Thursday, March 2, 2017

इतिहास : आज सरोजिनी नायडू की 68 वीं पुण्यतिथि है

 

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 सरोजिनी नायडू की 68 वीं पुण्यतिथि है

परिचय:
सरोजिनी नायडू एक महान स्वतंत्रता सेनानी और भारत में पहली महिला गवर्नर थीं, सरोजिनी नायडू एक कवियित्रि और राजनीतिज्ञ थीं। उन को भारत की कोकिला के नाम से भी जाना जाता था। वह पहली भारतीय महिला थीं जो भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की अध्यक्ष और किसी भारतीय राज्य की राज्यपाल बनीं।

व्यक्तिगत
सरोजिनी नायडू 13 फरवरी 1879 को हैदराबाद में एक बंगाली ब्राह्मण परिवार में अघोरनाथ चट्टोपाध्याय और बरादा सुंदरी देवी के घर पैदा हुई थीं। उनका पुश्तैनी मकान आज के बांग्लादेश के बिकरमपुर में ब्रहमनगांव में था। उनके पिता अघोरनाथ चट्टोपाध्याय ने एडिनबर्ग विश्वविद्यालय से विज्ञान में डॉक्टरेट की थी। वह हैदराबाद में निजाम कॉलेज के प्रिंसिपल थे। सरोजिनी नायडू की मां, बरादासुंदरी देवी, एक कवियित्रि थीं और बंगाली में कविताएं लिखती थीं। सरोजिनी नायडू अपने आठ बहन भाईयों में सबसे बड़ी थीं। उनके एक भाई वीरेन्द्रनाथ चट्टोपाध्याय एक क्रांतिकारी थे और उसके दूसरे भाई हरिन्दनाथ एक कवि, नाटककार, और अभिनेता थे।
उन्होंने मद्रास विश्वविद्यालय से मैट्रिक पास किया। हैदराबाद के छटे निजाम, मीर महबूब अली खान, ने 1895 में निजाम छात्रवृत्ति ट्रस्ट बनाया था। इस ट्रस्ट ने सरोजिनी नायडू को इंग्लैंड में अध्ययन करने के लिए छात्रवृत्ति दी। उन्होंने इंग्लैंड में किंग्स कॉलेज लंदन में और बाद में गिरटन कॉलेज कैम्ब्रिज में पढ़ाई की।

वह इंग्लैंड में रहते हुए महिलाओं के मताधिकार आंदोलन के साथ परिचित हुईं। यह आंदोलन यूरोप के सभी देशों में चल रहा था। यूरोप की महिलाएं मतदान के अपने अधिकार के लिए लड़ रही थीं। सरोजिनी नायडू उसी समय महात्मा गांधी के नेतृत्व में चल रहे भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन की ओर आकर्षित हुईं। उनकी 19 साल की उम्र में गोविंदाराजूलू नायडू से मुलाकात हुई जो पेशे से एक चिकित्सक थे । उन दिनों अंतर्जातीय विवाह की अनुमति नहीं थी लेकिन उनके पिता ने शादी की मंजूरी दे दी। उन्होंन अपनी पढ़ाई खत्म करने के बाद नायडू से शादी कर ली।

उन के पांच बच्चे हुए। उनकी बेटी पद्मजा नायडू भी आजादी की लड़ाई में शामिल हो गईं और उन्होंने भारत छोड़ो आंदोलन में भाग लिया। वह भारत की स्वतंत्रता के बाद पश्चिम बंगाल राज्य की राज्यपाल बनाई गईं। सरोजिनी नायडू 1905 में बंगाल के विभाजन के बाद भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन में शामिल हो गईं।



उन्होंने 1915 से 1918 की अवधि के दौरान, भारत के विभिन्न हिस्सों की यात्रा की और सामाजिक कल्याण, महिला सशक्तिकरण और राष्ट्रवाद जैसे मुद्दों पर व्याख्यान दिए। उन्होंने 1917 में महिलाओं की इंडियन एसोसिएशन की स्थापना में मदद की। उन को होम रूल लीग और भारतीय महिलाओं की एसोसिएशन की अध्यक्ष, एनी बेसेंट, के साथ संयुक्त प्रवर समिति से महिलाओं के वोट के बारे में बात करने के लिए लंदन भेजा गया।

वह 1924 में भारतीय लोगों की मदद के लिए पूर्वी अफ्रीका और दक्षिण अफ्रीका की यात्रा पर गईं। उन्होंने 1928-29 की अवधि के दौरान उत्तरी अमेरिका का दौरा किया जहां उन्होंने कांग्रेस के आंदोलन के बारे में व्याख्यान दिए।

राजनीति
अंग्रेजों ने उनको 1930, 1932, 1942 और 1943 में कई बार गिरफ्तार किया। सरोजिनी नायडू ने 1925 में कानपुर में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के वार्षिक सत्र की अध्यक्षता की। उन्होंने 1930 में महात्मा गांधी द्वारा शुरू किए गए नमक सत्याग्रह में सक्रिय रूप से भाग लिया।

वह 1931 में महात्मा गांधी के साथ दूसरे गोलमेज सम्मेलन में भाग लेने के लिए लंदन गईं। उन्होंने सविनय अवज्ञा आंदोलन में एक प्रमुख भूमिका निभाई है और उनको महात्मा गांधी और अन्य नेताओं के साथ गिरफ्तार कर लिया गया। उन को 1942 में भारत छोड़ो आंदोलन के दौरान भी गिरफ्तार किया गया था। भारत की आजादी के बाद सरोजिनी नायडू को संयुक्त प्रांत, जो अब उत्तर प्रदेश कहलाता है, का राज्यपाल बनाया गया। उनका 2 मार्च 1949 को लखनऊ में राज्यपाल के कार्यालय में काम करते हुए दिल का दौरा पड़ने से निधन हो गया।

उपलब्धियां
सरोजिनी नायडू ने बारह साल की उम्र में कविताएं और नाटक लिखना शुरू कर दिया था। उनका एक फारसी नाटक, मेहरे मुनीर, हैदराबाद के निजाम के सामने प्रस्तुत किया गया और वह उस नाटक से बहुत प्रभावित हुए। वह कविताएं अंग्रेजी में लिखती थीं। उनकी कविताओं का गोल्डन थ्रेसहोल्ड नाम का पहला संग्रह 1905 में प्रकाशित किया गया था। उस समय उन की आयु केवल 26 साल थी। बाद में उनकी कविताओं के कई और संग्रह भी प्रकाशित किए गए थे। दा फीदर आफ दा डॉन नाम का उन की कविताओं का संग्रह उनके मरणोपरांत उनकी बेटी पद्मजा नायडू ने 1961 में प्रकाशित किया।

सरोजिनी नायडू एक महान भारतीय राष्ट्रवादी और स्वतंत्रता सेनानी थीं। उन्होंने महिलाओं की प्रगति और कल्याण के लिए भी काम किया। भारत में विभिन्न स्थानों में कई संस्थानों, कॉलेजों और सड़कों का नाम उन के नाम पर रखा गया है। 

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