Tuesday, August 15, 2017

श्री कृष्ण जन्माष्टमी विशेष : इस जन्माष्टमी यदि कान्हा को प्रसन्न करना है तो करें ये अचूक उपाय

 


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आज समस्त विश्व के अलग भागों में भगवन श्री कृष्णा के जन्मोत्सव की धूम मची हुई है।  श्री कृष्णा  के समस्त भक्त अपने अपने सामर्थ्य और मनोयोग से आज रात के १२ बजे के प्राकट्य महोत्सव को भव्य बनाने में पूरे तन मन धन से लगे हुए है। भगवान श्री कृष्ण को प्रसन्न करने के लिए अनेकों  यत्न किये जा रहे है।  किन्तु ऐसी मान्यता है कि भगवन श्री कृष्णा को प्रसन्न करने का सब आसान और सुलभ उपाय है ५६ भोग का प्रसाद अर्पित करना।
भगवान कृष्ण को चढ़ने वाले ५६ भोग के नाम हमने बचपन से सुना है कि भगवान को ५६ भोग चढ़ाया जाता है। क्या आपको पता है कि ५६ भोग में कौन - कौन से व्यंजन पकवान चढ़ाये जाते है। और इसके पीछे क्या लोक कथा प्रचलित है। धर्मग्रंथों में ५६ भोग की बड़ी महिमा बताई गई है।
 भगवन श्री कृष्णा को प्रसन्न करने का सब आसान और सुलभ उपाय है

छप्पन भोग की कथा
पौराणिक मान्यता के अनुसार, भगवान श्रीकृष्‍ण एक दिन में आठ बार भोजन करते थे। जब इंद्र के प्रकोप से सारे व्रज को बचाने के लिए भगवान श्री कृष्‍ण ने गोवर्धन पर्वत को उठाया था, तब लगातार सात दिन तक भगवान ने अन्न जल ग्रहण नहीं किया। दिन में आठ प्रहर भोजन करने वाले व्रज के कन्हैया का लगातार सात दिन तक भूखा रहना उनके भक्तों के लिए कष्टप्रद बात थी। भगवान के प्रति अपनी अनन्य श्रद्धा भक्ति दिखाते हुए व्रजवासियों ने सात दिन और आठ प्रहर का हिसाब करते हुए ५६ प्रकार का भोग लगाकर अपने प्रेम को प्रदर्शित किया। तभी से भ्‍ाक्‍तजन कृष्‍ण भगवान को ५६ भोग अर्पित करने लगे।
छप्पन भोग की कथा

छप्पन भोग हैं छप्पन सखियां ऐसा भी कहा जाता है कि गौ लोक में भगवान श्रीकृष्‍ण राधिका जी के साथ एक दिव्य कमल पर विराजते हैं। उस कमल की तीन परतें होती हैं। प्रथम परत में आठ, दूसरी में सोलह और तीसरी में बत्तीस पंखुड़िया होती हैं। प्रत्येक पंखुड़ी पर एक प्रमुख सखी और मध्य में भगवान विराजते हैं। इस तरह कुल पंखुड़ियों संख्या छप्‍पन होती है। ५६ संख्या का यही अर्थ है ।

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छप्पन भोग के नाम इस प्रकार है :- १. भक्त (भात), २. सूप (दाल), ३. प्रलेह (चटनी), ४. सदिका (कढ़ी), ५. दधिशाकजा (दही शाक की कढ़ी), ६. सिखरिणी (सिखरन), ७. अवलेह (शरबत), ८. बालका (बाटी), ९. इक्षु खेरिणी (मुरब्बा), १०. त्रिकोण (शर्करा युक्त), ११. बटक (बड़ा), १२. मधु शीर्षक (मठरी), १३. फेणिका (फेनी), १४. परिष्टश्च (पूरी), १५. शतपत्र (खजला), १६. सधिद्रक (घेवर), १७. चक्राम (मालपुआ), १८. चिल्डिका (चोला), १९. सुधाकुंडलिका (जलेबी), २०. धृतपूर (मेसू), २१. वायुपूर (रसगुल्ला), २२. चन्द्रकला (पगी हुई), २३. दधि (महारायता), २४. स्थूली (थूली), २५. कर्पूरनाड़ी (लौंगपूरी), २६. खंड मंडल (खुरमा), २७. गोधूम (दलिया), २८. परिखा, २९. सुफलाढय़ा (सौंफ युक्त), ३०. दधिरूप (बिलसारू), ३१. मोदक (लड्डू), ३२. शाक (साग), ३३. सौधान (अधानौ अचार), ३४. मंडका (मोठ), ३५. पायस (खीर), ३६. दधि (दही), ३७. गोघृत (गाय का घी), ३८. हैयंगपीनम (मक्खन), ३९. मंडूरी (मलाई), ४०. कूपिका (रबड़ी), ४१. पर्पट (पापड़), ४२. शक्तिका (सीरा), ४३. लसिका (लस्सी), ४४. सुवत, ४५. संघाय (मोहन), ४६. सुफला (सुपारी), ४७. सिता (इलायची), ४८. फल, ४९. तांबूल, ५०. मोहन भोग, ५१. लवण, ५२. कषाय, ५३. मधुर, ५४. तिक्त, ५५. कटु, ५६. अम्ल।

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