आज श्रावण मास शुक्ल पक्ष विक्रम सम्वत २०७४ की एकादशी है। इस एकादशी को शास्त्रों में पुत्रदा एकादशी के नाम से भी वर्णित किया गया हैं। जैसा की विदित है, श्रवण मास के आगमन से ही तीज त्योहारों का प्रारम्भ हो जाता है। इस एकादशी को भी देश के कईं भागों में त्यौहार के रूप में मनाया जाता है, अपने नाम के अनुरूप ही इस एकादशी का उपवास यथाविधि करने से मनुष्य को संतान सुख का आनंद प्राप्त होता है।
कुछ प्राचीन ग्रंथों में उल्लेख मिलता है कि, इस एकादशी के उपवास का फल स्त्री और पुरुष दोनों दोनों को समान रूप से मिलता हैं। यह उपवास भगवान विष्णु की उपासना हेतु किया जाता है और ऐसा बताया गया है की यथा विधि उपवास से भगवान् विष्णु प्रसन्न होकर मनवांछित संतान प्रदान करते है। ऐसी मान्यता है कि भगवान विष्णु की साधना करके एकादशी का उपवास करने वाले साधक की हर मनोकामना पूरी होती है।
पुत्रदा एकादशी की व्रत कथा-
प्राचीन समय की बात है, एक नगर में महाराज महिजीत सिंह नाम के राजा का राज्य था। राजा महिजीत बहुत ही दयालु और परोपकारी थे, एवं राज्य की प्रजा सभी प्रकार से संपन्न थी। किन्तु एक छोटा दुःख सबके मन में ये था की राजा महिजीत की कोई संतान नही थी, अतः एक दिन वह बहुत दुखी हुए। मंत्रियों और दरबारियों को राजा का यह दुख देखा न गया तो तो उन्होंने आपस में विचार विमर्श करके राजा महिजीत को महर्षि लोमश के आश्रम ले गए। मंत्रियों ने ऋषिवर से राजा के निःसंतान होने का कारण और उसका उपाय पूछा।
महाज्ञानी महर्षि लोमश ने बताया कि - "पूर्व जन्म में राजा को एक बार एकादशी के दिन भूखा प्यासा रहना पड़ा था। राजा जब जंगल भटक रहे थे तभी उन्हें जोर की प्यास लगी। पानी की तलाश में एक सरोवर पर पहुंचे तो एक ब्यायी गाय वहां पानी पीने आ गई। लेकिन राजा ने गाय को भगा दिया और स्वयं की प्यास बुझाई। इस प्रकार राजा अनजाने में एकादशी का व्रत हो गया और गाय को प्यासा भगाने के कारण इस जन्म में उसे निःसंतान रहना पड़ रहा है।"
इस पर सभी मंत्रियों ने महाऋषि से हाथ जोड़कर प्रार्थना की कि वह इसका कोई उपाय हो तो बताएं। महर्षि लोमश ने मंत्रियों से कहा कि - " यदि आप लोग चाहते हैं कि राजा को संतान की प्राप्ति हो तो वे सभी लोग श्रावण शुक्ल एकादशी का उपवास रखें और द्वादशी के दिन अपना व्रत राजा को दान कर दें। इसके बाद मंत्रियों ने ऋषि के बताए उपाय के अनुसार, एकादशी का व्रत किया और द्वादशी को राजा को व्रत दान किया। इससे राजा को एक सुंदर संतान की प्राप्ति हुई। तभी से इस श्रावण शुक्ल एकादशी का नाम "पुत्रदा एकदशी" हो गया।
पुत्रदा एकादशी के व्रत,उपवास की विधि-
श्रावण माह की शुक्ल पक्ष की एकादशी अर्थात "पुत्रदा एकादशी" को प्रातः ब्रह्म मुहूर्त में स्वच्छ जल से स्नान कर भगवान विष्णु को गंगाजल से स्नान कराएं, और भोग लगाएं। पूरे दिन भगवान विष्णु का स्मरण करते रहें और पूरे दिन कुछ न खाएं। इस व्रत में अन्न को निषेध रखना चाहिए। यदि आप निराहार नहीं रह सकते तो बिना तला हुआ आहार, फल आदि ले सकते हैं। इस दिन पूरे समय भगवान विष्णु का स्मरण और जाप करते रहें। व्रत के अगले दिन वेद पाठ करने वाले ब्राह्मणों को भोजन यथेच्छा कराकर दान-दक्षिणा दें। ऐसा करने से घर में सुख, शांति, ऐश्वर्य में वृद्धि होती है और निश्चित रूप से संतान सुख की प्राप्ति होती होगी।
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