राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की स्थापना सन् 27 सितंबर 1925 को विजय दशमी के दिन मोहिते के बाड़े नामक स्थान पर डॉ. केशवराव बलिराम हेडगेवार ने की थी। संघ के 5 स्वयंसेवकों के साथ शुरू हुई विश्व की पहली शाखा आज 50 हजार से अधिक शाखाओ में बदल गई और ये 5 स्वयंसेवक आज करोड़ों स्वयंसेवकों के रूप में हमारे समाने है। संघ की विचार धारा में राष्ट्रवाद, हिंदुत्व, हिंदू राष्ट्र, राम जन्मभूमि, अखंड भारत, समान नागरिक संहिता जैसे विजय है जो देश की समरसता की ओर ले जाता है। बीबीसी के अनुसार संघ विश्व का सबसे बड़ा स्वयंसेवी संस्थान है। सबसे पहले 50 वर्ष बाद 1975 में जब आपातकाल की घोषणा हुई तो तत्कालीन जनसंघ पर भी संघ के साथ प्रतिबंध लगा दिया गया। आपातकाल हटने के बाद जनसंघ का विलय जनता पार्टी में हुआ और केन्द्र में मोरारजी देसाई के प्रधानमन्त्रित्व में मिलीजुली सरकार बनी। 1975 के बाद से धीरे-धीरे इस संगठन का राजनीतिक महत्व बढ़ता गया और इसकी परिणति भाजपा जैसे राजनीतिक दल के रूप में हुई जिसे आमतौर पर संघ की राजनीतिक शाखा के रूप में देखा जाता है। संघ की स्थापना के 75 वर्ष बाद सन् 2000 में प्रधानमन्त्री अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व में एनडीए गठबंधन की सरकार भारत की केन्द्रीय सत्ता पर आसीन हुई।
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालकों की सूची
डॉ. केशवराव बलिराम हेडगेवार (1925 - 1940)
माधव सदाशिवराव गोलवलकर (1940 - 1973)
मधुकर दत्तात्रय देवरस (1973 - 1993)
प्रो. राजेंद्र सिंह (1993 - 2000)
कृपाहल्ली सीतारमैया सुदर्शन (के एस सुदर्शन) ( 2000 - 2009 )
संघ की अवधारणा
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की हमेशा अवधारणा रही है कि 'एक देश में दो प्रधान, दो विधान, दो निशान नहीं चलेंगे, नहीं चलेंगे' जब समूचे राष्ट्र और राष्ट्र के नागरिकों को एक सूत्र में बाधा गया है तो धर्म के नाम पर क़ानून की बात समझ से परे हो जाती है, संघ द्वारा समान नागरिक संहिता की बात आते ही संघ को सांप्रदायिक होने की संज्ञा दी जाती है। संघ ने हमेशा कई मोर्चो पर अपने आपको स्थापित किया है। राष्ट्रीय आपदा के समय संघ कभी यह नहीं देखता कि किसकी आपदा मे फसा हुआ व्यक्ति किस धर्म का है। आपदा के समय संघ केवल और केवल राष्ट्र धर्म का पालन करता है कि आपदा में फसा हुआ अमुख भारत माता का बेटा है। गुजरात में आये भूकम्प और सुनामी जैसी घटनाओ के समय सबसे आगे अगर किसी ने राहत कार्य किया तो वह संघ का स्वयंसेवक था।
दीन दयाल शोध संस्थान
संघ के प्रकल्पों ने देश को नई गति दी है, जहाँ दीन दयाल शोध संस्थान ने गांवों को स्वावलंबी बनाने की महत्वाकांक्षी योजना बनाई है। संघ के इस संस्थान ने अपनी योजना के अंतगत क़रीब 80 गांवों में यह लक्ष्य हासिल कर लिया और क़रीब 500 गांवों तक विस्तार किए जाने हैं। दीन दयाल शोध संस्थान के इस प्रकल्प में संघ के हजारों स्वयंसेवक बिना कोई वेतन लिए मिशन मानकर अपने अभियान में लगे है। सम्पूर्ण राष्ट्र में संघ के विभिन्न अनुसांगिक संगठनो राष्ट्रीय सेविका समिति, विश्व हिंदू परिषद, भारतीय जनता पार्टी, बजरंग दल, अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद, राष्ट्रीय सिख संगत, भारतीय मज़दूर संघ, हिंदू स्वयंसेवक संघ, हिन्दू विद्यार्थी परिषद, स्वदेशी जागरण मंच, दुर्गा वाहिनी, सेवा भारती, भारतीय किसान संघ, बालगोकुलम, विद्या भारती, भारतीय वनवासी कल्याण आश्रम सहित ऐसे संगठन कार्यरत है जो क़रीब 1 लाख प्रकल्पों को चला रहे हैं।
