हमारा सनातन हिन्दू धर्म आनादिकाल से ही सांस्कृतिक धार्मिक भावनाओं से ओतप्रोत राष्ट्र था है और रहेगा। समय के साथ कमिया/रूढिया किस धर्म दर्शन सभ्यता संस्कृति में उत्पन्न नहीं हुई?प्रारंभ में हमारे वैदिक सनातनी हिन्दू सभ्यता संस्कृति धर्म दर्शन में कहीं भी ऊंचनीच छूआछूत जाति पंथ वर्ग क्षेत्र जैसी अवधारणा नही थी।
हमारा सनातन हिन्दू धर्म-"जन्मना जायते शूद्र:,संस्कारात् भवेत् द्विज:" की मूलभूत वैदिक अवधारणा पर विकसित हुआ है ।
हमारे सनातन हिन्दू धर्म के किसी भी धार्मिक ग्रंथ साहित्य मे उच्चतम् नैतिक सास्कृतिक जीवनमूल्यों से ओतप्रोत वर्ण व्यवस्था को छोड, ऊंच-नीच छूआछूत जाति पंथ वर्ग क्षेत्र भाषा का उल्लेख तक नही है। हमारे सनातनी हिन्दू समाज ने अपने अनुयायियों में नैतिक सास्कृतिक धार्मिक सामाजिक उच्चादर्श बनाये रखने एवं सनातनी मान्यताओं सिद्धांतो के समग्र सनातनी समाज से अनुपालन सुनिश्चित कराये जाने व उनको अच्छुण बनाये रखने के लिए कठोर समाजिक धार्मिक नियमावली का निर्माण किया गया, जिन्हें कोई उपेक्षित न करने पाये इसके लिए उन्हें तोडने वाले के सामाजिक बहिष्कार की बात कही ।
ऊंचनीच छूआछूत जाति पंथ वर्ग क्षेत्र का जो स्वरूप वर्तमान में दिखाई पडता है वह वैदिक नही हैं इसे समय के साथ सनातन हिन्दू धर्म के विरुद्ध वामपंथी इतिहासकारों ने ईसाई मिशनरियों व इस्लामी जिहादी शासकों मुल्ला मौलवियों के साथ मिलकर एक षडयंत्र पूर्वक समाहित कर दिया। मैक्शमूलर जैसे सनातन विरोधी मानसिकता के विद्वानो ने सनातनी हिन्दू धरम ग्रन्थों के संकलन व छपाई के दौरान भेदभाव जन्य प्रक्षिप्तांश जोड दिया।
और हां हमें यह भी जानना चाहिए कि- आज जिस प्रकार देश दुनियां क्षेत्र में शांति एवं सुव्यवस्था बनाये व बचाये रखने के लिये पहलेे संविधान का निर्माण किया जाता है और फिर उस संविधान का अनुपालन कार्यपालिका द्वारा कराया जाता है और उस संविधान को तोडने वाले को न्यायपालिका के माध्यम से दंडित किया जाता है। इसी प्रकार की नियमावली लगभग प्रत्येक धर्म की भी होती है जो अपने अपने अनुयायियों को अपने-अपने धर्म में बाधे बनायें रखने के लिये के लिए बनाता है।
ठीक ऐसी ही व्यवस्था हमारे सनातन हिन्दू धर्म के वर्ण व्यवस्था षट्कर्म के सिद्धांत रूपी अपनी नियमावली मे देखने को मिलती है।
यह नियमावली वेदान्त-दर्शन में षट्कर्म के सिद्धांत के रूप मे स्थापित हुआ है, इन नियमों का पालन हर हाल मे हर सनातनी हिन्दू धर्मावलम्बी को इन नियमों का पालन करना अनिवार्य है जो इन पंच-कर्मों को जाने-अनजाने तोडता है तो छठा प्रायश्चित कर्म करना होता है!
