भारत की आजादी की लड़ाई में हमारे असंख्य वीरों ने अपनी शहादत देने के लिए होड़ लगाईं हुई थी। कोई गाँधी की अहिंसा वादी राह पर चल रहा था तो कोई अंग्रेजों को उन्ही की भाषा में जवाब देने को लालायित था। उन्हीं में से एक नाम है सरदारों के सरदार शहीदे -आज़म भगत सिंह जी का। देश की आज़ादी की बात हो और सरदार भगत सिंह का नाम याद ना आये ऐसा संभव ही नहीं है। या योन कहें की सरदार भगत सिंह के बिना आजादी की कल्पना करना भी इतिहास के साथ बेमानी होगी। भारत माता के महान वीर सुपुत्र सरदार भगत सिंह का जन्म अखंड भारत के पंजाब प्रांत में लायपुर जिले के बंगा में 28 सितंबर 1907 को हुआ था। सरदार भगत सिंह जब मात्र 12 वर्ष के थे तभी से उनके मन में आजादी की ज्वाला फड़फड़ा रही थी। सरदार भगत सिंह के राष्ट्रप्रेम का आलम यह था की जब देश के आम बच्चे कॉलेज में पढ़ाई कर रहे थे तब सरदार भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु के साथ मिलकर असेंबली में बम फोड़ने की योजना बना रहे थे।
भगत सिंह ने कैसे बनाया था बम ?
भगत सिंह लेनिन के क्रांतिकारी विचारों के प्रबल समर्थक थे। भगत सिंह के मतानुसार यदि देश को अंग्रेजी सत्ता से आजादी दिलानी है तो अंग्रेजो को डराना और देशवासियों की शक्ति का अनुभव करवाना बहुत ही आवश्यक था। इसी योजना के तहत भगत सिंह ने एक बड़ा कदम उठाया और आगरा में लाला छन्नोमल के मकान नंबर 1784 को किराए पर लिया। इसी मकान के एक कमरें में मीटिंग कर भगत सिंह ने अन्य युवा साथियों के साथ मिलकर एसेंबली में बम विस्फोट का प्लान बनाया था। उस समय भगत सिंह इस कमरे का किराया मात्र ढाई रुपये प्रतिमाह दिया करते थे। इसी मकान नंबर 1784 में बैठकर भगत सिंह ने बम का निर्माण किया था।

भगत सिंह के उस मकान में रहकर बम बनाने का राज तब सामने आया था जब कोर्ट में मकान के मालिक छन्नो लाला ने ये बयान दिया था कि उन्होंने भगत सिंह को कमरा किराए पर दिया था और ढाई रुपये किराया लिया था। इस घटना के बाद 23 मार्च 1931 को इस भारत माता के वीर सपूत अमर शहीद भगत सिंह और उनके दो अन्य साथियों सुखदेव और राजगुरु कोek साथ फांसी दे दी गई। आज भले ही वीर भगत सिंह हमारे बीच में नही है, किन्तु सहस्त्र युगों तक उनकी वीरता की गाथा अमर रहेगी।
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