जैसा की विदित है भारत सदियों तक एक सर्वगुण संपन्न राष्ट्र और विश्व गुरु रहा है। ये गौरवशाली सर्वोच्च आसान कुछ लोगों को रास नहीं पाया और भारत के महान इतिहास के साथ छेड़ छाड़ करके; एक छद्म इतिहास तैयार कर दिया। ऐसा ही एक झूठा तथ्य रामायण के रचयिता महर्षि वाल्मीकि के सम्बन्ध में प्रचलित है के वे एक डाकू थे, और बाद में ऋषि बनकर रामायण की रचना की। महर्षि वाल्मीकि के सम्बन्ध में लोगों में एक भ्रान्त धारणा फैली हुई है कि वे आरम्भ में डाकू थे। किन्तु रामायण में उनके सम्बन्ध में एक ऐसी सत्य घटना उपलब्ध होती है जिसे पढ़कर आप आश्चर्य से चकित हो जायेंगे । वाल्मीकिजी के सम्बन्ध में रामायण को ही प्रामाणिक माना जा सकता है। माता सीताजी की पवित्रता की साक्षी देते हुए उन्होंने भगवन श्री राम से कहा था कि-
प्रचेतसोऽहं दशम: पुत्रो राघवनन्दन।
मनसा कर्मणा वाचा भूतपूर्वं न किल्बिषम्।।
"हे राम ! मैं प्रचेतस मुनि का दसवाँ पुत्र हूँ। मैंने मन, वचन और कर्म से कभी पापाचरण नहीं किया है। और उसी का साक्ष्य देते हुए कहता हूँ की माता सीता एकदम पवित्र है।"
इस श्लोक के विद्यमान रहते हुए महर्षि वाल्मीकि के सम्बन्ध में यह कैसे कहा जा सकता है कि वे यौवन अवस्था में वे डाकू रहे होंगे? व्यवहारिक तौर पे एक डाकू का इतना ज्ञानी होना संभव भी नहीं है की वह कुछ ही माह में रामायण जैसे महाकाव्य की रचना कर दे। इससे यही सिद्ध होता है की महर्षि वाल्मीकि के सम्बन्ध में इतिहास को तोड़ मरोड़ कर बताया गया। यदि संयोग से कोई डाकू वाल्मीकि भी रहे होंगे तो वे अवश्य ही कोई दुसरे व्यक्ति हो सकते हैं। एक ही नाम के अनेक व्यक्तियों का होना कोई असम्भव घटना नहीं है। असली वाल्मीकि एक महर्षि की संतान थे और परम ज्ञानी थे और रामायण की रचना करने वाले वे ही थे।
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