Wednesday, August 9, 2017

वैदिक ज्ञान :क्या इसी जीवन में ईश्वर प्राप्ति संभव है ? बहुत ही ज्ञानवर्धक और प्रेरक प्रसंग

 

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यदि हमने बिना प्रभु भक्ति करे मानव जीवन व्‍यर्थ गवां दिया तो हमारे जैसा दुर्भाग्यशाली और मुर्ख दूसरा कोई नहीं होगा । प्रयास ऐसा करें कि दो में से एक काम तो हो ही जाये, या तो बिहारीजी तुम्हारी नज़रों में आ जायें, या तुम बिहारीजी की नज़रों में आ जाओ। निम्नांकित प्रेरक प्रसंग इसी ओर इंगित करता है। 

आध्यात्मिक गुरु श्री स्कंधदेव के गुरुकुल का प्रवेशोत्सव समाप्त हो चुका था, नव कक्षायें नियमित रूप से लगने लगी थी, और अध्यात्म विषय पर कुलपति श्री स्कन्ध देव के व्याख्यान सुनकर गुरुकुल के सभी विद्यार्थी संतुष्टि और उल्लास का अनुभव करते थे। 

एक दिन की बात है प्रश्नोत्तर काल में आचार्य श्री स्कंध देव के शिष्य कौस्तुभ ने प्रश्न किया- “गुरुदेव! क्या ईश्वर को इसी जीवन में प्राप्त किया जा सकता है?” आचार्य श्री स्कन्ध देव कुछ सोचने लगे, कुछ विचार करके बोले- “इस प्रश्न का उत्तर आप लोगों को  कल मिलेगा और हाँ ! आज संध्याकाळ में तुम सब लोग शयन कक्ष में जाने से पूर्व १०८ बार श्री वासुदेव मंत्र का जप करना और प्रातःकाल मुझे अवगत कराना।”


बहुप्रतीक्षित प्रातःकालीन व्याख्यान  का समय आ चुका था। सब विद्यार्थी अनुशासन बद्ध होकर  व्याख्यान स्थल पर आ बैठे। आचार्य स्कंध देव ने व्याख्यान प्रारम्भ करने से पूर्व पूछा-” आप में कितने विद्यार्थियों कल रात्रि में शयन से पूर्व कितने कितने वासुदेव मंत्रों का जाप किया? ” सब विद्यार्थियों ने अपने अपने हाथ ऊपर उठा दिये। किसी ने भी भूल नहीं की थी। सबने १०८-१०८ मंत्रों का जाप कर लिया था। किन्तु ऐसा प्रतीत हो रहा था जैसे आचार्य स्कन्ध देव का हृदय क्षुब्ध है, वे  असंतुष्ट प्रतीत हो रहे थे। उन्होंने चारों ओर दृष्टि घुमाई। एक विद्यार्थी व्याख्यानं में अनुपस्थित था, वह था कौस्तुभ। उसे बुलवाया  गया। स्कन्ध देव ने अस्त व्यस्त होकर आते हुए कौस्तुभ के आते ही प्रश्न किया- “कौस्तुभ! क्या आपने भी १०८ मंत्रो का उच्चारण शयन से पूर्व किया था।”

कौस्तुभ ने नैत्र झुकाकर विनम्र भाव से कहा - “गुरुदेव! अपराध क्षमा करें- मैंने बहुत प्रयत्न किया किन्तु जब जप की संख्या की गिनती करता तो भगवान का ध्यान नहीं रहता था और जब भगवान का ध्यान करता तो जप की गिनती भूल जाता। पूरी रात्रि ऐसे ही चलता रहा और आपका बताया व्रत पूर्ण न कर सका।”

स्कन्ध देव मुस्कराये और बोले- "बालकों ! कल के प्रश्न का यही उत्तर है। जब संसार के सुख, सम्पत्ति, भोग की गिनती में हम व्यस्त हो जाते है तो भगवान का प्रेम शुन्य हो जाता है,परमात्मा को तो कोई भी पा सकता है, भौतिक सांसारिक माया से चित्त हटाकर ईश्वर को कोई भी, कभी भी प्राप्त कर सकता है। यही ईश्वर प्राप्ति का मूल मन्त्र भी है। "

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