इस वर्ष श्रावण शुक्ल पक्ष चतुर्थी अर्थात २७ जुलाई २०१७ को नागपंचमी है । सर्पयज्ञ करनेवाले जनमेजय राजा को आस्तिक नामक ऋषि ने प्रसन्न कर लिया था । जनमेजय ने जब उनसे वर मांगने के लिए कहा, तो उन्होंने सर्पयज्ञ रोकने का वर मांगा एवं जिस दिन जनमेजय ने सर्पयज्ञ रोका, उस दिन पंचमी थी । श्रीकृष्ण ने यमुना की गर्त में कालिया नाग का मर्दन किया, वह तिथि थी श्रावण शुक्ल पक्ष पंचमी । नागपंचमी का यह इतिहास बताया जाता है । आज हम इस विषय में आैर विस्तार से जान लेते है ।
नाग की महिमा
‘शेषनाग अपने फन पर पृथ्वी को धारण करते हैं । वे पाताल में रहते हैं । उनके सहस्र फन हैं । प्रत्येक फन पर एक हीरा है । उनकी उत्पत्ति श्रीविष्णु के तमोगुण से हुई । श्रीविष्णु प्रत्येक कल्प के अंत में महासागर में शेषासन पर शयन करते हैं । त्रेता एवं द्वापर युगों के संधिकाल में श्रीविष्णु ने राम-अवतार धारण किया । तब शेष ने लक्ष्मण का अवतार लिया । द्वापर एवं कलि युग के संधिकाल में श्रीविष्णु ने कृष्णावतार धारण किया तब शेष बलराम बने । नागों में श्रेष्ठ ‘अनंत’ मैं ही हूं’, इस प्रकार श्रीकृष्ण ने गीता (अध्याय १०, श्लोक २९) में अपनी विभूति का कथन किया है ।
पूजन
नागपंचमी के दिन हलदी से अथवा रक्तचंदन से एक पीढे पर नवनागों की आकृतियां बनाते हैं एवं उनकी पूजा कर दूध एवं खीलों का नैवेद्य चढाते हैं । नवनाग पवित्रकों के नौ प्रमुख समूह हैं । पवित्रक अर्थात अत्यंत सूक्ष्म दैवी कण (चैतन्यक) । विश्व के सर्व जीवजंतु विश्व के कार्य हेतु पूरक हैं । नागपंचमी पर नागों की पूजा द्वारा यह विशाल दृष्टिकोण सीखना होता है कि ‘भगवान उनके द्वारा कार्य कर रहे हैं । नागपंचमी के दिन कुछ न काटें, न तलें, चूल्हे पर तवा न रखें इत्यादि संकेतों का पालन बताया गया है । इस दिन भूमिखनन न करें ।
सर्पभय नष्ट होने के लिए आराधना !
‘अनन्तं वासुकिं शेषं पद्मनाभं च कम्बलम् । शंखपालं धृतराष्ट्रं तक्षकं, कालियं तथा ॥’ अर्थात अनंत, वासुकी,शेष, पद्मनाभ, कंबल, शंखपाल, धृतराष्ट्र, तक्षक एवं कालिया, इन नौ जातियों के नागों की आराधना की जाती हैं । इससे सर्पभय नहीं रहता और विषबाधा नहीं होती ।’
साभार : हिन्दू जनजागृति समिति
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