Sunday, August 6, 2017

रक्षाबंधन (राखी) का त्योंहार मनाने की शास्त्र सम्मत विधि और रक्षाबंधन का वैदिक इतिहास

 

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प्रतिवर्ष श्रावण पूर्णिमा पर आने वाले भाई बहन के प्रेम के प्रतीक त्यौहार, रक्षाबंधन के दिन बहन अपने भाई का औक्षण कर प्रेम के प्रतीक के रूप में उसे राखी बांधती है । भाई अपनी बहन को भेंट वस्तु देकर उसे शुभ आशीर्वाद का आदान प्रदान करता है तथा जीवन पर्यन्त बहन के सौभाग्य के निमित्त संकल्प लेता है । सहस्रों वर्षों से चले आ रहे इस रक्षाबंधन त्यौहार का इतिहास, शास्त्र, राखी सिद्ध करने की पद्धति और इस त्यौहार का महत्त्व इस लेख में बताया गया है । सनातन संस्था द्वारा प्रकाशित ग्रंथों के आधारपर संकलित की गयी यह जानकारी सभी के लिए लाभदायी है।

रक्षाबंधन का वैदिक इतिहास
‘पाताल लोक के राजा बलि के हाथ पर राखी बांधकर, माँ लक्ष्मी ने उन्हें अपना भाई बनाया एवं भगवान् श्री नारायण को बंधनों से मुक्त करवाया था  वह दिन था श्रावण पूर्णिमा का था । ‘बारह वर्ष इंद्र और दैत्यों में युद्ध चला । मृत्युलोक के  १२ वर्ष, देवताओं १२ दिन के सामान होते है । इंद्र थक गए थे और दैत्य भारी पड रहे थे । इंद्र देव इस युद्ध में स्वयं के प्राण बचाकर भाग जाने की सिद्धता में थे । इंद्र की यह व्यथा सुनकर इंद्राणी देवताओं के गुरु बृहस्पति देव की शरण में पहुंची । गुरु बृहस्पति ध्यान लगाकर इंद्राणी से बोले, ‘‘यदि तुम अपने पातिव्रत्य बल का उपयोग कर यह संकल्प करो कि मेरे पतिदेव सुरक्षित रहें और इंद्र की दांयी कलाई पर एक धागा बांधो, तो इंद्र युद्ध में विजयी होंगे ।’’ इंद्र विजयी हुए और इंद्राणी का संकल्प साकार हो गया ।


राखी बांधने का भ्ह्वनात्मक महत्व 

रक्षाबंधन के दिन बहन द्वारा भाई के हाथ पर राखी बांधी जाती है । उसका उद्देश्य होता है, ‘भाई का उत्कर्ष हो और भाई बहन की रक्षा करे ।’ भाई को राखी बांधे, इससे अधिक महत्त्वपूर्ण है कोई युवती / स्त्री किसी युवक / पुरुष को राखी बांधे । इस कारण विशेषतः युवकों एवं पुरुषों के युवती अथवा स्त्री की ओर देखने के दृष्टिकोण में परिवर्तन होता है ।


राखी बांधने के पीछे का शास्त्र

राखी पूर्णिमा अर्थात रक्षाबंधन के दिन वातावरण में यमतंरगों की मात्रा अधिक होती है । यह तरंगे पुरुषों की देह में अधिक मात्रा में गतिमान होती हैं । इस कारण उनकी सूर्यनाडी भी जागृत होकर देह में स्थित रज-तम की प्रबलता बढती है । इन तरंगों को रोकने हेतु पुरुष में विद्यमान शिवतत्त्व को जागृत कर जीव की सुषुम्नानाडी अंशतः जागृत किया जाता है । प्रत्यक्ष शक्तिबीज द्वारा अर्थात बहन द्वारा राखी का बंधन यही कार्य करता है ।


राखी बांधने की वैदिक विधि 
चावल, स्वर्ण,चन्दन,हल्दी एवं श्वेत सरसों को छोटी पोटली में एकत्रित बांधने से रक्षासूत्र  अर्थात राखी बनती है । वह रेशमी धागे से बांधी जाती है । इस समय आगे दी गयी प्रार्थना की जाती है ।

                                                    येन बद्धो बली राजा दानवेन्द्रो महाबलः ।

                                                तेन त्वामपि बध्नामि रक्षे मा चल मा चल ।।


अर्थ : महाबली एवं दानवेंद्र बलि राजा जिससे बद्ध हुआ, उस रक्षा से मैं तुम्हें भी बांधती हूं । हे राखी, तुम अडिग रहना ।

इस के साथ ही बहन भाई के कल्याण हेतु एवं भाई बहन की रक्षा हेतु प्रार्थना करें । साथ ही वे ईश्वर से यह भी प्रार्थना करें कि ‘राष्ट्र एवं धर्म की रक्षा हेतु हमसे प्रयास होने दीजिए ।’


राखी के माध्यम से होनेवाला देवताओं का अनादर रोकिए !आजकल राखी पर ‘ॐ’ अथवा देवताओं के चित्र होते हैं । राखी का उपयोग करने के उपरांत वे अस्त-व्यस्त पडे हुए मिलते हैं । यह एक प्रकार से देवता एवं धर्मप्रतीकों का अपमान है, जिससे पाप लगता है । इससे बचने के लिए राखी को जल में विसर्जित कर देना चाहिए !


रक्षाबंधन और चंद्रग्रहण एक दिन हों, तो क्या करें?
इस वर्ष ७.८.२०१७ को रक्षाबंधन और चंद्रग्रहण एक ही दिन होने के कारण रक्षाबंधन कैसे मनाएं, इस विषय में समाज में भ्रम उत्पन्न हुआ है । इस विषय में पंचांगकर्ता श्री मोहन दातेजी ने जानकारी दी है कि नागरिक वेधकाल में, अर्थात रात १० बजे तक रक्षाबंधन मनाएं ।

इस विषय में महर्षि अध्यात्म विश्‍वविद्यालय के ज्योतिष विभाग की ज्योतिष फलित विशारद श्रीमती प्राजक्ता जोशी ने कहा है की, वेधकाल में रक्षाबंधन किया जा सकता है । इसलिए, रात्रि १० बजे तक रक्षाबंधन करें । सवेरे ७.३० से ९.०० बजे तक राहूकाल, पश्‍चात ११.०८ मिनट तक भद्रा यह अशुभ समय है । अतः, सवेरे ११.०८ से दोपहर १ बजे तक (वेधकाल से पहले) रक्षाबंधन करना अधिक लाभप्रद होगा ।

साभार : सनातन संस्था

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