सूरदास की जन्मतिथि एवं जन्मस्थान के विषयो में विद्वानों में मतभेद है। लेकिन कुछ विद्वानों का ऐसा मानना है की उनका जन्म १४७८ -१४७९ की बीच में हुआ। सूरदास का जन्म मथुरा के रुनकता गांव में हुआ था। यह गाँव मथुरा-आगरा मार्ग के किनारे स्थित है। जो की वर्तमान में आगरा जिले में आता है। सूरदास के पिता रामदास गायक थे। जब वे किशोर होने लगे तभी से उन्होंने कृष्ण भक्ति की शुरूआत कर दी थी। सूरदास ने ६ साल की आयु में ही घर छोड़ दिया। बाद में वे मथुरा के ही पास ब्रज गांव में रहने लगे।
वहां उनकी भेंट श्री वल्लभाचार्य से हुई और वे उनके शिष्य बन गए। वल्लभाचार्य ने उनको पुष्टिमार्ग में दीक्षित कर के कृष्णलीला के पद गाने का आदेश दिया। तभी वह गांव-गांव जाकर कविताये और भक्तिमय गीत लोगो को सुनाने लगे।
सूरदास की कविताये और भक्तिमय गीत लोगो को अपनी तरफ आकर्षित करने लगे,धीरे-धीरे उनकी ख्याति बढती गयी, और मुग़ल शासक अकबर ने भी (१५४२ -१६०५ ) उनकी कविताये सुनी और उनको अपने दरबार में आने के लिए निमंत्रण भी दिया पर उन्होंने आने के लिए मना कर दिया।
सूरदास ने अपने जीवन के अंतिम वर्षो को ब्रज में बिताया। और भजन गाने के बदले उन्हें जो कुछ भी मिलता उन्ही से उनका गुजारा होता था। सूरदास की मृत्यु गोवर्धन के निकट पारसौली ग्राम में १५४० ईस्वी में हुई।
सूरदास जी को हिंदी साहित्य का सूरज कहा गया है। वे अपनी कृति “सूरसागर” के लिये प्रसिद्ध है। उनकी इस कृति में लगभग १००००० गीत है, जिनमे से आज केवल ८००० ही बचे है। उनके इन गीतों में कृष्ण की बाल लीला का वर्णन किया। इतना ही नहीं सूरसागर के साथ उन्होंने सुर-सारावली और सहित्य-लहरी की भी रचना की है।
सूरदास जी द्वारा लिखित पाँच ग्रन्थ :
१ सूरसागर
३ साहित्य-लहरी
४ नल-दमयन्ती और
५ ब्याहलो।
उपरोक्त में अन्तिम दो अप्राप्य हैं।
नागरी प्रचारिणी सभा द्वारा प्रकाशित हस्तलिखित पुस्तकों की विवरण तालिका में सूरदास के १६ ग्रन्थों का उल्लेख है। इनमें सूरसागर, सूरसारावली, साहित्य लहरी, नल-दमयन्ती, ब्याहलो के अतिरिक्त दशमस्कंध टीका, नागलीला, भागवत्, गोवर्धन लीला, सूरपचीसी, सूरसागर सार, प्राणप्यारी, आदि ग्रन्थ सम्मिलित हैं। इनमें प्रारम्भ के तीन ग्रंथ ही महत्त्वपूर्ण समझे जाते हैं, साहित्य लहरी की प्राप्त प्रति में बहुत प्रक्षिप्तांश जुड़े हुए हैं।
क्या सूरदास जन्मान्ध थे ?
सूरदास श्रीनाथ की "संस्कृतवार्ता मणिपाला', श्री हरिराय कृत "भाव-प्रकाश", श्री गोकुलनाथ की "निजवार्ता' आदि ग्रन्थों के आधार पर, जन्म के अन्धे माने गए हैं। लेकिन राधा-कृष्ण के रूप सौन्दर्य का सजीव चित्रण, नाना रंगों का वर्णन, सूक्ष्म पर्यवेक्षणशीलता आदि गुणों के कारण अधिकतर वर्तमान विद्वान सूर को जन्मान्ध स्वीकार नहीं करते।
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