हिन्दु संस्कृति में सावन मास को पवित्र माना गया है। सावन महीने में भगवान शिव की पूजा करने के दौरान बिल्वपत्र को चढ़ाना अनिवार्य माना जाता है। अगर कोई व्यक्ति सच्चे मन से भगवान शिव की पूजा करता है और उन्हें बिल्वपत्र अर्पित करता है तो भगवान उसकी हर इच्छा पूरी करते हैं। यह भगवान शिव को बहुत ही प्रिय है। ऐसी मान्यता है कि बेलपत्र और जल से भगवान शंकर का मस्तिष्क शीतल रहता है। पूजा में इनका प्रयोग करने से वे बहुत जल्द प्रसन्न होते हैं।
बिल्वपत्र का वैदिक महत्व :-इसका पौराणिक महत्व भी है स्कंद पुराण के अनुसार, एक बार माता पार्वती के पसीने की बूंद मंदराचल पर्वत पर गिर गई थी। उससे बिल्वपत्र का पेड़ का उद्भव हुआ। अत: इसमें माता पार्वती के सभी रूप बसते हैं। वे पेड़ की जड़ में गिरिजा के स्वरूप में, इसके तनों में माहेश्वरी के स्वरूप में और शाखाओं में दक्षिणायनी व पत्तियों में पार्वती के रूप में रहती हैं। फलों में कात्यायनी स्वरूप व फूलों में गौरी स्वरूप निवास करता है। इस सभी रूपों के अलावा, मां लक्ष्मी का रूप समस्त वृक्ष में निवास करता है। बिल्वपत्र में माता पार्वती का प्रतिबिंब होने के कारण इसे भगवान शिव पर चढ़ाया जाता है। पूजा का महत्व भगवान शिव पर बेल पत्र चढ़ाने से वे प्रसन्न होते हैं और भक्त की मनोकामना पूर्ण करते हैं। जो व्यक्ति किसी तीर्थस्थान पर नहीं जा सकता है अगर वह सावन मास में बिल्वपत्र के पेड़ के मूल भाग की पूजा करके उसमें जल अर्पित करे तो उसे सभी तीर्थों के दर्शन का पुण्य मिलता है। सावन का महीना आते ही श्रद्धालु महादेव शंकर को प्रसन्न करने की कोशिश में जुट जाते हैं। शिवलिंग पर गंगाजल के साथ-साथ बिल्वपत्र भी चढ़ाने का विधान है।
बिल्वपत्र का वैदिक महत्व :-इसका पौराणिक महत्व भी है स्कंद पुराण के अनुसार, एक बार माता पार्वती के पसीने की बूंद मंदराचल पर्वत पर गिर गई थी। उससे बिल्वपत्र का पेड़ का उद्भव हुआ। अत: इसमें माता पार्वती के सभी रूप बसते हैं। वे पेड़ की जड़ में गिरिजा के स्वरूप में, इसके तनों में माहेश्वरी के स्वरूप में और शाखाओं में दक्षिणायनी व पत्तियों में पार्वती के रूप में रहती हैं। फलों में कात्यायनी स्वरूप व फूलों में गौरी स्वरूप निवास करता है। इस सभी रूपों के अलावा, मां लक्ष्मी का रूप समस्त वृक्ष में निवास करता है। बिल्वपत्र में माता पार्वती का प्रतिबिंब होने के कारण इसे भगवान शिव पर चढ़ाया जाता है। पूजा का महत्व भगवान शिव पर बेल पत्र चढ़ाने से वे प्रसन्न होते हैं और भक्त की मनोकामना पूर्ण करते हैं। जो व्यक्ति किसी तीर्थस्थान पर नहीं जा सकता है अगर वह सावन मास में बिल्वपत्र के पेड़ के मूल भाग की पूजा करके उसमें जल अर्पित करे तो उसे सभी तीर्थों के दर्शन का पुण्य मिलता है। सावन का महीना आते ही श्रद्धालु महादेव शंकर को प्रसन्न करने की कोशिश में जुट जाते हैं। शिवलिंग पर गंगाजल के साथ-साथ बिल्वपत्र भी चढ़ाने का विधान है।
बिल्वपत्र तोड़ने के वैदिक नियम:- शिव को बिल्वपत्र अर्पित करते वक्त और इसे तोड़ते समय कुछ खास नियमों का पालन करना जरूरी होता है। देवी-देवताओं को अर्पित किए जाने वाले फूल और पत्र को तोड़ने से जुड़े कुछ नियम बनाए गए हैं।
१. चतुर्थी, अष्टमी, नवमी, चतुर्दशी और अमावस्या तिथियों को, संक्रांति के समय और सोमवार को बिल्वपत्र न तोड़ें।
२. बिल्वपत्र भगवान शंकर को बहुत प्रिय है, इसलिए इन तिथियों या वार से पहले तोड़ा गया पत्र चढ़ाना चाहिए।
३. टहनी से चुन-चुनकर सिर्फ बिल्वपत्र ही तोड़ना चाहिए, कभी भी पूरी टहनी नहीं तोड़ना चाहिए। पत्र इतनी सावधानी से तोड़ना चाहिए कि वृक्ष को कोई नुकसान न पहुंचे।
४. बिल्वपत्र तोड़ने से पहले और बाद में वृक्ष को मन ही मन प्रणाम कर लेना चाहिए।
५. बिल्वपत्र में चक्र और वज्र नहीं होना चाहिए।
शिवलिंग पर कैसे चढ़ाएं बिल्वपत्र:-
१. महादेव को बिल्वपत्र हमेशा उल्टा अर्पित करना चाहिए, यानी पत्ते का चिकना भाग शिवलिंग के ऊपर रहना चाहिए।
२. बिल्वपत्र ३ से लेकर ११ दलों तक के होते हैं। ये जितने अधिक पत्र के हों, उतने ही उत्तम माने जाते हैं।
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