध्ययन हेतु  उन्हें उनके बड़े भाई एवं इंग्लैंड के कुछ राष्ट्रवादी कार्यकर्ताओं से आर्थिक सहायता भी मिली।

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सावरकर का सान्निध्य
ईश्वरीय संयोग बना और लंदन में धींगरा जी विनायक दामोदर सावरकर और श्याम जी कृष्ण वर्मा जैसे प्रखर राष्ट्रवादी विभूतियों के संपर्क में आए। सावरकर जी ने उन्हें अस्त्र शस्त्र  चलाने का गहन प्रशिक्षण दिया। धींगरा जी  'अभिनव भारत मंडल' के सदस्य होने के साथ साथ  'इंडिया हाउस' नाम के  सांस्कृतिक संगठन से भी जुड़ गए जो भारतीय विद्यार्थियों के लिए राजनीतिक गतिविधियों का केंद्र  था। इस अवधि में ब्रिटेन में पढ़ने वाले अनेकों भारतीय छात्रों ने भारत में खुदीराम बोस, कनानी दत्त, सतिंदर पाल और कांशीराम जैसे देशभक्तों को फांसी दिए जाने की घटनाओं से तिलमिलाकर अंग्रेजी हुकूमत से बदला लेने की ठानी।


कर्ज़न वाइली की हत्या
१ जुलाई १९०९ को  लंदन में आयोजित 'इंडियन नेशनल एसोसिएशन' के वार्षिक समारोह में बहुत से भारतीय और अंग्रेज़ शामिल हुए थे । धींगरा जी भी इस समारोह में अंग्रेज़ों को सबक सिखाने के उद्देश्य से गए थे। भारतीयों का जासूसी कार्यों में इस्तेमाल करने वाले ब्रिटिश अधिकारी कर्ज़न वाइली ने जैसे ही समारोह वाले हॉल में प्रवेश किया, धींगरा जी ने रिवाल्वर से चार कारतूस दाग कर इसा मसीह के पास पहुंचा दिया। कर्ज़न का बचाव करने वाला फारसी डॉक्टर भी भगवान् को प्यारा हो गया। 

सर्वोच्च बलिदान
कर्ज़न वाइली को परलोक की सैर पर भेजने के तुरंत बाद भागने में असफल रहे श्री मदन लाल धींगरा ने अपने पिस्तौल से अपनी हत्या करनी चाही; परंतु अंग्रेजो ने उन्हें पकड लिया। २३ जुलाई को धींगरा जी के प्रकरण की सुनवाई पुराने बेली कोर्ट, लंदन में हुई। उनको मृत्युदण्ड दिया गया और १७ अगस्त सन् १९०९ को फांसी दे दी गयी। इस महान् क्रांतिकारी के रक्त से राष्ट्रभक्ति के जो बीज उत्पन्न हुए वह हमारे देश के लिए अत्यंत महत्त्वपूर्ण योगदान है।

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