Monday, September 4, 2017

वैदिक ज्ञान : ॐ त्र्यंबकम् यजामहे मन्त्र अर्थात महामृत्युंजय मंत्र की अक्षरशः व्याख्या और माहात्म्य

 

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महा महामृत्युंजय मन्त्र का माहात्म्य :

ॐ त्र्यंबकम् यजामहे मंत्र ३३ वर्णों से मिलकर बना हुआ हैं तथा महर्षि वशिष्ठ के अनुसार ये ३३ वर्ण ३३ देवताओं के घोतक हैं, जैसा की वैदिक भारत ने कुछ समय पूर्व ३३ कोटि अर्थात ३३ प्रकार के देवताओं का वर्णन करते हुए बताया था कि उन तैंतीस देवताओं में ८ वसु, ११ रुद्र, १२ आदित्य, १ प्रजापति,  तथा १ षटकार हैं।  अर्थात 'महामृत्युंजय मन्त्र' अथवा 'ॐ त्र्यंबकम् यजामहे मंत्र' इन तैंतीस प्रकार के देवताओं की सम्पूर्ण शक्तियों से परिपूर्ण होता है। महामृत्युंजय मन्त्र का नियमित पाठ करने वाला प्राणि दीर्घायु के साथ साथ निरोग , ऐश्वर्यवान एवं  धनवान भी होता है । महा महामृत्युंजय मन्त्र का नियमित पाठ करने वाला प्राणी हर दृष्टि से सुखी एवम समृद्ध भी होता है। भगवान शिव शंकर की कृपा दृष्टि ऐसे जातक पर सदैव बनी रहती है।

महा महामृत्युंजय मन्त्र का अक्षरशः वर्णन :
• ॐ      - 
सर्वमान्य जगदाधार-प्रणवाक्षर है।
• त्रि       - ध्रववसु प्राण का घोतक है जो सिर में स्थित है।
• यम    - अध्ववरसु प्राण का घोतक है, जो मुख में स्थित है।
       - सोम वसु शक्ति का घोतक है, जो दक्षिण कर्ण में स्थित है।
कम    - जल वसु देवता का घोतक है, जो वाम कर्ण में स्थित है।
य        - वायु वसु का घोतक है, जो दक्षिण बाहु में स्थित है।
जा      - अग्नि वसु का घोतक है, जो बाम बाहु में स्थित है।
म       - प्रत्युवष वसु शक्ति का घोतक है, जो दक्षिण बाहु के मध्य में स्थित है।
हे        - प्रयास वसु मणिबन्धत में स्थित है।
सु       -वीरभद्र रुद्र प्राण का बोधक है। दक्षिण हस्त के अंगुलि के मुल में स्थित है।
        -शुम्भ् रुद्र का घोतक है दक्षिणहस्त् अंगुलि के अग्र भाग में स्थित है।
न्धिम्  -गिरीश रुद्र शक्ति का मुल घोतक है। बायें हाथ के मूल में स्थित है।
पु        - अजैक पात रुद्र शक्ति का घोतक है। बाम हस्तह के मध्य भाग में स्थित है।
ष्टि     - अहर्बुध्य्त् रुद्र का घोतक है, बाम हस्त के मणिबन्धा में स्थित है।
        - पिनाकी रुद्र प्राण का घोतक है। बायें हाथ की अंगुलि के मुल में स्थित है।
र्ध        - भवानीश्वपर रुद्र का घोतक है, बाम हस्त अंगुलि के अग्र भाग में स्थित है।
नम्     - कपाली रुद्र का घोतक है । उरु मूल में स्थित है।
        - दिक्पति रुद्र का घोतक है । यक्ष जानु में स्थित है।
र्वा       - स्था णु रुद्र का घोतक है जो यक्ष गुल्फ् में स्थित है।
रु        - भर्ग रुद्र का घोतक है, जो चक्ष पादांगुलि मूल में स्थित है।
       - धाता आदित्यद का घोतक है जो यक्ष पादांगुलियों के अग्र भाग में स्थित है।
मि      - अर्यमा आदित्यद का घोतक है जो वाम उरु मूल में स्थित है।
व        - मित्र आदित्यद का घोतक है जो वाम जानु में स्थित है।
ब        - वरुणादित्या का बोधक है जो वाम गुल्फा में स्थित है।
न्धा     - अंशु आदित्यद का घोतक है । वाम पादंगुलि के मुल में स्थित है।
नात्    - भगादित्यअ का बोधक है । वाम पैर की अंगुलियों के अग्रभाग में स्थित है।
मृ       - विवस्व्न (सुर्य) का घोतक है जो दक्ष पार्श्वि में स्थित है।
र्त्यो्    - दन्दाददित्य् का बोधक है । वाम पार्श्वि भाग में स्थित है।
मु       - पूषादित्यं का बोधक है । पृष्ठै भगा में स्थित है ।
क्षी      - पर्जन्य् आदित्यय का घोतक है । नाभि स्थिल में स्थित है।
        - त्वणष्टान आदित्यध का बोधक है । गुहय भाग में स्थित है।
मां       - विष्णुय आदित्यय का घोतक है यह शक्ति स्व्रुप दोनों भुजाओं में स्थित है।
मृ        - प्रजापति का घोतक है जो कंठ भाग में स्थित है।
तात्     - अमित वषट्कार का घोतक है जो हदय प्रदेश में स्थित है।

 जो प्राणी श्रृद्धा भाव से  महा महामृत्युंजय मन्त्र का का पाठ करता है, सुनता है सुनाता है उसके शरीर के अंग - अंग की रक्षा ३३ कोटि देवता मिलकर करते है।

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