संघ की प्रार्थना
हे परम वत्सला मातृभूमि! तुझको प्रणाम शत कोटि बार।
हे महा मंगला पुण्यभूमि ! तुझ पर न्योछावर तन हजार।।
हे हिन्दुभूमि भारत! तूने, सब सुख दे मुझको बड़ा किया;
तेरा ऋण इतना है कि चुका, सकता न जन्म ले एक बार।
हे सर्व शक्तिमय परमेश्वर! हम हिंदुराष्ट्र के सभी घटक,
तुझको सादर श्रद्धा समेत, कर रहे कोटिशः नमस्कार।।
तेरा ही है यह कार्य हम सभी, जिस निमित्त कटिबद्ध हुए;
वह पूर्ण हो सके ऐसा दे, हम सबको शुभ आशीर्वाद।
सम्पूर्ण विश्व के लिये जिसे, जीतना न सम्भव हो पाये;
ऐसी अजेय दे शक्ति कि जिससे, हम समर्थ हों सब प्रकार।।
दे ऐसा उत्तम शील कि जिसके, सम्मुख हो यह जग विनम्र;
दे ज्ञान जो कि कर सके सुगम, स्वीकृत कन्टक पथ दुर्निवार।
कल्याण और अभ्युदय का, एक ही उग्र साधन है जो;
वह मेरे इस अन्तर में हो, स्फुरित वीरव्रत एक बार।।
जो कभी न होवे क्षीण निरन्तर, और तीव्रतर हो ऐसी;
सम्पूर्ण ह्र्दय में जगे ध्येय, निष्ठा स्वराष्ट्र से बढे प्यार।
निज राष्ट्र-धर्म रक्षार्थ निरन्तर, बढ़े संगठित कार्य-शक्ति;
यह राष्ट्र परम वैभव पाये, ऐसा उपजे मन में विचार।।
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के अनेक आनुषंगिक संगठन अपनी-अपनी तरह से सामथ्र्यानुसार समाज के विभिन्न वर्गों के बीच सेवा व विकास कार्य कर रहे हैं। भारत भर में न केवल ग्रामीण क्षेत्रों में, बल्कि शहरी क्षेत्रों में भी सेवा कार्य जारी हैं। वनवासी क्षेत्रों में तो इन संगठनों का विस्तृत कार्य है। वनवासी क्षेत्रों में शिक्षा, स्वास्थ्य व अन्य मूलभूत सुविधाओं की चिंता के अलावा वनवासियों के मूल धर्म पर विदेशी ईसाई मिशनरियों के आघात से उनकी रक्षा करना भी संघ-प्रेरित संस्थाओं, जैसे वनवासी कल्याण आश्रम, वि·श्व हिन्दू परिषद् का प्राथमिक कार्य है।
देशभर में आंकड़ों की दृष्टि से, इस समय संघ-विचार परिवार द्वारा करीब 25,028 सेवा-प्रकल्प चलाए जा रहे हैं। ये प्रकल्प देश के 30 प्रांतों में 11,498 स्थानों पर चल रहे हैं। ये सेवा कार्य भिन्न-भिन्न क्षेत्रों पर केन्द्रित हैं, जैसे स्वास्थ्य, शिक्षा, सामाजिक, आर्थिक विकास व अन्यान्य क्षेत्र, जिनमें क्रमश: 3,112, 14,783, 3,563, 1,820 और 1,750 सेवा-कार्य चल रहे हैं। भौगोलिक दृष्टि से 16,101 सेवा कार्य ग्रामीण क्षेत्रों में, 4,266 वनवासी क्षेत्रों में, 3,412 सेवा बस्तियों में और शेष स्थानों पर 1,249 सेवा कार्य चल रहे हैं।
