Monday, September 4, 2017

धर्म और त्यौहार : अनंत चतुर्दशी का महत्व, पूजा विधि और व्रत कथा

 

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गणेश चतुर्थी के दस दिन बाद अर्थात भाद्रपद मास के शुक्लपक्ष की चतुर्दशी को पूरे भारत वर्ष में अनन्त चतुर्दशी के रुप में मनाई जाती है। इस दिन अनन्त भगवान की पूजा करके और अनंत सूत्र बांधकर अनंत भगवान से संकट से रक्षा करने की प्रार्थना की जाती है

अनंत चतुर्दशी की पूजा का मुहूर्त
इस वर्ष भाद्रपद शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी अर्थात अनंत चतुर्दशी 05 सितम्बर को है। इस दिन अनंत व्रत किया जाता है।

अनंत चतुर्दशी का पौराणिक महत्व
पौराणिक मान्यता है कि जब पाण्डव ,कौरवों से राजपाट हारकर वनवास भोग रहे थे, तब भगवान श्रीकृष्ण के कहने पर उन्होंने अनन्त चतुर्दशी का व्रत किया था। इसी व्रत के प्रभाव से पांडवों को समस्त वैभव की प्राप्ति हुई थी।

अनंत चतुर्दशी पूजा विधि
साधक को प्रात:स्नान करके स्वच्छ वस्त्र धारण करके शुद्ध मन से व्रत करने का संकल्प लेना चाहिए। पूजा घर में कलश की स्थापना करना चाहिए,तथा कलश पर भगवान विष्णु का चित्र स्थापित करना चाहिए। इसके पश्चात सूत का धागा लें और इस धागे पर चौदह गांठें लगाएं इस प्रकार अनन्तसूत्र तैयार हो जाने पर इसे पूजा स्थल में भगवान किके मूर्ती के समक्ष रखें। इसके पश्चात भगवान विष्णु तथा अनंतसूत्र की वैदिक षोडशोपचार विधि से पूजा संपन्न करनी चाहिए। पूजा करवाते समय ॐ "अनन्ता देवताय नम:" मंत्र का उच्चारण करते रहना चाहिए। पूजा और आरती के पश्चात रक्षा सूत्र बंधन मंत्र पढकर परिवार के समस्त सदस्यों को अपने हाथों में अनंत सूत्र बांधना चाहिए और पूजा के बाद व्रत-कथा का श्रवण करें।

अनंत चतुर्दशी व्रत कथा
सत्ययुग में महर्षि सुमन्तु नाम के एक मुनि थे। सुमन्तु मुनि के एक अति सुन्दर पुत्री थी जिसका नाम था शीला। महर्षि सुमन्तु ने शीला का विवाह कौण्डिन्य मुनि से कर दिया। चूँकि शीला बाल्यकाल से ही अनन्त भगवान् का व्रत किया करती थी, अत: विवाह उपरांत भी वह अनंत भगवान का पूजन करती है और अनन्तसूत्र बांधती हैं अतः इस व्रत के प्रभाव से उसके घर में सदैव सुख का वास रहता है। एक दिन कौण्डिन्य मुनि की दृष्टि शीला के हाथ में बंधे अनन्त सूत्र पर पड़ी ,सूत्र देखकर उन्होंने शीला से कहा की वह इसे पसंद नहीं करते और कहा की वह इसे अपने हाथ से उतार दे। शीला ने बहुत अनुनय विनय किया किन्तु कौण्डिन्य मुनि को समझ में नहीं आया और जिद्द कर बैठे, और अनंत सूत्र को जला दिया। इस कृत्य के फलस्वरूप स्वरुप उनके जीवन का एक एक पल घोर संकटों से भर गया। दींन दुर्बल हो चुके कौण्डिन्य ऋषि को अनंत सूत्र का महत्व समझ में आया और अपराध का प्रायश्चित करने का निर्णय किया। अनन्त भगवान से क्षमा याचना करके चौदह वर्ष तक निरंतर अनन्त-व्रत का संकल्प किया। उनके संकल्प से प्रसन्न होकर भगवान अनंत ने उन्हें क्षमा किया और आजन्म वैभवशाली होने का शुभ आशीर्वाद देकर अंतर्ध्यान हो गए।

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