1नित्य कर्म
2-उपासना कर्म
3-नैमित्तिक कर्म
4-काम्य कर्म
5-निषिद्ध कर्म
6-प्रायश्चित कर्म
हमारे सनातनी हिन्दू समाज की यह विशेषता रही है कि वह जबरन अपने अनुयायियों की संख्या में वृद्धि करने की रणनीति पर काम नहीं करता है । जैसे इस्लाम धर्म अपने मौमिनो को कलमा-रोजा-नमाज-जकात-हज फर्ज किया है और जो मुस्लिम इन पांच इस्लामी सिद्धांतों को मानने से इनकार कर देता है तो उसके विरुद्ध इस्लाम धर्मावलंबी फतवा जारी कर उसका सामाजिक धार्मिक सांस्कृतिक बहिष्कार कर देता है।
हमारा सनातन हिन्दू धर्म अपने अनुयायियों मे नैतिक सांस्कृतिक धार्मिक चारित्रिक उच्च जीवन लक्ष्यों एवं जीवनपद्धति व आदर्शों को स्थापित करने की मूलभूत अवधारणा पर विकसित हुआ है । भारतीय उप महाद्वीप मे विकसित धार्मिक सांस्कृतिक सिद्धांतों मान्यताओं परम्पराओं रीति रिवाजों व्रत त्योहारों उत्सवों का एकमात्र प्रत्यक्ष अप्रत्यक्ष उद्देश्य भारतीय सभ्यता संस्कृति के उच्चजीवनलक्ष्यों, उच्चादर्शों,उच्चनैतिक-चारित्रिक मूल्यों को सुस्थापित करना रहा है।
अत: हमारे सनातनी ऋषियों ने अपनी "सभ्यता-संस्कृति-धर्म-दर्शन-इतिहास-पुराण-वेद-उपनिषदों को बचाये बनाये रखने के लिये एवं उपरोक्त सनातनी मान्यताओं, जीवन आदर्शों , गौ, गंगा,वेद,धर्म, दर्शन, ब्राह्मण, गीता आदि को पूर्ण संरक्षण प्रदान करने व संवर्धन ,प्रचार प्रसार करने के लिए सनातनी मान्यताओं परम्पराओं रीतिरिवाजों व्रत त्योहारों उत्सवों को अपमानित नष्ट भ्रष्ट कमजोर करने वालों के साथ समस्त प्रकार के लेनदेन खानपान निषेध करने की अहिंसात्मक तरीके को अपनाया कुछ चिंतकों का मानना है कि-
"इस्लामी आतंकी जिहादी विचारधारा के मुस्लिम आक्रांताओं, शासकों, मुल्ला मौलवियों से डरकर या मिलने वाले प्रलोभनों से प्रेरित होकर सनातन हिन्दू धर्म के प्रतीकों - गौ की हत्या, गीता-गायत्री-गंगा को अपमानित, वैदिक-कर्मकांडी ब्राह्मणों के हत्यारों का समर्थन, वेद उपनिषदों की निंदा की जिन्होंने ऐसा किया उनका सामाजिक बहिष्कार करने के लिए छूत अछूत का सिद्धांत विकसित हुआ।"
किंतु समय के साथ हर सिद्धांत के समान इस सिद्धांत में भी कमिया उत्पन्न हो गयी । सिद्धांत का दुरुपयोग किया जाने लगा। जाने अनजाने सनातनी मान्यताओं को तोडने वालों को प्रायश्चित करने का पूरा अवसर नहीं दिया गया किंतु अब आततायी इस्लामी आतंकी शासन समाप्त हो चुका है अत: अब सनातनी हिन्दू समाज से अब ऊंचनीच छूआछूत जाति पंथ वर्ग क्षेत्र के भेदभाव समाप्त होने ही चाहिए।
आओ समय के साथ अपने सनातनी हिन्दू समाज मे अंदर तक व्याप्त हो चुकी ऊंचनीच छुआछूत जाति वर्ग क्षेत्र पंथ के भेदभावों को दूर करने का सकारात्मक प्रयास करें!
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