आइए, अब देखते हैं कि वे कौन से संगठन या संस्थाएं हैं, जिनके सेवा प्रकल्प देशभर में चल रहे हैं। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के 11,396 प्रकल्पों के अलावा वनवासी कल्याण आश्रम के 4,935, वि·श्व हिन्दू परिषद के 4,129, विद्या भारती के 3,980, अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद् के 227, भारत विकास परिषद के 150, दीनदयाल शोध संस्थान के 125 और राष्ट्र सेविका समिति के 86 सेवा प्रकल्प चल रहे हैं। इन प्रकल्पों के माध्यम से कितने लोगों को सहायता प्राप्त हो रही है? राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रकल्पों से 25,12,534 लोग लाभान्वित हो रहे हैं, विद्या भारती से 17,67,362, वि·श्व हिन्दू परिषद से 1,04,282, वनवासी कल्याण आश्रम के प्रकल्पों से 3,96,659, भारत विकास परिषद् से 93,532, राष्ट्र सेविका समिति से 26,136, दीनदयाल शोध संस्थान से 5,550, भारतीय मजदूर संघ से 3,800 और अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद् के सेवा-प्रकल्पों से 2,934 लोगों को लाभ पहुंच रहा है। प्रचारक के रूप में 120 स्वयंसेवक इन सेवा-कार्यों से सीधे जुड़े हैं, तो पूर्णकालिक महिला कार्यकर्ताओं की संख्या 2,273 है। पूर्णकालिक पुरुष कार्यकर्ता 1,737 हैं। अंशकालिक महिला कार्यकर्ता 11,924 और अंशकालिक पुरुष कार्यकर्ता 26,294 हैं। वेतनभोगी महिला कर्मचारी 3,312 हैं तो वेतनभोगी पुरुष कर्मचारियों की संख्या 3,158 है।
शिक्षा
कुल सेवा कार्यों में से 59 प्रतिशत कार्य शिक्षा क्षेत्र में चल रहे हैं। देशभर में करीब 2000 व्यक्तित्व विकास केन्द्र हैं और 6000 से ज्यादा विद्यालय चलाए जा रहे हैं। सभी को प्राथमिक शिक्षा-इस लक्ष्य की प्राप्ति के लिए वनवासी कल्याण आश्रम ने 10,480 विद्यालय आरम्भ किए हैं, जिनमें 18 लाख विद्यार्थी हैं। इन विद्यालयों में 30,000 निपुण शिक्षक कार्यरत हैं। 27 राज्यों में आश्रम के 6000 एकल विद्यालय भी चल रहे हैं, जिनसे 1,80,000 वनवासी बालक लाभ पा रहे हैं। विद्यालयों के अलावा शारीरिक स्वास्थ्य, कुष्ठ निवारण, वनवासी क्षेत्रों में खेल प्रतिभाएं तलाशना आदि भी आश्रम की गतिविधियों में संलग्न हैं। दिल्ली में सेवा भारती 250 बालवाड़ियों का संचालन करती है, जिनमें 7 वर्ष तक की आयु के 10 हजार बच्चे हैं।
स्वास्थ्य
संघ-विचार परिवार द्वारा देश में सात रक्त संग्रह केन्द्र चलाए जा रहे हैं, जिनमें से एक बंगलौर में है और छह महाराष्ट्र में। स्वास्थ्य के क्षेत्र में कुल प्रकल्पों की संख्या 3,112 है। नागपुर के कार्यकर्ताओं ने एक नेत्र केन्द्र स्थापित किया है। चण्डीगढ़ में सेवा भारती ने नेत्रदान अभियान चलाया। इसके अलावा अनेक सचल चिकित्सालय कार्यरत हैं, जो गांवों और सेवा बस्तियों में लोगों को चिकित्सा उपलब्ध करवाते हैं। गुजरात और महाराष्ट्र में ग्रामीणों को आयुर्वेदिक चिकित्सा की जानकारी दी गई है, ताकि छोटी-मोटी बीमारियों का वे स्वयं निदान कर सकें। करीब 500 गांवों में आयुर्वेदिक दवाओं की "किट' दी गई है। महाराष्ट्र के नासिक जिले के कार्यकर्ताओं ने कई गांवों के चुनिंदा लोगों को प्राथमिक स्वास्थ्य प्रशिक्षण दिया है। स्वास्थ्य के क्षेत्र में कुल 1696 कार्यकर्ता संलग्न हैं। विकलांगता एक ऐसा अभिशाप माना जाता है जिससे ग्रस्त व्यक्ति अपने आप में मानसिक रूप से कुंठित रहता है। हिन्दू सेवा प्रतिष्ठान ने बंगलौर शहर के आस-पास 30 गांवों में "सेवा इन एक्शन' प्रकल्प के तहत परस्पर सहयोग समूहों का गठन करके विकलांगों और उनके परिवारों की सहायता का काम हाथ में लिया है।
