भगवान गणेश ऋद्धि सिद्धि और बुद्धि के देवता हैं । भगवान श्री गणपति सभी को आनंद देने वाले देवता हैं । अतः हमें शास्त्र के अनुसार ही गणपति उत्सव मनाना चाहिए, तभी हम पर भगवान गणपति की कृपा दृष्टि होगी ।वैदिक भारत आपको शास्त्रानुसार गणेशोत्सव कैसे मनाएं एवं गणेशोत्सव के अनाचार कैसे बंद करें इस विषय में जानकारी देगा।
आखिर क्यों मनाते है गणेशोत्सव ?
श्री गणेशोत्सव काल में अर्थात भाद्रपद शुक्ल चतुर्थी से भाद्रपद शुक्ल चतुर्दशी तक सामान्य की तुलना में पृथ्वी पर गणेश तत्व १ सहस्र गुना अधिक कार्यरत रहता है । इस काल में की गई श्री गणेशोपासना से गणेश तत्व का लाभ अधिकतम होता है ।
गणेशोत्सव को नयी मू्र्ति क्यों लायी जाती है ?
गणेश चतुर्थी के दिन पूजाघर में गणपति की मूर्ति होते हुए भी नई मूर्ति लाते है, इसका उद्देश्य है, श्री गणेश चतुर्थी के समय पृथ्वी पर गणेश तरंगें अत्यधिक मात्रा में आती हैं । उनका आह्वान यदि पूजाघर में रखी गणपति की मूर्ति में किया जाए तो उसमें अत्यधिक शक्ति की निर्मिति होगी । इस ऊर्जित मूर्ति की उत्साहपूर्वक विस्तृत पूजा-अर्चना वर्षभर करना अत्यंत कठिन हो जाता है । उसके लिए कर्मकांड के कडे बंधनों का पालन करना पडता है । अतः गणेश तरंगों के आह्वान के लिए नर्इ मूर्ति उपयोग में लाई जाती है । तदुपरांत उसे विसर्जित किया जाता है ।
दूब आैर गुडहल के पुष्प ही क्यों ?
जिस मूर्ति की हम पूजा करते हैं, उसके देवत्त्व में वृद्धि हो एवं चैतन्य के स्तर पर साधक को उसका लाभ हो, इसलिए उस देवता को उनका तत्त्व अधिक से अधिक आकर्षित करने वाली वस्तुएं चढाना उपयुक्त होता है । गुडहल के पुष्प में विद्यमान रंगकणों एवं गंधकणों के कारण ब्रह्मांड मंडल के गणेश तत्व के पवित्रक उसकी ओर आकर्षित होते हैं । इसलिए गणेशजी को गुडहल के पुष्प अर्पित होते है । दूर्वा में गणेश तत्व आकर्षित करने की क्षमता सर्वाधिक होती है, अतः श्री गणेश को दूर्वा भी चढाते है । दूर्वा अधिकतर विषम संख्या में (न्यूनतम ३ अथवा ५, ७, २१ आदि) अर्पण करते हैं ।
गणेश उत्सव में यह भूलकर भी ना करें
कागज की लुगदी से बनाई गई अथवा प्लास्टर ऑफ़ पेरिस से बनी मूर्ति सबसे अधिक पर्यावरण प्रदूषण करती है, अतः शास्त्रानुसार चिकनी मिट्टीकी मूर्ति लाएं । इस मूर्ति में वातावरण में विद्यमान गणेश तरंगें आकर्षित करनेकी क्षमता भी अधिक होती है । श्री गणेशजी को पांडाल में लाते समय सिनेमा के गीत लगाए जाते हैं । ऐसे गीत गाने तथा उनकी ताल पर चित्र-विचित्र हाव भाव करते हुए नाचना अत्यंत अयोग्य है । ऐसे में अनावश्यक बोलना तथा पटाखे लगाना भी अयोग्य है । हम देवताओं की आरती करते हैं । आरती अर्थात भगवानको आर्तता से पुकारना । चिल्लाते हुए आरती करना, बीचमें ही कोई शब्द ऊंचे स्वर में एवं विचित्र आवाज में बोलना, सिनेमा के गीतों की चालपर आरती बोलना इत्यादि टालें ।
यह अवश्य करें !
नैसर्गिक रंगोंका उपयोग की हुई मूर्तिका ही उपयोग करें; वह इसलिए कि इसी से पर्यावरणकी रक्षा होगी ।
श्री गणेश जी की मूर्ति चित्र-विचित्र आकारों में न बनाकर उनका जो मूल रूप है, उसी रूपमें मूर्ति लाएं ।
सिनेमा के गीतों पर नृत्य करना, सिनेमाके गीत-गायन के कार्यक्रम, संगीत कुर्सी इत्यादि कार्यक्रम न रखते हुए गणपति स्तोत्र पठन की स्पर्धा आयोजित करें ।
यह अवश्य करें !
नैसर्गिक रंगोंका उपयोग की हुई मूर्तिका ही उपयोग करें; वह इसलिए कि इसी से पर्यावरणकी रक्षा होगी ।
श्री गणेश जी की मूर्ति चित्र-विचित्र आकारों में न बनाकर उनका जो मूल रूप है, उसी रूपमें मूर्ति लाएं ।
सिनेमा के गीतों पर नृत्य करना, सिनेमाके गीत-गायन के कार्यक्रम, संगीत कुर्सी इत्यादि कार्यक्रम न रखते हुए गणपति स्तोत्र पठन की स्पर्धा आयोजित करें ।
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