सामाजिक समरसता
सामाजिक समरसता के लक्ष्य को लेकर देशभर में 3563 प्रकल्प इस समय चल रहे हैं। महाराष्ट्र की संस्था "भटके विमुक्त विकास प्रतिष्ठान' यहां की एक घुमन्तु जनजाति "पारदी' के उत्थान का कार्य कर रही है। मगर सांगवी गांव में पारदियों के 25 परिवारों को बसाया गया है, उनके बच्चों को विद्यालयों में भर्ती कराया गया है।
संस्कृत सम्भाषणम्
भारत में संस्कृत को उतना महत्व नहीं दिया जाता था, जितना कि दिया जाना चाहिए था। संस्कृत भारती ने संस्कृत को फिर से गौरवमयी पद पर प्रतिष्ठित करने के उद्देश्य से संस्कृत सम्भाषणम् आंदोलन चलाया हुआ है। बहुत ही कम समय में संस्कृत में बोलचाल सिखाने के इस अद्भुत प्रयास को न केवल आम जनता ने सराहा और आत्मसात् किया है बल्कि दिल्ली और कर्नाटक सरकार ने अपने विद्यालयों में संस्कृत की शिक्षा पर विशेष गौर करने सम्बंधी निर्देश जारी किए हैं। भारत के तीर्थस्थलों पर विभिन्न उत्सव-पर्वों पर लाखों की संख्या में श्रद्धालु जुटते हैं। संघ-प्रेरित कई संस्थाओं ने अनेक तीर्थों पर लोगों की सहायतार्थ भोजन, चिकित्सा, पेयजल और ठहरने की व्यवस्था का दायित्व संभाला हुआ है।
वन संपदा की रक्षा
पेड़-पौधों की अंधाधुंध कटाई और गैर कानूनी निर्माण कार्यों ने पर्यावरण पर गम्भीर संकट खड़ा कर दिया है। वनों के संरक्षण के लिए हिन्दू सेवा प्रतिष्ठान के आरोग्य विकास प्रकल्प ने कर्नाटक में वृक्षों की गैर कानूनी कटाई के विरुद्ध अभियान छेड़ा हुआ है। साल में एक बार वृक्षारोपण अभियान चलाया जाता है। 1980 के दौरान 75 हजार एकड़ वनभूमि एक संयुक्त निगम को सौंपने की सरकार की कोशिश पर स्वयंसेवकों ने ही लगाम लगायी थी।1989 में कलकत्ता में शुरू हुई संस्था वनबंधु परिषद वनवासी बंधुओं और शेष देशवासियों के बीच एक सेतु का काम करती है। महानगरों और शहरी क्षेत्रों में रहने वाले लोगों को वनवासियों की जीवनचर्या का शायद ही भान हो। परिषद शहरी लोगों को उनके परिवारों सहित वनवासियों के गांवों का भ्रमण कराती है। जब उन्हें वनवासियों के जीवन की सही स्थिति का पता चलता है तो वे परिषद के माध्यम से अपने वनवासी बंधुओं की हर तरह की मदद करते हैं। समाज के कमजोर वर्गों में भी परिषद के सेवा कार्य चलते हैं। इसके अतिरिक्त संघ-विचार परिवार के अनेकानेक संगठन समय-समय पर प्राकृतिक आपदाओं के समय सबसे पहले पहुंचकर राहत कार्यों में जुट जाते हैं। फरीदाबाद में रेल दुर्घटना हो, चरखी-दादरी की विमान दुर्घटना हो, विशाखापट्टनम में हिन्दुस्तान पैट्रोलियम के भंडार में आग की विभीषिका हो, उड़ीसा का महाचक्रवात हो या फिर गुजरात में भूकम्प त्रासदी, संघ के स्वयंसेवक मदद के लिए सर्वप्रथम उपस्थित होते हैं। जाति-पाति, मत-पंथ, वर्ग आदि के भेदों से परे भारत के जन-जन की सेवा का व्रत लिए संघ के स्वयंसेवक रात-दिन कार्य करते हैं
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